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Monday, July 27, 2015
घरेलू नौकर या ड्राइवर रखने पर देना पड़ सकता है अपॉइंटमेंट लेटर
नई दिल्ली-घरेलू नौकर या ड्राइवर रखने पर जल्द ही आपको नौकरी के नियम और शर्तों को बताने वाला अपॉइंटमेंट लेटर देना पड़ सकता है। डोमेस्टिक वर्कर्स के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें बेसिक सोशल सिक्यॉरिटी देने के लिए लेबर मिनिस्ट्री ऐसा प्रपोजल तैयार कर रही है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह कदम अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर को मजबूत करने की इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) से प्रतिबद्धता के अनुसार उठाया जा रहा है। देश की कुल वर्कफोर्स में अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की हिस्सेदारी 93 पर्सेंट की है।
अधिकारी ने कहा, 'आईएलओ की ओर से देश को इनफॉर्मल से फॉर्मल वर्कफोर्स की ओर ले जाने का काफी दबाव है। देश में इनफॉर्मल या अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर काफी बड़ा है। इसलिए इसे पूरी तरह फॉर्मल करना संभव नहीं होगा। इस वजह से हमने अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर को मजबूत करने पर सहमति दी है।'
मिनिस्ट्री के प्रपोजल के मुताबिक, एंप्लॉयर्स के लिए मासिक वेतन पर काम करने वाले सभी घरेलू वर्कर्स को फॉर्मल अपॉइंटमेंट लेटर जारी करना अनिवार्य होगा। अधिकारी ने बताया, 'फॉर्मल अपॉइंटमेंट लेटर जारी करने से यह पक्का होगा कि डोमेस्टिक वर्कर्स को केवल हेल्पर्स के तौर पर न माना जाए बल्कि उन्हें एंप्लॉयड वर्कर्स समझा जाए, जो एंप्लॉयमेंट के साथ मिलने वाले अधिकारों और सम्मान के पात्र हैं।'
डोमेस्टिक वर्कर्स को लेकर कोई भरोसेमंद आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि देश में लगभग 50 लाख डोमेस्टिक वर्कर्स हैं। इनके योगदान को अक्सर आर्थिक आंकड़ों में जगह नहीं मिलती। देश में 35 करोड़ अन-ऑर्गनाइज्ड वर्कफोर्स में डोमेस्टिक वर्कर्स की हिस्सेदारी लगभग 1.5 पर्सेंट है। ये वर्कर्स विशेषतौर पर शहरी इलाकों में बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल, कुकिंग, ड्राइविंग, क्लीनिंग, ग्रॉसरी शॉपिंग जैसे काम करते हैं।
अपॉइंटमेंट लेटर मिलने से इन वर्कर्स के सामने आने वाली कुछ मुश्किलों को हल किया जा सकेगा। इन वर्कर्स के पास वादे से कम वेतन मिलने की स्थिति में शिकायत करने का कोई जरिया नहीं होता क्योंकि इन्हें लिखित में कुछ नहीं दिया जाता। इनके पास बेसिक हेल्थकेयर, साप्ताहिक छुट्टी, मैटरनिटी लीव जैसी सुविधाएं भी नहीं होतीं। इन्हें कई बार खराब व्यवहार का भी शिकार बनना पड़ता है। इसका विरोध करने पर नौकरी जाने का खतरा भी रहता है।
जानकारों का कहना है कि डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए अपॉइंटमेंट लेटर अनिवार्य किए जाने का काफी विरोध हो सकता है। डोमेस्टिक वर्कर्स से जुड़े कुछ कानून देश में मौजूद हैं। इनमें अन-ऑर्गनाइज्ड सोशल सिक्यॉरिटी ऐक्ट, 2008 और सेक्सुअल हैरसमेंट अगेंस्ट विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रॉहिबिशन ऐंड रिड्रेसल) एक्ट, 2013 शामिल हैं। इसके साथ ही कई राज्यों में मिनिमम वेजेज शेड्यूल भी हैं, लेकिन अक्सर इन कानूनों का पालन नहीं किया जाता।
सौजन्य: INDIATMIES NEWS
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह कदम अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर को मजबूत करने की इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) से प्रतिबद्धता के अनुसार उठाया जा रहा है। देश की कुल वर्कफोर्स में अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की हिस्सेदारी 93 पर्सेंट की है।
अधिकारी ने कहा, 'आईएलओ की ओर से देश को इनफॉर्मल से फॉर्मल वर्कफोर्स की ओर ले जाने का काफी दबाव है। देश में इनफॉर्मल या अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर काफी बड़ा है। इसलिए इसे पूरी तरह फॉर्मल करना संभव नहीं होगा। इस वजह से हमने अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर को मजबूत करने पर सहमति दी है।'
मिनिस्ट्री के प्रपोजल के मुताबिक, एंप्लॉयर्स के लिए मासिक वेतन पर काम करने वाले सभी घरेलू वर्कर्स को फॉर्मल अपॉइंटमेंट लेटर जारी करना अनिवार्य होगा। अधिकारी ने बताया, 'फॉर्मल अपॉइंटमेंट लेटर जारी करने से यह पक्का होगा कि डोमेस्टिक वर्कर्स को केवल हेल्पर्स के तौर पर न माना जाए बल्कि उन्हें एंप्लॉयड वर्कर्स समझा जाए, जो एंप्लॉयमेंट के साथ मिलने वाले अधिकारों और सम्मान के पात्र हैं।'
डोमेस्टिक वर्कर्स को लेकर कोई भरोसेमंद आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि देश में लगभग 50 लाख डोमेस्टिक वर्कर्स हैं। इनके योगदान को अक्सर आर्थिक आंकड़ों में जगह नहीं मिलती। देश में 35 करोड़ अन-ऑर्गनाइज्ड वर्कफोर्स में डोमेस्टिक वर्कर्स की हिस्सेदारी लगभग 1.5 पर्सेंट है। ये वर्कर्स विशेषतौर पर शहरी इलाकों में बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल, कुकिंग, ड्राइविंग, क्लीनिंग, ग्रॉसरी शॉपिंग जैसे काम करते हैं।
अपॉइंटमेंट लेटर मिलने से इन वर्कर्स के सामने आने वाली कुछ मुश्किलों को हल किया जा सकेगा। इन वर्कर्स के पास वादे से कम वेतन मिलने की स्थिति में शिकायत करने का कोई जरिया नहीं होता क्योंकि इन्हें लिखित में कुछ नहीं दिया जाता। इनके पास बेसिक हेल्थकेयर, साप्ताहिक छुट्टी, मैटरनिटी लीव जैसी सुविधाएं भी नहीं होतीं। इन्हें कई बार खराब व्यवहार का भी शिकार बनना पड़ता है। इसका विरोध करने पर नौकरी जाने का खतरा भी रहता है।
जानकारों का कहना है कि डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए अपॉइंटमेंट लेटर अनिवार्य किए जाने का काफी विरोध हो सकता है। डोमेस्टिक वर्कर्स से जुड़े कुछ कानून देश में मौजूद हैं। इनमें अन-ऑर्गनाइज्ड सोशल सिक्यॉरिटी ऐक्ट, 2008 और सेक्सुअल हैरसमेंट अगेंस्ट विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रॉहिबिशन ऐंड रिड्रेसल) एक्ट, 2013 शामिल हैं। इसके साथ ही कई राज्यों में मिनिमम वेजेज शेड्यूल भी हैं, लेकिन अक्सर इन कानूनों का पालन नहीं किया जाता।
सौजन्य: INDIATMIES NEWS
बीजेपी से ‘नाराज’ शत्रुघ्न को जेडीयू से मिला न्योता
पटना-बीजेपी और उसके सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बीच इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बताया जा रहा है कि सिन्हा शनिवार को मोदी की मुजफ्फरपुर में हुई परिवर्तन रैली में ना बुलाए जाने से दुखी हैं। ऐसे में, सिसायती मौका भांपते हुए जेडीयू ने रविवार को सिन्हा को अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया।
रविवार को बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ सिन्हा ने मुलाकात की थी। इसके बाद, जेडीयू के राज्य प्रमुख वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि आखिरी फैसला खुद सिन्हा को ही लेना होगा। उन्होंने कहा कि अगर शत्रुघ्न सिन्हा उनकी पार्टी में शामिल होते हैं तो पार्टी उनका खुले दिल से स्वागत करेगी।
उधर, सिन्हा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नीतीश के साथ उनकी मुलाकात एक भाई की तरह थी। उन्होंने कहा कि नीतीश उनके भाई की तरह हैं और वह जब भी पटना आते हैं तब नीतीश के साथ मुलाकात करते हैं। उन्होंने जेडीयू में शामिल होने की बात पर कहा कि वह अच्छे और बुरे, दोनों समय में बीजेपी के साथ जुड़े रहे हैं और जेडीयू में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है।
इस बीच, शनिवार को राज्य में बीजेपी के पोस्टरों पर यादव समुदाय को लुभाने के लिए मोदी को भगवान कृष्ण के द्वारका से आया हुआ बताए जाने पर प्रतिक्रिया करते हुए आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने कहा मोदी को 'कालिया नाग' कहा।
सौजन्य: INDIA TIMES NEWS
रविवार को बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ सिन्हा ने मुलाकात की थी। इसके बाद, जेडीयू के राज्य प्रमुख वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि आखिरी फैसला खुद सिन्हा को ही लेना होगा। उन्होंने कहा कि अगर शत्रुघ्न सिन्हा उनकी पार्टी में शामिल होते हैं तो पार्टी उनका खुले दिल से स्वागत करेगी।
उधर, सिन्हा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नीतीश के साथ उनकी मुलाकात एक भाई की तरह थी। उन्होंने कहा कि नीतीश उनके भाई की तरह हैं और वह जब भी पटना आते हैं तब नीतीश के साथ मुलाकात करते हैं। उन्होंने जेडीयू में शामिल होने की बात पर कहा कि वह अच्छे और बुरे, दोनों समय में बीजेपी के साथ जुड़े रहे हैं और जेडीयू में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है।
इस बीच, शनिवार को राज्य में बीजेपी के पोस्टरों पर यादव समुदाय को लुभाने के लिए मोदी को भगवान कृष्ण के द्वारका से आया हुआ बताए जाने पर प्रतिक्रिया करते हुए आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने कहा मोदी को 'कालिया नाग' कहा।
सौजन्य: INDIA TIMES NEWS
खतरे में है ब्रैंड धोनी का भविष्य?
नई दिल्ली-क्या ब्रैंड धोनी गंभीर खतरे में है? उनकी कप्तानी वाली आईपीएल टीम चेन्नै सुपर किंग्स पर दो साल के लिए पाबंदी लगा दी गई है। इस टीम के दागी मालिकों और धोनी के बीच करीबी रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। वह टेस्ट क्रिकेट से रिटायर हो चुके हैं और वनडे कप्तान के तौर पर उनका हालिया परफॉर्मेंस निराशाजनक रहा है।
वह अब भी 18 ब्रैंड्स को एंडोर्स करते हैं। इनमें पेप्सी, रीबॉक, टीवीएस, बूस्ट, स्टारस्पोर्ट्स प्रमुख हैं। जानकारों के मुताबिक, उनकी एंडोर्समेंट फीस 10-12 करोड़ प्रति ब्रैंड है, जो भारतीय क्रिकेट टीम के टेस्ट कप्तान विरोट कोहली से ज्यादा है।
हालांकि, क्या ये तमाम चीजें बदल सकती हैं? शायद हां। इकनॉमिक टाइम्स ने इस सिलसिले में कुछ सीएक्सओ और एक्सपर्ट्स से बात की। उनका कहना था कि मार्केटिंग के लायक क्रिकेटर्स की कमी के कारण धोनी का ब्रैंड कुछ हद तक टिका रह सकता है, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट्स के रिन्यूअल के वक्त एंडोर्समेंट रेट में भारी गिरावट हो सकती है। इस रेट में 25-30 फीसदी तक गिरावट हो सकती है।
इकनॉमिक टाइम्स ने इस बारे में धोनी से जुड़े दर्जनभर ब्रैंड्स से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। हालांकि, कुछ सीएक्सओ का ऑफ द रिकॉर्ड कहना था कि ब्रैंड की दुनिया में धोनी की चमक अब फीकी पड़ने लगी है। कई एक्सपर्ट्स की भी यही राय है और उन्होंने आधिकारिक तौर पर यह बात कही भी।
धोनी से जुड़े एक बड़े ब्रैंड के सीईओ का कहना था कि निश्चित तौर पर उनके ब्रैंड वैल्यू में गिरावट हो रही है। उन्होंने बताया, 'वह टेस्ट क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं और इससे उनके वैल्यूएशन पर असर पड़ रहा है। हालांकि, मार्केटिंग के लायक क्रिकेटर्स की कमी के कारण उनका कॉन्ट्रैक्ट जारी रहेगा, लेकिन शर्तें और फीस पहले जैसी नहीं रहेंगी।'
ब्रैंड धोनी से जुड़े एक और ब्रैंड के सीएक्सओ का कहना था कि उनकी कंपनी अपने अलग-अलग विज्ञापन दिखाने की तैयारी में है, ताकि धोनी बाकी स्पोर्ट्स स्टार और बॉलिवुड की हस्तियों के साथ स्पेस साझा कर सकें।
हालांकि, धोनी के बिजनस असोसिएट्स की राय अलग है। उनके जिम वेंचर से जुड़े असोसिएट ने बताया, 'यह सच है कि क्रिकेट के वैल्यूएशन में गिरावट आ रही है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हम धोनी से अलग होने जा रहे हैं। हमारा लॉन्ग टर्म रिश्ता है।'
एक और अधिकारी का कहना था कि धोनी और उनके पार्टनर अरुण पांडे (ऋति स्पोर्ट्स) ने अपना बिजनेस पार्टनर चुनने में काफी स्मार्ट तरीके से काम किया है। ये सभी उनके करीबी दोस्त और फैमिली है, लिहाजा इस पर खतरा नहीं है। बहरहाल, धोनी के बिजनेस मैनेजर की अलग राय है। पांडे का कहना है कि हर कोई मौजूदा हालात का फायदा उठाकर धोनी के खिलाफ बोल रहा है। उन्होंने कहा, 'आईपीएल विवाद से धोनी के ब्रांड वैल्यू पर असर पड़ने की चौतरफा चर्चा हो रही है। ऐसा नहीं है। लोगों को जो कहना है, वे कहें, इससे हम पर कुछ फर्क नहीं पड़ता। धोनी इंटरनेशनल स्पोर्ट्स स्टार और यूथ आइकन हैं और बने रहेंगे।'
सौजन्य: INDIA TIMES NEWS
वह अब भी 18 ब्रैंड्स को एंडोर्स करते हैं। इनमें पेप्सी, रीबॉक, टीवीएस, बूस्ट, स्टारस्पोर्ट्स प्रमुख हैं। जानकारों के मुताबिक, उनकी एंडोर्समेंट फीस 10-12 करोड़ प्रति ब्रैंड है, जो भारतीय क्रिकेट टीम के टेस्ट कप्तान विरोट कोहली से ज्यादा है।
हालांकि, क्या ये तमाम चीजें बदल सकती हैं? शायद हां। इकनॉमिक टाइम्स ने इस सिलसिले में कुछ सीएक्सओ और एक्सपर्ट्स से बात की। उनका कहना था कि मार्केटिंग के लायक क्रिकेटर्स की कमी के कारण धोनी का ब्रैंड कुछ हद तक टिका रह सकता है, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट्स के रिन्यूअल के वक्त एंडोर्समेंट रेट में भारी गिरावट हो सकती है। इस रेट में 25-30 फीसदी तक गिरावट हो सकती है।
इकनॉमिक टाइम्स ने इस बारे में धोनी से जुड़े दर्जनभर ब्रैंड्स से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। हालांकि, कुछ सीएक्सओ का ऑफ द रिकॉर्ड कहना था कि ब्रैंड की दुनिया में धोनी की चमक अब फीकी पड़ने लगी है। कई एक्सपर्ट्स की भी यही राय है और उन्होंने आधिकारिक तौर पर यह बात कही भी।
धोनी से जुड़े एक बड़े ब्रैंड के सीईओ का कहना था कि निश्चित तौर पर उनके ब्रैंड वैल्यू में गिरावट हो रही है। उन्होंने बताया, 'वह टेस्ट क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं और इससे उनके वैल्यूएशन पर असर पड़ रहा है। हालांकि, मार्केटिंग के लायक क्रिकेटर्स की कमी के कारण उनका कॉन्ट्रैक्ट जारी रहेगा, लेकिन शर्तें और फीस पहले जैसी नहीं रहेंगी।'
ब्रैंड धोनी से जुड़े एक और ब्रैंड के सीएक्सओ का कहना था कि उनकी कंपनी अपने अलग-अलग विज्ञापन दिखाने की तैयारी में है, ताकि धोनी बाकी स्पोर्ट्स स्टार और बॉलिवुड की हस्तियों के साथ स्पेस साझा कर सकें।
हालांकि, धोनी के बिजनस असोसिएट्स की राय अलग है। उनके जिम वेंचर से जुड़े असोसिएट ने बताया, 'यह सच है कि क्रिकेट के वैल्यूएशन में गिरावट आ रही है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हम धोनी से अलग होने जा रहे हैं। हमारा लॉन्ग टर्म रिश्ता है।'
एक और अधिकारी का कहना था कि धोनी और उनके पार्टनर अरुण पांडे (ऋति स्पोर्ट्स) ने अपना बिजनेस पार्टनर चुनने में काफी स्मार्ट तरीके से काम किया है। ये सभी उनके करीबी दोस्त और फैमिली है, लिहाजा इस पर खतरा नहीं है। बहरहाल, धोनी के बिजनेस मैनेजर की अलग राय है। पांडे का कहना है कि हर कोई मौजूदा हालात का फायदा उठाकर धोनी के खिलाफ बोल रहा है। उन्होंने कहा, 'आईपीएल विवाद से धोनी के ब्रांड वैल्यू पर असर पड़ने की चौतरफा चर्चा हो रही है। ऐसा नहीं है। लोगों को जो कहना है, वे कहें, इससे हम पर कुछ फर्क नहीं पड़ता। धोनी इंटरनेशनल स्पोर्ट्स स्टार और यूथ आइकन हैं और बने रहेंगे।'
सौजन्य: INDIA TIMES NEWS
खुद को देवी बतानेवाली राधे मां के खिलाफ केस दर्ज!
मुंबई। खुद को देवी का अवतार बताने वाली राधे मां खुद कानून के शिकंजे में फंसती नजर आ रही हैं। मुंबई के बोरीवली इलाके में राधे मां सहित 7 लोगों पर केस दर्ज किया गया है। दरअसल एक महिला ने राधे मां और अपने पति सहित 7 लोगों पर प्रताड़ना और मारपीट का केस दर्ज कराया है। महिला का आरोप है कि राधे मां की वजह से उसकी बसी-बसाई जिंदगी तबाह हो गई।
आरोप है कि राधे मां के भक्त ससुरालवालों ने राधे मां के कहने पर महिला के साथ अमानवीय बर्ताव किया और लड़की के घरवालों से पैसे के लिए दबाव डाला। आरोप लगाया जा रहा है कि जब महिला की शादी तय हुई थी तो राधे में ने महिला के परिवार से अपनी शान-शौकत के हिसाब से तैयारी करने के कहा।
खुद को देवी का अवतार बताने वाली राधे मां खुद कानून के शिकंजे में फंसती नजर आ रही हैं।
शादी में आने के लिए हेलीकॉप्टर और महंगी गाड़ी मुहैया कराने को कहा, लेकिन लड़की का परिवार ये सब नहीं कर सका। फिर 25 लाख दहेज पर शादी तय की गई और शादी के बाद राधे मां के बोरीवली स्थित आश्रम में महिला से नौकरों की तरह काम कराया जाता था। यही नहीं आरोप है कि काम में कोताही होने पर राधे मां महिला को लात-घूंसों से पिटाई भी करती थी।
आरोप है कि राधे मां के भक्त महिला के ससुरालवाले भी महिला पर अत्याचार करते थे। इसके बाद राधे मां के ही कहने पर ससुरालवालों ने महिला को घर से निकाल दिया, जिसके बाद महिला ने मुंबई की कांदिवली पुलिस स्टेशन में ससुराल के लोगों सहित राधे मां के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।
सौजन्य: IBN7 NEWS
आरोप है कि राधे मां के भक्त ससुरालवालों ने राधे मां के कहने पर महिला के साथ अमानवीय बर्ताव किया और लड़की के घरवालों से पैसे के लिए दबाव डाला। आरोप लगाया जा रहा है कि जब महिला की शादी तय हुई थी तो राधे में ने महिला के परिवार से अपनी शान-शौकत के हिसाब से तैयारी करने के कहा।
खुद को देवी का अवतार बताने वाली राधे मां खुद कानून के शिकंजे में फंसती नजर आ रही हैं।
शादी में आने के लिए हेलीकॉप्टर और महंगी गाड़ी मुहैया कराने को कहा, लेकिन लड़की का परिवार ये सब नहीं कर सका। फिर 25 लाख दहेज पर शादी तय की गई और शादी के बाद राधे मां के बोरीवली स्थित आश्रम में महिला से नौकरों की तरह काम कराया जाता था। यही नहीं आरोप है कि काम में कोताही होने पर राधे मां महिला को लात-घूंसों से पिटाई भी करती थी।
आरोप है कि राधे मां के भक्त महिला के ससुरालवाले भी महिला पर अत्याचार करते थे। इसके बाद राधे मां के ही कहने पर ससुरालवालों ने महिला को घर से निकाल दिया, जिसके बाद महिला ने मुंबई की कांदिवली पुलिस स्टेशन में ससुराल के लोगों सहित राधे मां के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।
सौजन्य: IBN7 NEWS
गुरदासपुर आतंकी हमले पर पीएम ने बुलाई बैठक!
5:45 PM
Posted by Unknown
#Gurdaspur Attack, #home minister#, #Terrorist attack, Rajnath Singh
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नई दिल्ली। पीएम मोदी ने गुरदासपुर में हुए आतंकवादी के हमले के मद्देनजर अहम बैठक बुलाई है। फिलहाल कई वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक चल रही है। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से बात की और उन्हें स्थिति से निपटने के लिए केंद्र की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराने का आश्वासन दिया। राजनाथ ने कहा कि मैंने पंजाब के मुख्यमंत्री से बात की है जिन्होंने मुझे गुरदासपुर में हो रही गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। सुरक्षा बलों को घटनास्थल भेजा गया है।
गृहमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है और उन्हें भरोसा है कि स्थिति को काबू में कर लिया जाएगा। सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और केंद्रीय गृह सचिव एल सी गोयल से भी बात की। उन्होंने गुरदासपुर में स्थिति की समीक्षा की जहां सेना की वर्दी पहने तीन से चार संदिग्ध आतंकवादियों ने आज तड़के एक बस पर गोलीबारी की और एक पुलिस थाने पर हमला किया। जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरदासपुर में हुए आतंकवादी के हमले के मद्देनजर अहम बैठक बुलाई है।
गोयल ने पंजाब के पुलिस महानिदेशक से बात की और उन्हें स्थिति से निपटने के लिए केंद्र की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराने का वादा किया। गृहमंत्री ने बीएसएफ को आदेश दिया कि वह पुलिस की मदद के लिए बलों को तत्काल गुरदासपुर भेजे। उन्होंने बीएसएफ से पाकिस्तान से सटी संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया। एनएसजी के कमांडो भी पंजाब रवाना हो सकते हैं। सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा बलों की तत्काल प्राथमिकता संदिग्ध आतंकवादियों को बेअसर करना है।
सौजन्य: IBN7 NEWS
गृहमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है और उन्हें भरोसा है कि स्थिति को काबू में कर लिया जाएगा। सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और केंद्रीय गृह सचिव एल सी गोयल से भी बात की। उन्होंने गुरदासपुर में स्थिति की समीक्षा की जहां सेना की वर्दी पहने तीन से चार संदिग्ध आतंकवादियों ने आज तड़के एक बस पर गोलीबारी की और एक पुलिस थाने पर हमला किया। जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरदासपुर में हुए आतंकवादी के हमले के मद्देनजर अहम बैठक बुलाई है।
गोयल ने पंजाब के पुलिस महानिदेशक से बात की और उन्हें स्थिति से निपटने के लिए केंद्र की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराने का वादा किया। गृहमंत्री ने बीएसएफ को आदेश दिया कि वह पुलिस की मदद के लिए बलों को तत्काल गुरदासपुर भेजे। उन्होंने बीएसएफ से पाकिस्तान से सटी संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया। एनएसजी के कमांडो भी पंजाब रवाना हो सकते हैं। सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा बलों की तत्काल प्राथमिकता संदिग्ध आतंकवादियों को बेअसर करना है।
सौजन्य: IBN7 NEWS
बॉलीवुड में आने से पहले ये काम करते थे फिल्म स्टार्स!
कहते हैं मुंबई मायानगरी है। किसी को रातोरात सितारा बना देती है, तो किसी को कंगाल। पर मायानगरी में जगह बनाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है मौका मिलना। ऐसे में काम की तलाश में आए सितारों की बाद की जिंदगी तो सभी जान जाते हैं, पर अतीत बहुत कम लोग ही जान पाते हैं। आईबीएनखबर.कॉम अपनी इस पेशकश में ऐसे सितारों के बारे में बता रहा है, जो आज बहुत सफल हैं, पर वो फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले कुछ और काम किया करते थे...
बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार फिल्मों से पहले शेफ थे। वो बैंकॉक में लोगों को अपने हाथों से बने लजीज व्यंजन खिलाया करते थे। वहीं पर उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली और फिर बन गए बॉलीवु़ड के मिस्टर खिलाड़ी।
बॉलीवु़ड के शहंशाह अमिताभ बच्चने फिल्मों में आने से पहले कोलकाता की शिपिंग कंपनी में काम किया। उन्होंने रेडियो पर काम करने के लिए भी ट्राई किया, पर दोनों जगहों की विफलता ने उन्हें बॉलीवुड पहुंचाया और आज अमिताभ बच्चन की जगह हर कोई जानता है।
अरशद वारसी इंडस्ट्री के उन सितारों में से हैं, जिनमें धेर सारा टैलेंट है। अरशद फिल्मों में आने से पहले कोरियोग्राफर और डांसर रहे। पर सबसे पहला काम उन्होंने कॉस्मेटिक ऑइटम्स बेचने वाले सेल्समैन का किया।
मिस श्रीलंका रही जैक्लीन फर्नांडिस बॉलीवुड में आने से पहले टीवी रिपोर्टर रही और टीवी इंडस्ट्री में भी काम किया था।
कल्कि कोएचलिन ने इंडस्ट्री में आने से पहले वेटर का काम किया। जो उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए किया।
सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान ने फिल्मों में आने से पहले सिटी बैंक में काम किया। उन्हें सबसे पहले बंगाली फिल्म इति श्रीकांत में काम किया और बॉलीवुड में दिल मांगे मोर के साथ शुरुआत की।
सनी लियोनी ने एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री में काम करने से पहले जर्मन बेकरी में काम किया। इसके बाद उन्होंने टैक्स और रिटायरमेंट फर्म में काम किया।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। पर उन्होंने लंबा संघर्ष किया। नवाजुद्दी ने सबसे पहले एक पेट्रो केमिकल कंपनी में केमिस्ट की जॉब की। इसके बाद उन्हें सरफरोस फिल्म में काम किया। सरफरोस फिल्म में आने से पहले नवाजुद्दी ने दिल्ली में वाचमैन का काम भी किया
बॉलीवुड के किंग शाहरूख खान ने फिल्मों में आने से पहले पार्टियों में सहायक का काम किया। उन्होंने पंकज उधास के गजल की महफिल में भी सहायक का काम कि.या और उन्हें 50 रुपए मिले।
इरफान खान ने अपने दम पर इंडस्ट्री में पहचान बनाई। इरफान ने इंडस्ट्री में आने से पहले ट्यूशन टीचर का काम किया। उन्होंने 25 रुपए माह पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया।
सौजन्य: IBN7 NEWS
बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार फिल्मों से पहले शेफ थे। वो बैंकॉक में लोगों को अपने हाथों से बने लजीज व्यंजन खिलाया करते थे। वहीं पर उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली और फिर बन गए बॉलीवु़ड के मिस्टर खिलाड़ी।
बॉलीवु़ड के शहंशाह अमिताभ बच्चने फिल्मों में आने से पहले कोलकाता की शिपिंग कंपनी में काम किया। उन्होंने रेडियो पर काम करने के लिए भी ट्राई किया, पर दोनों जगहों की विफलता ने उन्हें बॉलीवुड पहुंचाया और आज अमिताभ बच्चन की जगह हर कोई जानता है।
अरशद वारसी इंडस्ट्री के उन सितारों में से हैं, जिनमें धेर सारा टैलेंट है। अरशद फिल्मों में आने से पहले कोरियोग्राफर और डांसर रहे। पर सबसे पहला काम उन्होंने कॉस्मेटिक ऑइटम्स बेचने वाले सेल्समैन का किया।
मिस श्रीलंका रही जैक्लीन फर्नांडिस बॉलीवुड में आने से पहले टीवी रिपोर्टर रही और टीवी इंडस्ट्री में भी काम किया था।
कल्कि कोएचलिन ने इंडस्ट्री में आने से पहले वेटर का काम किया। जो उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए किया।
सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान ने फिल्मों में आने से पहले सिटी बैंक में काम किया। उन्हें सबसे पहले बंगाली फिल्म इति श्रीकांत में काम किया और बॉलीवुड में दिल मांगे मोर के साथ शुरुआत की।
सनी लियोनी ने एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री में काम करने से पहले जर्मन बेकरी में काम किया। इसके बाद उन्होंने टैक्स और रिटायरमेंट फर्म में काम किया।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। पर उन्होंने लंबा संघर्ष किया। नवाजुद्दी ने सबसे पहले एक पेट्रो केमिकल कंपनी में केमिस्ट की जॉब की। इसके बाद उन्हें सरफरोस फिल्म में काम किया। सरफरोस फिल्म में आने से पहले नवाजुद्दी ने दिल्ली में वाचमैन का काम भी किया
बॉलीवुड के किंग शाहरूख खान ने फिल्मों में आने से पहले पार्टियों में सहायक का काम किया। उन्होंने पंकज उधास के गजल की महफिल में भी सहायक का काम कि.या और उन्हें 50 रुपए मिले।
इरफान खान ने अपने दम पर इंडस्ट्री में पहचान बनाई। इरफान ने इंडस्ट्री में आने से पहले ट्यूशन टीचर का काम किया। उन्होंने 25 रुपए माह पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया।
सौजन्य: IBN7 NEWS
गवाह का दावा, आसाराम के पास 2,000 की फिदायीन फौज
बरेली-आसाराम मामले में नारायण पांडे नाम के एक व्यक्ति ने पुलिस के सामने गवाही दी है कि वह केस से जुड़े एक अहम गवाह की हत्या में शामिल था। उसने पुलिस को एक और चौंकाने वाला बयान दिया है।
पांडे के मुताबिक, आसाराम के पास उसके 2,000 समर्थकों की एक फिदायीन फौज है, जिनका आसाराम के प्रति इतना समर्पण है कि वे उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। पांडे ने पुलिस को बताया कि आसाराम के खिलाफ जाने वाले किसी भी व्यक्ति को यह फिदायीन फौज मार सकती है और जरूरत पड़ने पर ये लोग खुद भी मरने के लिए तैयार रहते हैं।
पांडे की इस अहम गवाही के बाद पुलिस ने शाहजहांपुर की उस पीड़िता की सुरक्षा बढ़ा दी है जिसने आसाराम के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया था।
सदर बाजार पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर जे.पी.तिवारी ने कहा कि पांडे की गवाही के बाद पुलिस को इस मामले से जुड़े और भी लोगों पर हमले की आशंका है। उन्होंने बताया कि पांडे की गवाही के मुताबिक, फिदायीन टुकड़ी के लोग व आसाराम के कई अन्य सहयोगी पीड़ित लड़की और उसके पिता को मारने की योजना बना रहे हैं। मालूम हो कि जिस गवाह की हत्या बीती 10 जुलाई को की गई थी, वह इंस्पेक्टर तिवारी के ही अधिकार में कैद था।
सौजन्य: INDIATIMES NEWS
पांडे के मुताबिक, आसाराम के पास उसके 2,000 समर्थकों की एक फिदायीन फौज है, जिनका आसाराम के प्रति इतना समर्पण है कि वे उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। पांडे ने पुलिस को बताया कि आसाराम के खिलाफ जाने वाले किसी भी व्यक्ति को यह फिदायीन फौज मार सकती है और जरूरत पड़ने पर ये लोग खुद भी मरने के लिए तैयार रहते हैं।
पांडे की इस अहम गवाही के बाद पुलिस ने शाहजहांपुर की उस पीड़िता की सुरक्षा बढ़ा दी है जिसने आसाराम के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया था।
सदर बाजार पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर जे.पी.तिवारी ने कहा कि पांडे की गवाही के बाद पुलिस को इस मामले से जुड़े और भी लोगों पर हमले की आशंका है। उन्होंने बताया कि पांडे की गवाही के मुताबिक, फिदायीन टुकड़ी के लोग व आसाराम के कई अन्य सहयोगी पीड़ित लड़की और उसके पिता को मारने की योजना बना रहे हैं। मालूम हो कि जिस गवाह की हत्या बीती 10 जुलाई को की गई थी, वह इंस्पेक्टर तिवारी के ही अधिकार में कैद था।
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पंजाब को फिर दहलाने की कोशिश, गुरदासपुर में पुलिस थाने पर आतंकी हमला, तीन की मौत, रेलवे ट्रैक पर जिंदा बम मिले
9:25 AM
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पंजाब में पुलिस थाने पर आतंकी हमला, तीन की मौत, रेलवे ट्रैक पर जिंदा बम मिलेगुरदासपुर: पंजाब में गुरदासपुर के दीनानगर पुलिस स्टेशन पर आतंकियों ने हमला कर दिया है, जिसमें दो पुलिसकर्मियों और एक स्थानीय नागरिक के मारे जाने की खबर है। इसके अलावा सात लोग घायल बताए जा रहे हैं।
गृह मंत्रालय ने इस घटना के आतंकी हमला होने की पुष्टि की है। आतंकियों के खिलाफ हेलिकॉप्टर के जरिये कमांडो कार्रवाई की जा रही है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से बात की है। केंद्रीय गृह सचिव ने पंजाब के डीजीपी से हालात पर चर्चा की है।
बताया जा रहा है कि तीन से चार की संख्या में हमलावर पहुंचे। वे सफ़ेद मारुति कार में आए थे और उन्होंने फ़ायरिंग करते हुए थाने पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस कार को भी उन्होंने हाइजैक कर अपने कब्जे में कर लिया था।
सुरक्षाबल के जवानों ने थाने को घेर लिया है और हमलावरों पर कार्रवाई की जा रही है। फायरिंग की आवाजें लगातार आ रही हैं। बताया जा रहा है कि हमलावरों के पास भारी संख्या में हथियार मौजूद है। वहीं दीनानगर-पठानकोट रेलवे ट्रैक पर पांच बम भी मिले हैं। यह इलाका पाकिस्तान सीमा से सटा हुआ है।
Sunday, July 26, 2015
देखिये, प्लास्टिक की बोतलों से बनता घर
6:04 PM
Posted by Unknown
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यहां आदिवासी करते हैं शिवलिंगम की पूजा, भारत की गुफाएं व उनका महत्व
भारत सुंदरता और विविधताओं का देश है। इसकी विशेषताओं के बारे में जितना बताया जाए, कम होगा। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और प्राचीन गुफाएं आज भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देती हैं। देश की गुफाएं यहां के इतिहास की कहानी कहती हैं। आज हम आपको भारत की कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक गुफाओं के बारे में बता रहे हैं। यहां आप बच्चों और फैमिली के साथ घूमने के लिए जा सकते हैं।
1-बॉर्रा गुफा
यह गुफा आंध्र प्रदेश के विशाखापट्ट्नम जिले में अराक वैली की अनंतगिरी पहाड़ी में स्थित है। विशाखापट्टनम के बेस्ट टूरिस्ट प्लेसेस में यह गुफा शामिल है। इस गुफा में आपको शिवलिंग मिलेगा, जिसकी पूजा आस-पास के आदिवासी लोग करते हैं। आंध्र प्रदेश की बेलम और उंडावल्ली गुफाएं फेसम गुफाओं में से हैं।
2-बाघ गुफाएं
मध्य प्रदेश में विध्यांचल की दक्षिणी ढलानों के बीच में बौद्ध रॉक कट गुफा स्थित है। यह गुफा फेमस नौ रॉक कट पहाड़ों में से एक है, जिन पर पेंटिंग्स बनायी गई हैं, जिसे ‘रंग महल’ और ‘प्लेस ऑफ कलर’ के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश में इन गुफाओं के अलावा भीमबैटका और विदिशा में स्थित उदयगिरी गुफाएं भी प्रसिद्ध हैं।
3-उदयगिरी गुफाएं
उदयगिरी की गुफाएं आदिवासी बहुल राज्य ओडिशा में भुवनेश्वर के निकट स्थित हैं। उदयगिरी गुफा और खंडगिरी गुफा 33 पहाड़ों को काटकर बनाई गई हैं। ये अपने कक्षों, मूर्तियों और दीवारों पर की गई चित्रकारी के लिए फेमस हैं। बेहद आकर्षक इन दोनों गुफाओं से कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं।
4-बादामी गुफा
यह सुंदर और नक्काशीदार गुफा कर्नाटक के बादामी में स्थित है। बादामी की चार गुफाओं में से दो गुफाएं भगवान विष्णु, एक भगवान शिव और एक जैन धर्म से संबंधित बताई जाती हैं। पहाड़ों को काट कर लाल पत्थर से बनायी गई ये गुफाएं अपनी सुंदरता के लिए फेमस हैं। पत्थरों में की गयी नक्काशी देखने लायक है। इसके अलावा, कर्नाटक में एहिलो गुफा भी आकर्षण का केंद्र है।
5-बाराबर गुफाएं
बाराबर गुफाएं बिहार के गया जिले में स्थित हैं। ये गुफाएं बाराबर की दो पहाड़ियों में हैं। यहां कुल चार गुफाएं हैं और नागार्जुन की पहाड़ियों में तीन गुफाएं हैं। ये गुफाएं देश की सबसे प्राचीन गुफाओं में से हैं। यहां कलाकृतियां भी मिलती हैं। इन गुफाओं के अलावा, सुदामा और सोनभद्रा भी बिहार की प्रसिद्ध गुफाओं में से एक हैं।
6-अजंता की गुफाएं
महाराष्ट्र के जलगांव में देश की सबसे खूबसूरत और बड़ी गुफाओं में से एक है यह गुफा। इन गुफाओं की दीवारों पर पेंटिंग्स बनी हुई हैं, जो प्राचीन मनुष्य की कला का अनूठा उदाहरण हैं। भारत की अजंता और एलोरा की गुफाओं की कलाकृतियों दुनिया भर के पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। ये बौद्ध काल की बताई जाती हैं। महाराष्ट्र की दूसरी फेमस गुफाएं हैं कारला, भाजा और कन्हेरी। एलोरा और एलिफेंटा तो दुनिया भर में मशहूर गुफाओं में से एक हैं
7-एडाक्कल गुफा
केरल के वयनाड की अंबुकुथी हिल्स में दो प्राकृतिक गुफाएं हैं। एडाक्कल की ये दोनों गुफाएं पवित्र स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं। एडाक्कल गुफा का मतलब होता है ‘पत्थरों के बीच’, जो प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाता है।
8-वराह गुफाएं
तमिलनाडु में चेन्नई के कोरोमंडल के पास महाबलिपुरम में यह गुफा स्थित है। वराह गुफा में भगवान विष्णु का मंदिर है। चट्टानों को काट कर की गई कलाकारी इतनी सुंदर है कि इसे यूनेस्को की विश्व विरासत का हिस्सा बनाया गया है। वराह गुफा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस गुफा के अलावा सित्तनवसल और नार्थमलाई गुफा भी काफी फेमस है।
9-माव्समाई गुफा
माव्समाई गुफा मेघालय के चेरापूंजी के पास स्थित है, जिसे दुनिया का सबसे नमी वाला स्थान माना जाता है। लाइमस्टोन से बना यह ख़ूबसूरत केव नौशन्तियांग झरने से ज़्यादा दूर नहीं है। माव्समाई केव इंडिया के मोस्ट पॉपुलर केव्स में एक है, जहां रोशनी भी है, जबकि दूसरे केव अंधेरे हैं।
10-जोगीमारा गुफा
छत्तीसगढ़ में आपको देखने के लिए घने जंगल, वन्य जीव, आदिवासी और प्राकृतिक सुंदरता मिलेगी। सीताबेंग गुफा सरगुजा जिले के अंबिकापुर की रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित है। दरअसल, ये दो गुफाएं हैं। एक सीताबेंग और दूसरी जोगीमारा। यहां तक पहुंचने के लिए आपको प्राकृतिक टनल हतिपल के रास्ते से जाना होगा। छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों और घने जंगल से होते हुए ही आप कैलाश गुफा, दंडक गुफा और कुटुमसर गुफा (जो कांगड़ वैली के नेशनल पार्क के पास है) तक पहुंच सकते हैं।
1-बॉर्रा गुफा
यह गुफा आंध्र प्रदेश के विशाखापट्ट्नम जिले में अराक वैली की अनंतगिरी पहाड़ी में स्थित है। विशाखापट्टनम के बेस्ट टूरिस्ट प्लेसेस में यह गुफा शामिल है। इस गुफा में आपको शिवलिंग मिलेगा, जिसकी पूजा आस-पास के आदिवासी लोग करते हैं। आंध्र प्रदेश की बेलम और उंडावल्ली गुफाएं फेसम गुफाओं में से हैं।
2-बाघ गुफाएं
मध्य प्रदेश में विध्यांचल की दक्षिणी ढलानों के बीच में बौद्ध रॉक कट गुफा स्थित है। यह गुफा फेमस नौ रॉक कट पहाड़ों में से एक है, जिन पर पेंटिंग्स बनायी गई हैं, जिसे ‘रंग महल’ और ‘प्लेस ऑफ कलर’ के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश में इन गुफाओं के अलावा भीमबैटका और विदिशा में स्थित उदयगिरी गुफाएं भी प्रसिद्ध हैं।
3-उदयगिरी गुफाएं
उदयगिरी की गुफाएं आदिवासी बहुल राज्य ओडिशा में भुवनेश्वर के निकट स्थित हैं। उदयगिरी गुफा और खंडगिरी गुफा 33 पहाड़ों को काटकर बनाई गई हैं। ये अपने कक्षों, मूर्तियों और दीवारों पर की गई चित्रकारी के लिए फेमस हैं। बेहद आकर्षक इन दोनों गुफाओं से कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं।
4-बादामी गुफा
यह सुंदर और नक्काशीदार गुफा कर्नाटक के बादामी में स्थित है। बादामी की चार गुफाओं में से दो गुफाएं भगवान विष्णु, एक भगवान शिव और एक जैन धर्म से संबंधित बताई जाती हैं। पहाड़ों को काट कर लाल पत्थर से बनायी गई ये गुफाएं अपनी सुंदरता के लिए फेमस हैं। पत्थरों में की गयी नक्काशी देखने लायक है। इसके अलावा, कर्नाटक में एहिलो गुफा भी आकर्षण का केंद्र है।
5-बाराबर गुफाएं
बाराबर गुफाएं बिहार के गया जिले में स्थित हैं। ये गुफाएं बाराबर की दो पहाड़ियों में हैं। यहां कुल चार गुफाएं हैं और नागार्जुन की पहाड़ियों में तीन गुफाएं हैं। ये गुफाएं देश की सबसे प्राचीन गुफाओं में से हैं। यहां कलाकृतियां भी मिलती हैं। इन गुफाओं के अलावा, सुदामा और सोनभद्रा भी बिहार की प्रसिद्ध गुफाओं में से एक हैं।
6-अजंता की गुफाएं
महाराष्ट्र के जलगांव में देश की सबसे खूबसूरत और बड़ी गुफाओं में से एक है यह गुफा। इन गुफाओं की दीवारों पर पेंटिंग्स बनी हुई हैं, जो प्राचीन मनुष्य की कला का अनूठा उदाहरण हैं। भारत की अजंता और एलोरा की गुफाओं की कलाकृतियों दुनिया भर के पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। ये बौद्ध काल की बताई जाती हैं। महाराष्ट्र की दूसरी फेमस गुफाएं हैं कारला, भाजा और कन्हेरी। एलोरा और एलिफेंटा तो दुनिया भर में मशहूर गुफाओं में से एक हैं
7-एडाक्कल गुफा
केरल के वयनाड की अंबुकुथी हिल्स में दो प्राकृतिक गुफाएं हैं। एडाक्कल की ये दोनों गुफाएं पवित्र स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं। एडाक्कल गुफा का मतलब होता है ‘पत्थरों के बीच’, जो प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाता है।
8-वराह गुफाएं
तमिलनाडु में चेन्नई के कोरोमंडल के पास महाबलिपुरम में यह गुफा स्थित है। वराह गुफा में भगवान विष्णु का मंदिर है। चट्टानों को काट कर की गई कलाकारी इतनी सुंदर है कि इसे यूनेस्को की विश्व विरासत का हिस्सा बनाया गया है। वराह गुफा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस गुफा के अलावा सित्तनवसल और नार्थमलाई गुफा भी काफी फेमस है।
9-माव्समाई गुफा
माव्समाई गुफा मेघालय के चेरापूंजी के पास स्थित है, जिसे दुनिया का सबसे नमी वाला स्थान माना जाता है। लाइमस्टोन से बना यह ख़ूबसूरत केव नौशन्तियांग झरने से ज़्यादा दूर नहीं है। माव्समाई केव इंडिया के मोस्ट पॉपुलर केव्स में एक है, जहां रोशनी भी है, जबकि दूसरे केव अंधेरे हैं।
10-जोगीमारा गुफा
छत्तीसगढ़ में आपको देखने के लिए घने जंगल, वन्य जीव, आदिवासी और प्राकृतिक सुंदरता मिलेगी। सीताबेंग गुफा सरगुजा जिले के अंबिकापुर की रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित है। दरअसल, ये दो गुफाएं हैं। एक सीताबेंग और दूसरी जोगीमारा। यहां तक पहुंचने के लिए आपको प्राकृतिक टनल हतिपल के रास्ते से जाना होगा। छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों और घने जंगल से होते हुए ही आप कैलाश गुफा, दंडक गुफा और कुटुमसर गुफा (जो कांगड़ वैली के नेशनल पार्क के पास है) तक पहुंच सकते हैं।
पुनर्जन्म से जुडी 10 सच्ची घटनाए
जैसे भूत, प्रेत, आत्मा, से जुडी घटनाएं हमेशा से एक विवाद का विषय रही है वैसे ही पुनर्जन्म से जुड़ी घटनाय और कहानिया भी हमेशा से विवाद का विषय रही है। इन पर विश्वास और अविश्वास करने वाले, दोनो हि बड़ी संख्या मे है, जिनके पास अपने अपने तर्क है। यहुदी, ईसाईयत और इस्लाम तीनो धर्म पुनर्जन्म मे यकीन नही करते है, इसके विपरीत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म पुनर्जन्म मे यकीन करते है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है।
पुनर्जन्म के ऊपर अब तक हुए शोधों मे दो शोध (रिसर्च) बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का। इन्होने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब “रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी” लीखी जो कि पुनर्जन्म से सम्बन्धित सबसे महत्तवपूर्ण बुक मानी जाती है। दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है। इन्होने भी एक बुक “श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया” लिखी है। इसमें 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओ का उल्लेख है।
गीताप्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब ‘परलोक और पुनर्जन्मांक’ में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है। हम उनमे से 10 कहानियां यहां पर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है।
पहली घटना –
यह घटना सन 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बी. एल. वाष्र्णेय के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा।
प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आने लगी। संयोगवश उस दिन प्रकाशकी मुलाकात अपने पूर्व जन्म के पिता भोलानाथ जैन से नहीं हो पाई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्व जन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई।
सन 1961 में भोलनाथ जैन का छत्ता गांव जाना हुआ। वहां उन्हें पता चला कि यहां प्रकाश नामक का कोई लड़का उनके मृत पुत्र निर्मल के बारे में बातें करता है। यह सुनकर वे वाष्र्णेय परिवार में गए। प्रकाश ने फौरन उन्हें अपने पूर्व जन्म के पिता के रूप में पहचान लिया। उसने अपने पिता को कई ऐसी बातें बताई जो सिर्फ उनका बेटा निर्मल ही जानता था।
दूसरी घटना :
यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरु कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।
एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे। बाद में भेद चला कि श्रीचतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी श्रीविश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।
तीसरी घटना :
सन 1960 में प्रवीणचंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की।
जानकारी मिली कि जूनागढ़ के गोकुलदास ठक्कर की बेटी गीता की मृत्यु अक्टूबर 1559 में हुई थी। उस समय वह ढाई साल की थी। वजुभाई शाह 1965 में अपने कुछ रिश्तेदारों और राजूल को लेकर जूनागढ़ आए। यहां राजून ने अपने पूर्वजन्म के माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को पहचान लिया। राजूल ने अपना घर और वह मंदिर भी पहचान लिया जहां वह अपनी मां के साथ पूजा करने जाती थी।
चौथी घटना :
मध्य प्रदेश के छत्रपुर जिले में एम. एल मिश्र रहते थे। उनकी एक लड़की थी, जिसका नाम स्वर्णलता था। बचपन से ही स्वर्णलता यह बताती थी कि उसका असली घर कटनी में है और उसके दो बेटे हैं। पहले तो घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब वह बार-बार यही बात बोलने लगी तो घर वाले स्वर्णलता को कटनी ले गए। कटनी जाकर स्वर्णलता ने पूर्वजन्म के अपने दोनों बेटों को पहचान लिया। उसने दूसरे लोगों, जगहों, चीजों को भी पहचान लिया।
छानबीन से पता चला कि उसी घर में 18 साल पहले बिंदियादेवी नामक महिला की मृत्यु दिल की धड़कने बंद हो जाने से मर गई थीं। स्वर्णलता ने यह तक बता दिया कि उसकी मृत्यु के बाद उस घर में क्या-क्या परिवर्तन किए गए हैं। बिंदियादेवी के घर वालों ने भी स्वर्णलता को अपना लिया और वही मान-सम्मान दिया जो बिंदियादेवी को मिलता था।
पांचवी घटना :
सन 1956 की बात है। दिल्ली में रहने वाले गुप्ताजी के घर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम गोपाल रखा गया। गोपाल जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम शक्तिपाल था और वह मथुरा में रहता था, मेरे तीन भाई थे उनमें से एक ने मुझे गोली मार दी थी। मथुरा में सुख संचारक कंपनी के नाम से मेरी एक दवाओं की दुकान भी थी।
गोपाल के माता-पिता ने पहले तो उसकी बातों को कोरी बकवास समझा लेकिन बार-बार एक ही बात दोहराने पर गुप्ताजी ने अपने कुछ मित्रों से पूछताछ की। जानकारी निकालने पर पता कि मथुरा में सुख संचारक कंपनी के मालिक शक्तिपाल शर्मा की हत्या उनके भाई ने गोली मारकर कर दी थी। जब शक्तिपाल के परिवार को यह पता चला कि दिल्ली में एक लड़का पिछले जन्म में शक्तिपाल होने का दावा कर रहा है तो शक्तिपाल की पत्नी और भाभी दिल्ली आईं।
गोपाल ने दोनों को पहचान लिया। इसके बाद गोपाल को मथुरा लाया गया। यहां उसने अपना घर, दुकान सभी को ठीक से पहचान लिया साथ ही अपने अपने बेटे और बेटी को भी पहचान लिया। शक्तिपाल के बेटे ने गोपाल के बयानों की तस्दीक की।
छठवी घटना :
न्यूयार्क में रहने वाली क्यूबा निवासी 26 वर्षीया राचाले ग्राण्ड को यह अलौकिक अनुभूति हुआ करती थी कि वह अपने पूर्व जन्म में एक डांसर थीं और यूरोप में रहती थी। उसे अपने पहले जन्म के नाम की स्मृति थी। खोज करने पर पता चला कि यूरोप में आज से 60 वर्ष पूर्व स्पेन में उसके विवरण की एक डांसर रहती थी।
राचाले की कहानी में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जिसमें उसने कहा था कि उसके वर्तमान जन्म में भी वह जन्मजात नर्तकी की है और उसने बिना किसी के मार्गदर्शन अथवा अभ्यास के हाव-भावयुक्त डांस सीख लिया था।
सातवी घटना :
पुनर्जन्म की एक और घटना अमेरिका की है। यहां एक अमेरिकी महिला रोजनबर्ग बार-बार एक शब्द जैन बोला करती थी, जिसका अर्थ न तो वह स्वयं जानती थी और न उसके आस-पास के लोग। साथ ही वह आग से बहुत डरती थी। जन्म से ही उसकी अंगुलियों को देखकर यह लगता था कि जैसे वे कभी जली हों।
एक बार जैन धर्म संबंधी एक गोष्ठी में, जहां वह उपस्थित थी, अचानक रोजनबर्ग को अपने पूर्व जन्म की बातें याद आने लगी। जिसके अनुसार वह भारत के एक जैन मंदिर में रहा करती थी और आग लग जाने की आकस्मिक घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी।
आठवी घटना :
जापान जैसे बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है। 10 अक्टूबर 1815 को जापान के नकावो मूरा नाम के गांव के गेंजो किसान के यहां पुत्र हुआ। उसका नाम कटसूगोरो था। जब वह सात साल का हुआ तो उसने बताया कि पूर्वजन्म में उसका नाम टोजो था और उसके पिता का नाम क्यूबी, बहन का नाम फूसा था तथा मां का नाम शिड्जू था।
6 साल की उम्र में उसकी मृत्यु चेचक से हो गई थी। उसने कई बार कहा कि वह अपने पूर्वजन्म के पिता की कब्र देखने होडोकूबो जाना चाहता है। उसकी दादी (ट्सूया) उसे होडोकूबो ले गई। वहां जाते समय उसने एक घर की ओर इशारा किया और बताया कि यही पूर्वजन्म में उसका घर था।
पूछताछ करने पर यह बात सही निकली। कटसूगोरो ने यह भी बताया कि उस घर के आस-पास पहले तंबाकू की दुकानें नहीं थी। उसकी यह बात भी सही निकली। इस बात ये सिद्ध होता है कि कटसूगोरो ही पिछले जन्म में टोजो था।
नौवी घटना :
थाईलैंड में स्याम नाम के स्थान पर रहने वाली एक लड़की को अपने पूर्वजन्म के बारे में ज्ञात होने का वर्णन मिलता है। एक दिन उस लड़की ने अपने परिवार वालों को बताया कि उसके पिछले जन्म के मां-बाप चीन में रहते हैं और वह उनके पास जाना चाहती है।
उस लड़की को चीनी भाषा का अच्छा ज्ञान भी था। जब उस लड़की की पूर्वजन्म की मां को यह पता चला तो वह उस लड़की से मिलने के लिए स्याम आ गई। लड़की ने अपनी पूर्वजन्म की मां को देखते ही पहचान लिया। बाद में उस लड़की को उस जगह ले जाया गया, जहां वह पिछले जन्म में रहती थी।
उससे पूर्वजन्म से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछे गए। हर बार उस लड़की ने सही जवाब दिया। लड़की ने अपने पूर्व जन्म के पिता को भी पहचान लिया। पुनर्जन्म लेने वाले दूसरे व्यक्तियों की तरह इस लड़की को भी मृत्यु और पुनर्जन्म की अवस्थाओं के बीच की स्थिति की स्मृति थी।
पुनर्जन्म के ऊपर अब तक हुए शोधों मे दो शोध (रिसर्च) बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का। इन्होने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब “रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी” लीखी जो कि पुनर्जन्म से सम्बन्धित सबसे महत्तवपूर्ण बुक मानी जाती है। दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है। इन्होने भी एक बुक “श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया” लिखी है। इसमें 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओ का उल्लेख है।
गीताप्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब ‘परलोक और पुनर्जन्मांक’ में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है। हम उनमे से 10 कहानियां यहां पर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है।
पहली घटना –
यह घटना सन 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बी. एल. वाष्र्णेय के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा।
प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आने लगी। संयोगवश उस दिन प्रकाशकी मुलाकात अपने पूर्व जन्म के पिता भोलानाथ जैन से नहीं हो पाई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्व जन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई।
सन 1961 में भोलनाथ जैन का छत्ता गांव जाना हुआ। वहां उन्हें पता चला कि यहां प्रकाश नामक का कोई लड़का उनके मृत पुत्र निर्मल के बारे में बातें करता है। यह सुनकर वे वाष्र्णेय परिवार में गए। प्रकाश ने फौरन उन्हें अपने पूर्व जन्म के पिता के रूप में पहचान लिया। उसने अपने पिता को कई ऐसी बातें बताई जो सिर्फ उनका बेटा निर्मल ही जानता था।
दूसरी घटना :
यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरु कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।
एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे। बाद में भेद चला कि श्रीचतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी श्रीविश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।
तीसरी घटना :
सन 1960 में प्रवीणचंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की।
जानकारी मिली कि जूनागढ़ के गोकुलदास ठक्कर की बेटी गीता की मृत्यु अक्टूबर 1559 में हुई थी। उस समय वह ढाई साल की थी। वजुभाई शाह 1965 में अपने कुछ रिश्तेदारों और राजूल को लेकर जूनागढ़ आए। यहां राजून ने अपने पूर्वजन्म के माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को पहचान लिया। राजूल ने अपना घर और वह मंदिर भी पहचान लिया जहां वह अपनी मां के साथ पूजा करने जाती थी।
चौथी घटना :
मध्य प्रदेश के छत्रपुर जिले में एम. एल मिश्र रहते थे। उनकी एक लड़की थी, जिसका नाम स्वर्णलता था। बचपन से ही स्वर्णलता यह बताती थी कि उसका असली घर कटनी में है और उसके दो बेटे हैं। पहले तो घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब वह बार-बार यही बात बोलने लगी तो घर वाले स्वर्णलता को कटनी ले गए। कटनी जाकर स्वर्णलता ने पूर्वजन्म के अपने दोनों बेटों को पहचान लिया। उसने दूसरे लोगों, जगहों, चीजों को भी पहचान लिया।
छानबीन से पता चला कि उसी घर में 18 साल पहले बिंदियादेवी नामक महिला की मृत्यु दिल की धड़कने बंद हो जाने से मर गई थीं। स्वर्णलता ने यह तक बता दिया कि उसकी मृत्यु के बाद उस घर में क्या-क्या परिवर्तन किए गए हैं। बिंदियादेवी के घर वालों ने भी स्वर्णलता को अपना लिया और वही मान-सम्मान दिया जो बिंदियादेवी को मिलता था।
पांचवी घटना :
सन 1956 की बात है। दिल्ली में रहने वाले गुप्ताजी के घर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम गोपाल रखा गया। गोपाल जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम शक्तिपाल था और वह मथुरा में रहता था, मेरे तीन भाई थे उनमें से एक ने मुझे गोली मार दी थी। मथुरा में सुख संचारक कंपनी के नाम से मेरी एक दवाओं की दुकान भी थी।
गोपाल के माता-पिता ने पहले तो उसकी बातों को कोरी बकवास समझा लेकिन बार-बार एक ही बात दोहराने पर गुप्ताजी ने अपने कुछ मित्रों से पूछताछ की। जानकारी निकालने पर पता कि मथुरा में सुख संचारक कंपनी के मालिक शक्तिपाल शर्मा की हत्या उनके भाई ने गोली मारकर कर दी थी। जब शक्तिपाल के परिवार को यह पता चला कि दिल्ली में एक लड़का पिछले जन्म में शक्तिपाल होने का दावा कर रहा है तो शक्तिपाल की पत्नी और भाभी दिल्ली आईं।
गोपाल ने दोनों को पहचान लिया। इसके बाद गोपाल को मथुरा लाया गया। यहां उसने अपना घर, दुकान सभी को ठीक से पहचान लिया साथ ही अपने अपने बेटे और बेटी को भी पहचान लिया। शक्तिपाल के बेटे ने गोपाल के बयानों की तस्दीक की।
छठवी घटना :
न्यूयार्क में रहने वाली क्यूबा निवासी 26 वर्षीया राचाले ग्राण्ड को यह अलौकिक अनुभूति हुआ करती थी कि वह अपने पूर्व जन्म में एक डांसर थीं और यूरोप में रहती थी। उसे अपने पहले जन्म के नाम की स्मृति थी। खोज करने पर पता चला कि यूरोप में आज से 60 वर्ष पूर्व स्पेन में उसके विवरण की एक डांसर रहती थी।
राचाले की कहानी में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जिसमें उसने कहा था कि उसके वर्तमान जन्म में भी वह जन्मजात नर्तकी की है और उसने बिना किसी के मार्गदर्शन अथवा अभ्यास के हाव-भावयुक्त डांस सीख लिया था।
सातवी घटना :
पुनर्जन्म की एक और घटना अमेरिका की है। यहां एक अमेरिकी महिला रोजनबर्ग बार-बार एक शब्द जैन बोला करती थी, जिसका अर्थ न तो वह स्वयं जानती थी और न उसके आस-पास के लोग। साथ ही वह आग से बहुत डरती थी। जन्म से ही उसकी अंगुलियों को देखकर यह लगता था कि जैसे वे कभी जली हों।
एक बार जैन धर्म संबंधी एक गोष्ठी में, जहां वह उपस्थित थी, अचानक रोजनबर्ग को अपने पूर्व जन्म की बातें याद आने लगी। जिसके अनुसार वह भारत के एक जैन मंदिर में रहा करती थी और आग लग जाने की आकस्मिक घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी।
आठवी घटना :
जापान जैसे बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है। 10 अक्टूबर 1815 को जापान के नकावो मूरा नाम के गांव के गेंजो किसान के यहां पुत्र हुआ। उसका नाम कटसूगोरो था। जब वह सात साल का हुआ तो उसने बताया कि पूर्वजन्म में उसका नाम टोजो था और उसके पिता का नाम क्यूबी, बहन का नाम फूसा था तथा मां का नाम शिड्जू था।
6 साल की उम्र में उसकी मृत्यु चेचक से हो गई थी। उसने कई बार कहा कि वह अपने पूर्वजन्म के पिता की कब्र देखने होडोकूबो जाना चाहता है। उसकी दादी (ट्सूया) उसे होडोकूबो ले गई। वहां जाते समय उसने एक घर की ओर इशारा किया और बताया कि यही पूर्वजन्म में उसका घर था।
पूछताछ करने पर यह बात सही निकली। कटसूगोरो ने यह भी बताया कि उस घर के आस-पास पहले तंबाकू की दुकानें नहीं थी। उसकी यह बात भी सही निकली। इस बात ये सिद्ध होता है कि कटसूगोरो ही पिछले जन्म में टोजो था।
नौवी घटना :
थाईलैंड में स्याम नाम के स्थान पर रहने वाली एक लड़की को अपने पूर्वजन्म के बारे में ज्ञात होने का वर्णन मिलता है। एक दिन उस लड़की ने अपने परिवार वालों को बताया कि उसके पिछले जन्म के मां-बाप चीन में रहते हैं और वह उनके पास जाना चाहती है।
उस लड़की को चीनी भाषा का अच्छा ज्ञान भी था। जब उस लड़की की पूर्वजन्म की मां को यह पता चला तो वह उस लड़की से मिलने के लिए स्याम आ गई। लड़की ने अपनी पूर्वजन्म की मां को देखते ही पहचान लिया। बाद में उस लड़की को उस जगह ले जाया गया, जहां वह पिछले जन्म में रहती थी।
उससे पूर्वजन्म से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछे गए। हर बार उस लड़की ने सही जवाब दिया। लड़की ने अपने पूर्व जन्म के पिता को भी पहचान लिया। पुनर्जन्म लेने वाले दूसरे व्यक्तियों की तरह इस लड़की को भी मृत्यु और पुनर्जन्म की अवस्थाओं के बीच की स्थिति की स्मृति थी।
दुनिया की वो 12 जगह जहां जाने पर डर जरुर लगेगा
आज भी दुनिया में कई जगह अपनी भूत-प्रेत की कहानियों को लेकर प्रसिद्ध हैं। ये जगहें अब इतनी वीरान और सुनसान हैं कि यहां शायद ही कोई अकेले जाने की हिम्म्त करे, जैसे राजस्थान का भानगढ़ किला और दिल्ली की जमली कमली मज़्जिद। ये ऐसी जगहे हैं, जो अभी भी अपनी भुतहा और डरावनी कहानियों के लिए लोगों के बीच चर्चा में रहती हैं। आज हम आपको दुनिया की ऐसी 12 जगहों के बारे में बता रहे हैं, जहां लोग जाने के बारे में सोचते ही घबराने लगते हैं। इनमें से कुछ जगहें अब खंडहर बन चुकी हैं, लेकिन इनका इतिहास दहला देने वाला है।
1. एकोडेसिवा फेटिश मार्केट, अफ्रीका
टोगो का यह बाज़ार जादू-टोना करने वालों के बीच प्रसिद्ध है। यहां लोग बुरी शक्तियों से पीछा छुड़ाने आते हैं, यानी टोना करने के लिए सामान खरीदने आते हैं। यहां काले जादू से जुड़ी हर चीज़ मिलती है। इस अफ्रीकन मार्केट में ज्यादातर पशुओं के अंग बिकते हैं।
2 ओकिगहार, जापान
यह जगह ओकिगहारा सुसाइड फॉरेस्ट नाम से फेमस है। यह दुनिया की सबसे मशहूर सुसाइड लोकेशन में से एक है। यहां 2002 में ही 78 लोगों ने सुसाइड की थी।
जापान के ज्योतिषियों का विश्वास है कि जंगलों में आत्महत्या के पीछे पेड़ों पर रहने वाली विचित्र शक्तियों का हाथ है, जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम देती रही हैं।
कई लोग जो इस जंगल में एक बार प्रवेश कर जाते हैं, उन्हें ये शक्तियां बाहर निकलने नहीं देती हैं।
3 भानगढ़, राजस्थान, भारत
भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सूरज ढलने के बाद और उसके उगने से पहले किले के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा रखी है। ऐसा माना जाता है कि यहां 16वीं शताब्दी में कत्लेआम हुआ था और तभी से यहां रात में उनकी आत्माओं का चीखें सुनाई देती हैं और रूहें घुमती हुई नज़र आती हैं। इसीलिए यहां रात के समय आने-जाने की पाबंदी है।
4 डोर टू हेल, तुर्कमेनिस्तान
इसे डोर टू हेल नाम से जाना जाता है। पिछले चालीस सालों से इस जगह पर जमीन में से आग निकल रही है। इसे देखने के लिए हर साल 15 हज़ार तक टूरिस्ट आते हैं।
5 हाशिमा आइलैंड, जापान
यह वीरान आइलैंड नागासाकी से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। 1890 में इसे मित्सुबिशी कॉरपोरेशन ने अंडर वाटर कोल माइनिंग के लिए खरीदा था। इस दौरान एक्सिडेंट्स और बेकार रहन-सहन के चलते यहां हज़ारों कैदियों की मौत हो गई। इस वजह से 1974 में इसे बंद कर दिया गया। 35 साल बाद 2009 में फिर से इसे दर्शकों के लिए खोला गया। इसी वजह से इस जगह को जापान की सबसे खतरनाक जगहों में से एक माना जाता है।
6 हेलफायर क्लब, आयरलैंड
इस क्लब को डबलिन शहर में हॉंन्टेड जगह के तौर पर ही 1725 में बनाया गया। यह क्लब जमीन से 1275 फीट ऊपर बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां डेविल्स अपने प्रशंसकों से खुद मिलने आते हैं। साथ ही, यहां आने वाले विज़िटर्स का कहना है कि उन्हें यहां अजीब-सी दुर्गंध महसूस होती है।
7 जमली कमली मस्ज़िद, दिल्ली, भारत
जमली और कमली दो सूफी संत थे, जो मशहूर मेहरौली पुरातात्त्विक कॉम्लेक्स में मौजूद मस्ज़िद में धर्म संबंधी शिक्षा दिया करते थे। उन दोनों को इसी मस्ज़िद में दफना दिया गया था। तभी से यह माना जाता है कि यहां जिन्न रहते हैं, जो यहां आने वाले लोगों को जानवरों की आवाज़ निकल कर अपनी तरफ बुलाते हैं।
8 पेरिस कैटकोम्ब, फ्रांस
1785 में कब्रिस्तान की कमी के चलते कई लाशों को एक साथ एक गड्ढे में दफना दिया गया था। फ्रांस की राजधानी पेरिस का कैटकोम्ब (कब्रों का तहखाना) लगभग 200 मीटर लंबा है, जहां लगभग 6 मिलियन कंकाल मौजूद हैं। इस कैटकोम्ब आज भी बहुत लोग देखने आते हैं।
9 पेंडल हिल, लेंगकैशियर
इस जगह के बारे में ऐसा माना जाता है कि यहां 17वीं सदी में 12 औरतें रहती थीं, जो जादू-टोना किया करती थीं। उनमें से 10 औरतों को 10 लोगों की मौत का दोषी भी पाया गया था।
10 सेडलिक ऑसुरी चर्च, चेक रिपब्लिक
यह एक छोटा रोमन कैथोलिक चर्च है, जिसे इंसानों की हड्डियों से बनाया गया है। यहां का शैन्डलिर, गारलैंड और बैठने की सीट्स सब कुछ इंसानों की हड्डियों से बनाई गई है
11 स्टल सीमेंटरी, कांसास, यूएस
हैलवीन (31 अक्टूबर को मनाया जाने वाला एक ईसाई दिवस) के दौरान यह जगह मौजी लोगों का पॉपुलर ठिकाना बन जाती है। ऐसा माना जाता है कि यहां 1850 से डेविल्स आते हैं। इन्हें देखने के लिए यहां लोग हैलवीन के दिन जरूर आते हैं।
12 ट्योल स्लेंग, कंबोडिया
कंबोडिया के इस स्कूल में कभी कैदियों को बांध रखा जाता था। खमेर रुज के शासन के दौरान इन कैदियों को दूसरे कैदियों से बात करने की मनाही थी। अगर कोई बात करता था, तो उन्हें यहां करंट लगा दिया जाता था और लोहे की गर्म रॉड से मारा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि आज भी उन कैदियों की रूह यहां मौजूद हैं।
1. एकोडेसिवा फेटिश मार्केट, अफ्रीका
टोगो का यह बाज़ार जादू-टोना करने वालों के बीच प्रसिद्ध है। यहां लोग बुरी शक्तियों से पीछा छुड़ाने आते हैं, यानी टोना करने के लिए सामान खरीदने आते हैं। यहां काले जादू से जुड़ी हर चीज़ मिलती है। इस अफ्रीकन मार्केट में ज्यादातर पशुओं के अंग बिकते हैं।
2 ओकिगहार, जापान
यह जगह ओकिगहारा सुसाइड फॉरेस्ट नाम से फेमस है। यह दुनिया की सबसे मशहूर सुसाइड लोकेशन में से एक है। यहां 2002 में ही 78 लोगों ने सुसाइड की थी।
जापान के ज्योतिषियों का विश्वास है कि जंगलों में आत्महत्या के पीछे पेड़ों पर रहने वाली विचित्र शक्तियों का हाथ है, जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम देती रही हैं।
कई लोग जो इस जंगल में एक बार प्रवेश कर जाते हैं, उन्हें ये शक्तियां बाहर निकलने नहीं देती हैं।
3 भानगढ़, राजस्थान, भारत
भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सूरज ढलने के बाद और उसके उगने से पहले किले के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा रखी है। ऐसा माना जाता है कि यहां 16वीं शताब्दी में कत्लेआम हुआ था और तभी से यहां रात में उनकी आत्माओं का चीखें सुनाई देती हैं और रूहें घुमती हुई नज़र आती हैं। इसीलिए यहां रात के समय आने-जाने की पाबंदी है।
4 डोर टू हेल, तुर्कमेनिस्तान
इसे डोर टू हेल नाम से जाना जाता है। पिछले चालीस सालों से इस जगह पर जमीन में से आग निकल रही है। इसे देखने के लिए हर साल 15 हज़ार तक टूरिस्ट आते हैं।
5 हाशिमा आइलैंड, जापान
यह वीरान आइलैंड नागासाकी से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। 1890 में इसे मित्सुबिशी कॉरपोरेशन ने अंडर वाटर कोल माइनिंग के लिए खरीदा था। इस दौरान एक्सिडेंट्स और बेकार रहन-सहन के चलते यहां हज़ारों कैदियों की मौत हो गई। इस वजह से 1974 में इसे बंद कर दिया गया। 35 साल बाद 2009 में फिर से इसे दर्शकों के लिए खोला गया। इसी वजह से इस जगह को जापान की सबसे खतरनाक जगहों में से एक माना जाता है।
6 हेलफायर क्लब, आयरलैंड
इस क्लब को डबलिन शहर में हॉंन्टेड जगह के तौर पर ही 1725 में बनाया गया। यह क्लब जमीन से 1275 फीट ऊपर बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां डेविल्स अपने प्रशंसकों से खुद मिलने आते हैं। साथ ही, यहां आने वाले विज़िटर्स का कहना है कि उन्हें यहां अजीब-सी दुर्गंध महसूस होती है।
7 जमली कमली मस्ज़िद, दिल्ली, भारत
जमली और कमली दो सूफी संत थे, जो मशहूर मेहरौली पुरातात्त्विक कॉम्लेक्स में मौजूद मस्ज़िद में धर्म संबंधी शिक्षा दिया करते थे। उन दोनों को इसी मस्ज़िद में दफना दिया गया था। तभी से यह माना जाता है कि यहां जिन्न रहते हैं, जो यहां आने वाले लोगों को जानवरों की आवाज़ निकल कर अपनी तरफ बुलाते हैं।
8 पेरिस कैटकोम्ब, फ्रांस
1785 में कब्रिस्तान की कमी के चलते कई लाशों को एक साथ एक गड्ढे में दफना दिया गया था। फ्रांस की राजधानी पेरिस का कैटकोम्ब (कब्रों का तहखाना) लगभग 200 मीटर लंबा है, जहां लगभग 6 मिलियन कंकाल मौजूद हैं। इस कैटकोम्ब आज भी बहुत लोग देखने आते हैं।
9 पेंडल हिल, लेंगकैशियर
इस जगह के बारे में ऐसा माना जाता है कि यहां 17वीं सदी में 12 औरतें रहती थीं, जो जादू-टोना किया करती थीं। उनमें से 10 औरतों को 10 लोगों की मौत का दोषी भी पाया गया था।
10 सेडलिक ऑसुरी चर्च, चेक रिपब्लिक
यह एक छोटा रोमन कैथोलिक चर्च है, जिसे इंसानों की हड्डियों से बनाया गया है। यहां का शैन्डलिर, गारलैंड और बैठने की सीट्स सब कुछ इंसानों की हड्डियों से बनाई गई है
11 स्टल सीमेंटरी, कांसास, यूएस
हैलवीन (31 अक्टूबर को मनाया जाने वाला एक ईसाई दिवस) के दौरान यह जगह मौजी लोगों का पॉपुलर ठिकाना बन जाती है। ऐसा माना जाता है कि यहां 1850 से डेविल्स आते हैं। इन्हें देखने के लिए यहां लोग हैलवीन के दिन जरूर आते हैं।
12 ट्योल स्लेंग, कंबोडिया
कंबोडिया के इस स्कूल में कभी कैदियों को बांध रखा जाता था। खमेर रुज के शासन के दौरान इन कैदियों को दूसरे कैदियों से बात करने की मनाही थी। अगर कोई बात करता था, तो उन्हें यहां करंट लगा दिया जाता था और लोहे की गर्म रॉड से मारा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि आज भी उन कैदियों की रूह यहां मौजूद हैं।
इक मोहब्बत ऐसी भी …!
इस मेसेज को देख कर हम थोडा चौंक गए….क्योंकि ये टैग लाइन कभी हमारे किसी ख़ास दोस्त की हुआ करती थी. बहोत कुछ तो उसके नाम और इस एक लाइन से हमे समझ आ चुका था लेकिन फिर भी बगैर उसे कुछ रिप्लाई दिए निकल गए उसकी ID पर CID के ACP प्रदुम्न की तरह खोज-बीन करने के लिए और उसके बाद जो सबूत हाँथ लगे तो जिंदगी के कुछ गुजरे हुए सालों का फ़्लैश बैक हमारी आँखों के सामने तैरने लगा.
श्रेया नाम था उसका….हमारे इंटर कॉलेज के दिनों में बेस्ट फ्रेंड के साथ और भी बहुत कुछ हुआ करती थी. १० वीं किसी और कॉलेज से पास करके उसने ११ वीं में हमारे कॉलेज में एडमिशन लिया था. हम लोग एक ही क्लास में थे लेकिन सब्जेक्ट डिफरेंट थे , वो बायोलॉजी से थी और हम मैथ से. इसलिए हमारे क्लास रूम भी अलग थे. लेकिन लैब में प्रैक्टिकल के लिए जो ग्रुप बने थे,उसे हमारे ग्रुप में ही रखा गया था. जैसा कि जग जाहिर है की हम लौंडों का पीरियड बंक करना तो कॉलेज के दिनों का सबसे फेवरेट काम होता है, तो हफ्ते में हम भी प्रैक्टिकल के एक या दो पीरियड तो बंक मार ही देते थे….नतीजन हमारी प्रैक्टिकल की प्रोजेक्ट फाइल्स कभी कम्पलीट ही नहीं हो पातीं थी. शुरुआत में फाइल्स कम्पलीट करने के लिए नोट्स दोस्तों से ले लेते थे लेकिन उनकी कमीनों की हैण्ड राइटिंग ऐसी थी कि शब्दों को देख कर ऐसा लगता था कि मानो हस्पताल में हड्डी टूटे हुए मरीज भर्ती हों….किसी की टांग ऊपर टंगी, किसी का सर नीचे लटका और किसी का हाथ अलग तना…..तो कुल मिलाकर उन शब्दों में एक्चुअल शब्द क्या है इसका भी पता करना हमारे लिए किसी जंग जीतने से कम नहीं हुआ करता था. तभी एक दिन लैब में प्रैक्टिकल के दौरान हमारी नजर उसकी(श्रेया ) की प्रोजेक्ट फाइल्स पर पड़ी, क्या खूबसूरत हैण्डराइटिंग थी…बिलकुल उसी की तरह…एक-एक शब्द सांचे में ढला हो जैसे. अपन ने भी सोचा की अगर इसके नोट्स मुझे मिल जाया करें तो मजा आ जाये. वैसे लड़कियों से कोई चीज मांगना हमारे लिए थोडा मुश्किल था लेकिन गरज थी तो बोलना पड़ा, “श्रेया क्या तुम मुझे अपने नोट्स दे सकती हो एक दिन के लिए प्लीज़…..?”. “अच्छा तुम पीरियड बंक मारो और मै तुम्हे नोट्स तैयार करके दूं….खैर ले लो लेकिन कल तक लौटा जरूर देना”. उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
बस फिर क्या था…उसके बाद से अपनी तो निकल पड़ी.जब भी पीरियड बंक करते या फिर कॉलेज नहीं पहुँच पाते….तो उस दिन के नोट्स हमे श्रेया से मिल जाया करते. धीरे-धीरे हम दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी. लेकिन जैसा कि विदित हैं कि एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त तो हो ही नहीं सकते. हम भी कब उससे नोट्स लेते-लेते उसे अपना मासूम सा दिल दे बैठे,ये तब पता चला जब एक बार केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल के दौरान एक एक्सपेरिमेंट में मुह से खींच कर पिपेट में KMNO4 का विलयन भरते समय उसे करीब से देखने में इतने मशगूल हो गए कि 12-14 ML KMNO4 कोल्डड्रिंक की तरह अपनी हलक के नीचे उतार लिए .
१ साल गुजर गया….हम लोग ११ वीं के होम एग्जाम दे चुके थे. अब बारी थी फाइनल शॉट खेलने की ….यानी १२ वीं के बोर्ड एग्जाम की तैयारी. नया सत्र शुरू हुआ…कुछ भी नहीं बदला था सिवाय हमारे क्लास रूम और फिजिक्स टीचर के…सब कुछ पिछले साल जहाँ पर ख़त्म हुआ था वहीँ से आगे शुरू हो गया….हमारी या फिर यूँ कहें की मेरी प्रेम कहानी भी….
इस साल भी हम दोनों लैब में एक ही ग्रुप में एक्सपेरिमेंट करते थे लेकिन अब हमे उससे नोट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि हमने पीरियड और ख़ास कर प्रैक्टिकल पीरियड बंक करना छोड़ दिया था, इसलिए नहीं कि बोर्ड एग्जाम के डर से हम सुधर गए थे बल्कि इसलिए की प्रैक्टिकल पीरियड के दौरान वही 80 मिनट होते थे हमारे पास उसे करीब से जी भर कर देखने के.
उसे देखना….उससे बातें करना….उसे सुनना काफी अच्छा लगता था हमे…उसके साथ एक अजीब सा सुकून मिलता था ….उसके सामने आते ही दिल में अजीब सी हसरतों का तूफ़ान उठने लगता. किताबें खोल कर पढने बैठते तो हर एक पेज में उसका ही चेहरे नज़र आता था….तनहाइयों में बैठ कर उसका ख्याल करना अच्छा लगता था. धीरे – धीरे मुझे महसूस हुआ शायद मेरी फीलिंग्स के मुकाबले थोड़ी ही सही लेकिन उसके अन्दर भी मेरे लिए कुछ फीलिंग्स थी…क्योंकि एक भी दिन अगर मै कॉलेज नहीं पहुँचता तो मेरे सारे फ्रेंड्स में वही एक मात्र थी जिसका एक हक भरे अंदाज में पहला सवाल यही होता था, “कल कहाँ थे तुम…कॉलेज क्यों नहीं आये”.
खैर ज्यादा परवान न चढ़ के इसी तरह हमारी प्रेम कहानी चलती रही. बोर्ड एग्जाम थे तो पढाई का भी काफी प्रेशर था. आशिकी और पढाई दोनों को साथ लेकर चलते-चलते कब पूरा सत्र गुजर गया और बोर्ड एग्जाम सर पर आ गए कुछ पता ही नहीं चला. अब एग्जाम के अलावा हमे दूसरी सबसे बड़ी टेंशन यही थी कि पूरा साल गुजर गया और हम अभी तक एक बार भी उससे अपने दिल की बात नहीं कह पाए. फिर एक दिन हिम्मत बांध के हमने सोचा की चलो आज बोल ही देते हैं, होगा सो देखा जायेगा. अगले दिन थोडा अलग स्टाइल में सुबह कॉलेज पहुंचे और उसे रोज की तरह hi…hello करने के बाद पूरी हिम्मत जुटाई उससे दिल की बात बोलने की लेकिन उसके सामने हम आज भी मनमोहन सिंह मोड से मोदी मोड में नहीं पहुँच पाए. फिर एक आईडिया आया हमारे दिमाग में….उस दौरान उसकी प्रोजेक्ट फाइल हमारे पास ही थी….शायद कुछ करेक्शन करने के लिए मांगी थी, सोचा कि क्यों ना बोलने के बजाय एक प्रेम पत्र लिख के उसी की फाइल में रख कर उसे दे दिया जाये……सो उस दिन कॉलेज से घर लौटते समय एक चमकती इंक वाला पेन और गुलाबी कागज खरीद कर ले गए. रात को घर वालों से नज़र बचा-बचा कर पूरे पौने तीन घंटे में अपना प्रेम-पत्र तैयार करके बड़ा ख़ुशी- ख़ुशी सोये कि आख़िरकार कल हमारे दिल की बात उस तक पहुँच ही जाएगी.
सुबह रोजाना की तरह कॉलेज पहुंचे, लेकिन जैसे ही कॉलेज के अन्दर घुस पाए कि गेट पर ही हमारा एक सहपाठी दिख गया नीरज नाम था उसका शायद….उसे देख कर अचानक हमे कुछ दो या तीन महीने पहले उसके साथ घटा एक वाकया याद आ गया. हुआ यूँ था कि क्लास की एक लड़की ने इनकी तरफ एक दिन देख के मुस्करा क्या दिया….इन्होने आव देखा ना ताव अगले दिन क्लास रूम में ही कागज पे कुछ लिख कर उसका ढेला बना कर उस लड़की की तरफ उछाल दिया….लड़की चालू निकली और उसने वो कागज का ढेला उठाकर तुरंत टीचर को हस्तांतरित कर दिया. उसके बाद एक बंद हाल में प्रिंसिपल और कॉलेज की अनुशासन समिति ने इनके साथ क्या किया ये तो हम बाकी स्टूडेंट्स को नहीं पता चल पाया लेकिन हाँ उसके बाद से ये कई दिनों तक बेंच पर पिछवाड़ा चिपका के बैठ नहीं पा रहे थे.
अचानक से ये वाकया याद आ जाने से हमारा दिल भी कच्चा होने लगा. लग रहा था कि हमारी भी हालत कहीं उस लड़के की तरह न हो जाये और खामख्वाह सालों की बनी इज्ज़त कॉलेज से विदाई लेने के चंद दिनों पहले मिटटी में मिल जाये. वैसे हमे ये बात अच्छी तरह पता थी कि श्रेया ऐसा कभी नहीं करेगी…. लेकिन फिर भी अब अन्दर ही अन्दर थोडा डर लग रहा था लड़कियों का कोई भरोसा नहीं कब इनका दिमाग घूम जाये. घंटों इसी उधेड़-बुन में गुजारने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे की बेटा सेल्फ-डिफेन्स पहले और आशिकी बाद में…….अंततोगत्वा पौने तीन घंटों की मेहनत से बनाया गया वो हमारा पहला प्रेम पत्र अपने मुकाम तक पहुँचने के बजाय टुकड़ों में बंट कर कॉलेज के पिछवाड़े खेतों में उड़ता नजर आया.
इसके बाद कुछ दिन और गुजर गए. आज हमारा फेयरवेल फंक्शन था…. यानी हम सब दोस्तों का एक साथ कॉलेज में लास्ट डे…..खास कर हम लड़कों का, क्योंकि हमारा एग्जाम सेण्टर दुसरे कॉलेज में था और हमे एग्जाम वहीँ देने थे. फंक्शन मस्त चल रहा था…हर बंदा स्टेज पर जा कर कुछ न कुछ परफोर्मेंस दे रहा था. लेकिन पूरे फंक्शन के दौरान हम बाकि दुनिया से बेखबर उसी के चेहरे पर नजर गड़ाए बैठे रहे.
फेयरवेल फंक्शन समाप्त हो चुका था. उस दिन अंतिम बार हम रुंधी आवाज में उससे सिर्फ इतना ही पूछ पाए, “श्रेया अब हम कब मिलेंगे?”. “पता नहीं….वक़्त बताएगा’’, वो भी उदासी भरी आवाज में सिर्फ यही दो लाइन बोल सकी. सब वापस घर जा रहे थे. हम अपना साढ़े तीन किलो का उदास चेहरा लिए कॉलेज के गेट पर बुत से खड़े सामने उसे अपने से दूर जाते देख रहे थे. तभी अचानक से उसने एक बार पलट कर मुझे देखा और अपने क़दमों की रफ़्तार तेज़ कर दी. उस दिन दिल बहुत जिद कर रहा था कि दौड़ के उसके पास जायें और उसे गले लगाकर जो भी उसके लिए हमारे दिल में है सब बोल दें, लेकिन तत्कालीन परिस्थतियों को देख कर दिमाग ने दिल की इस जिद को सिरे से नकार दिया.
वक़्त गुजरता गया …..बोर्ड एग्जाम शुरू होकर समाप्त भी हो चुके थे….अब हम भी थोडा फ्री हो गए थे….पढाई के बोझ से ……ना की उसकी यादों से. आज से कुछ साल पहले इतनी मोबाइल क्रांति भी नहीं थी…पत्र लिखना थोडा रिस्की था सो हम उसके साथ किसी तरह टच में भी नहीं थे हमे भी जिंदगी का पहला मोबाइल फ़ोन तब दिलवाया गया, जब हमने इंटरमीडिएट पास कर लिया. एक दो बार दिल बहुत किया की उसके घर जाकर उसकी एक झलक देख आयें जाके लेकिन फिर ख्याल आया की वो अपने घर वालों के सामने मेरा क्या परिचय देगी…..कुछ नेगटिव परिणामों के डर से हम से ये भी न हो पाया …..
बोर्ड के एग्जाम रिजल्ट आने के बाद हम आगे की पढाई के लिए लखनऊ आ गए और लखनऊ यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन कम्पलीट करने के लिए एडमिशन ले लिया….वक़्त गुजरता गया और धीरे – धीरे गुजरते वक़्त की धुल ने उसकी यादों के आईने को भी धुंधला कर दिया.
हम भी अब उसकी यादों को दिल के स्टोर रूम के कोने में डाल कर हंसती – खेलती जिंदगी गुजार रहे थे. लेकिन आज अचानक से ढाई साल बाद उसने हमारी जिंदगी में फिर से दस्तक दे दी थी. हैरानी में हमसे उसके sms के रिप्लाई में सिर्फ इतना ही टाइप हो पाया,“तुम” …. “हाँ मै……अच्छा लगा जान कर कि मै तुम्हे अब तक याद हूँ”…पलट कर तुरंत उसका रिप्लाई आया. मेरे पास उसकी शिकायत का कोई जवाब नहीं था. आगे कि बातें फ़ोन पर करने के लिए हमने उसका नंबर मांग लिया… थोड़ी देर बाद हमारे चैट बॉक्स में उसका नंबर आ गया. मारे बेसब्री के तुरंत उसका नंबर डायल कर दिए….3 बार बेल जाने के बाद उधर से एक धीमी सी कशिश भरी आवाज हमारे कानों में पड़ी, “हेलो”….सुनकर कुछ देर के लिए तो हमारे मुंह से कुछ आवाज ही नहीं निकली फिर लगभग ४० सेकंड बाद हमारे गले से दो शब्द निकल पाए, “कैसी हो……“ठीक हूँ…तुम कैसे हो?” उधर से हलकी सी मीठी आवाज में जवाब आया…. “अब तक तो ठीक था”….जवाब में अचानक हमारे मुंह से यही निकल गया. आधी रात से ज्यादा का समय हो रहा था इसलिए करीब 5 मिनट की ही बातचीत हो पायी और उस दौरान हाल-चाल जानने के अलावा उससे सिर्फ इतना पता चल पाया की इंटरमीडिएट के बाद वो भी लखनऊ ही आ गयी थी और निशातगंज में अपनी मौसी जी के यहाँ रह कर KKC से ग्रेजुएशन कम्पलीट कर रही थी. अब हमे ख़ुशी इस बात की थी की हम दोनों एक ही शहर में थे और दुःख इस बात का था कि पिछले ढाई साल से एक ही शहर में होने के बावजूद हम एक-दुसरे से अनजान बने रहे.
रात भर उसके ख्यालों में खोये रहे और अगले दिन सुबह होते ही उससे मुलाकात की आरजू में उसके कॉलेज पहुँच गए. अब वहां हजारों की भीड़ में उसे कहाँ और कैसे ढूंढे…कुछ समझ नहीं आ रहा था…हारकर हमे मोबाइल बाबा का ही सहारा लेना पड़ा….शायद क्लास में हो इसीलिए कॉल के बजाय हमने अपनी लोकेशन का उसे sms छोड़ दिया. और वहीँ बगल में पड़ी बेंच पर बैठ कर उसके रिप्लाई का इन्तजार करने लगे.
तभी करीब 15 मिनट बाद अचानक से एक लड़की उसी बेंच पर हमारे बगल में आकर बैठ गयी….हम उस समय नजरें अपने फ़ोन में गड़ाए फेसबुकियाने में इतना बिजी थे कि उस पर ध्यान ही नहीं दिया. करीब 5 मिनट बाद मेरे कानों में एक हलकी सी आवाज पड़ी, “ज्यादा बिजी हो तो मै भी अपनी क्लास अटेंड करूं जाके”……अचानक से हमारी नजरें फ़ोन से उठकर बगल में बैठी उस लड़की की तरफ ठहर गयीं….लगातार 2 मिनट तक उसे देखने के बाद अचम्भे में मेरे मुंह से सिर्फ इतना निकल पाया… “श्रेया ”….सालों बाद उसे यूँ अपने सामने देख कर हम तो अपनी सुध-बुध ही खो बैठे थे….बस एकटक उसके चेहरे को निहारते जा रहे थे…हमारी इस गुस्ताखी के आगे हारकर उसे ही अपनी नजरें नीचे झुकानी पड़ गयीं. फिर हमने थोडा अपने आप को सँभालते हुए सफाई दी… “सॉरी वो मै फ़ोन में तुम्हारे ही रिप्लाई का इंतज़ार कर रहा था…गौर नहीं किया की तुम मेरे बगल में ही बैठी हो.”…… “ओहो….. बहोत शरीफ हो ना….लड़कियों की तरफ ध्यान नहीं देते”…हँसते हुए उसने हम पर व्यंग कसा. फिर एक दुसरे का हाल – चाल जानने के बाद हमने उससे कहा, “श्रेया यहाँ काफी भीड़ है…अगर तुम चाहो तो हम लोग कॉलेज के बाहर चलें…वहां सामने एक काफी शॉप है”…हमारी इस रिक्वेस्ट को रिजेक्ट न करते हुए वो बगैर किसी सवाल जवाब के हमारे साथ उठ कर चल दी.
थोड़ी देर बाद हम दोनों कॉफ़ी शॉप में बैठे बतिया रहे थे….या यूँ कहें बोल तो केवल वही रही थी…..हम तो खामोश से बैठे बस उसके होंठों को हिलते देख रहे थे. उसकी बातें सुन कर लग रहा था कि जैसे उसे बहुत सारी शिकायतें हो हमसे….पहले थोडा बुरा लगा हमे ये सोच कर कि जैसे हम इनके बगैर बहुत खुश थे….लेकिन तभी याद आया कि इंसान को शिकायतें भी उसी से होती हैं जिससे उम्मीद होती है…ये सोच कर मन ही मन खुद पर थोडा गर्व भी हुआ… वो हम तक पहुंची कैसे? ये पूछने पर उसने बताया कि एक महीने पहले ही उसने फेसबुक ज्वाइन किया था और वहीँ से उसने हमे और हमारे फ़ोन नंबर को खोज निकाला था. सुनकर हमने मन ही मन जुकरबर्गवा के नाती पोतों तक को आशीर्वाद दे डाला….आखिर उसके फेसबुक की वजह से हमे हमारे जन्मदिन पर जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा जो मिला था. कुछ नयी और कुछ पुरानी बाते करते-करते कब उसके साथ तीन-चार घंटे गुजर गए कुछ पता ही नहीं चला. एक लुत्फ़ सा आ चला था जिसके इन्तजार में आज उसने अचानक मिलकर हमे पागल बना दिया था…सुबह-शाम ….सोते-जागते…खाते-पीते…दिन के 24 घंटों में शायद ही ऐसा कोई पल होता हो जब उसका ख्याल हमारे दिल से निकलता हो….पूरी मजनू वाली कंडीशन में पहुँच चुके थे हम…उसके कॉलेज के सामने वाला काफी शॉप हमारी आशिकी का अड्डा बन चुका था….10 मिनट के लिए ही सही लकिन एक बार उसके चेहरे का दीदार करने पहुँचते जरूर थे….आखिर पहली मोहब्बत थी हमारी तो दीवानगी भी कुछ ज्यादा ही थी.
इसी तरह उससे मिलते-मिलाते दो महीने से ऊपर का समय गुजर चुका था….अबकी बार हमने सोच लिया था की बेटा इस बार नहीं चूकना है…अभी नहीं तो फिर शायद कभी नहीं……हमने पूरी तरह से ठान लिया था की हमे जल्द से जल्द अपना हाल-ए-दिल उसके सामने बयां करना है. बस हमे इंतजार था तो किसी ख़ास मौके का जब हम उसके सामने अपनी बात रख सकें….और किस्मत की बात हमे जल्द ही वो मौका भी मिल गया.
७ दिसम्बर २०१४ को उसका जन्मदिन था. हमे लगा कि इस मौके को हाँथ से नहीं निकलने देना चाहिए….उसके जन्मदिन के ख़ास मौके पर हम दोनों ने शाम को एक रेस्टोरेंट में मिलने का प्रोग्राम बनाया था…हमने भी आज इजहार-ए –इश्क की पूरी तैयारी कर ली थी…..बगल वाली आंटी जी के लॉन से बड़ी मुश्किल से एक गुलाब के फूल का भी जुगाड़ हो गया. शाम को समय मुताबिक हम २० मिनट पहले ही रेस्टोरेंट पहुँच गये थे. न जाने क्यों आज अन्दर ही अन्दर हमे बेहद नर्वसनेस फील हो रही थी. थोड़ी देर इंतज़ार के बाद वो भी आ गयी….उसके आते ही सबसे पहले तो हमने उसे बर्थ डे विश किया. जवाब में उसने भी थैंक्यू बोल दिया. अब आगे हमे ये समझ नहीं आ रहा था की अपनी बात कहाँ से और कैसे शुरू करें.
“श्रेया तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है मेरे पास”….काफी मुश्किल से हम इतना बोल ही गए. “कैसा सरप्राइज”…तुरंत उसने प्रश्नवाचक अंदाज में पूंछा…… “वो एक्चुअली मुझे तुमसे कुछ बोलना है” थोडा सकुचते हुए हमने जवाब दिया. अब अगर आप इस तरह रेस्टोरेंट में किसी लड़की बुलाकर उससे बोलेंगे की आपको उससे कुछ कहना है तो सामने वाली बंदी आधी बात तो इसी से समझ जाती है….मौका देख कर हमने भी अपनी बची खुची हिम्मत जुटाई और कई बार की कोशिशों में असफल होने के बाद आज आख़िरकार हमने भी थ्री मैजिक वर्ड बोल ही डाले..
हमारे बोलते ही अचानक से हम दोनों के बीच में सन्नाटा छा गया….वो एकटक हमारी आँखों में पता नहीं क्या घूरे जा रही थी….करीब २-3 मिनट बाद ख़ामोशी को चीरते हुए उसके भी होठों से दो शब्द निकल गये,“लव यू टू”. सुनते ही हमे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे सारे जहाँ की खुशियाँ हमारे क़दमों में आ गिरी हों. आख़िरकार इतनी शिद्दतों बाद आज हमारा इजहार-ए –इश्क सक्सेस फुल्ली कम्पलीट हो गया था.
उसके बाद हमारी लव लाइफ का लगभग एक महीना हंसी ख़ुशी गुजर चुका था. हमे इस बात का जरा भी भान न था की हमारी ये ख़ुशी ज्यादा लम्बी उम्र लेकर नहीं आई है. एक दिन शाम को अचानक उसका फोन आया….उसकी माँ की तबियत खराब थी तो वो कुछ दिन के लिए गाँव जा रही थी. सुनकर हम थोडा टेंशनिया गए…..इसलिए नहीं कि उसकी माँ बीमार थी……बल्कि इसलिए की अब हमे कुछ दिन बगैर उसके चेहरे का दीदार किये बगैर काटने पड़ेंगे. अगले दिन वो गाँव जा रही थी…… हमसे नहीं रहा गया तो उससे मिलने बस अड्डे पर ही पहुँच गये.
उस दिन उससे मिलते समय हमे इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि शायद आज हम उससे आखिरी बार मिल रहे थे. उसके जाने के बाद दो दिन तक हम कुछ जरूरी काम से कहीं व्यस्त थे तो उससे संपर्क करने का भी समय नहीं निकल पाया. तीसरे दिन हमने उसे फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन लगातार कई बार फ़ोन करने के बावजूद भी उधर फ़ोन रिसीव नहीं हो रहा था. मै इधर परेशान था की बगैर किसी बात के आखिर वो फ़ोन क्यों नहीं रिसीव कर रही…..मै लगातार उसे फ़ोन किये जा रहा था और अंततः कई बार की कोशिशों के बाद उसने फ़ोन रिसीव किया.
इतनी देर से फ़ोन उठाने की वजह से पहले तो उसपे हम थोडा सा गुस्सा भी हुए…लेकिन जब उधर से उसकी अजीब सी उदासी भरी आवाज सुनी तो हमने उसकी वजह जाननी चाही….अचानक से उसकी आवाज रुंध गयी….रुंधी सी आवाज में उसने मेरा नाम लेकर सिर्फ उतना पुछा ,”क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगे?”…अब हम भी थोडा सा परेशान हो गये की आखिर अचानक हो क्या गया इसे…..बहुत पुछा तो रोने लगी और फिर खुद को थोडा संभाल कर बोलना शुरू किया, “यार मेरी कहीं शादी तय होने जा रही है…माँ की तबियत ज्यादा खराब रहती है.. वो डरती हैं कि इससे पहले कि अगर उन्हें कुछ हो जाये वो मेरी शादी होते देखना चाहती थी…पापा ने कोई लड़का भी पसंद कर लिया है….बहुत भरोसा है मेरे मां – बाप का मुझ पर…जितना मै उन्हें जानती हूँ तो उनकी विचारधारा इसके खिलाफ है की घर की कोई बेटी अपनी मर्ज़ी से अपना रिश्ता चुने…….मै जिंदगी भर रो के गुजार लूंगी लेकिन उनके खिलाफ जाकर उनका दिल दुखाने की हिम्मत नही है….हाँ मै तुमसे बेहद मोहब्बत करती हूँ…मुझे बेवफा मत समझना …और हो सके तो मेरी मजबूरी समझ के मुझे माफ़ कर देना…..प्लीज़……और हाँ अगर तुमने वाकई मुझसे सच्चा प्यार किया है तो कभी मेरी वजह से खुद के चेहरे पे कोई मायूसी की शिकन तक न आने देना”….इतना बोल कर वो खामोश हो गयी!
लेकिन ये सब कुछ जानकर हमारी तो पत्रकार पोम्पट लाल की तरह दुनिया हिल चुकी थी….एक दम से बुत हो चुके थे हम…काटो तो खून नही….बस हार्ट फ़ैल ही नही हुआ….फ़ोन हाथ से गिर कर टूट चुका था…फ़ोन की टूटी स्क्रीन ब्लिंक होते देख ऐसा लग रहा था मानो हमारी हालत पर वो चिढ़ा रही थी हमे ….करीब 5 मिनट तक बुत से बने रहने के बाद हममे थोड़ी सी चेतना आई और बगल में पड़ी कुर्सी पर सर झुका के बैठ गये…ऐसा लग रहा था जैसे दिल में अचानक से कोई सुनामी सी उठ के चली गयी हो…नम आँखें लिए करीब २ घंटे तक उसी तरह से बैठे रहे….और फिर एक लम्बी सांस ली और एक शैर बोलते हुए उठे, “ऐ इश्क पता होता की तू इतना तड्पाएगा…तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते” …फ़ोन को हाँथ में उठाया….दोबारा उसे कॉल भी नही की और खुद को तसल्ली दी की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है…कोई शिकायत नही की उससे शायद वो भी अपनी जगह सही थी….नही कुछ ऐसा करना चाहती थी की उसके मां – बाप को ठेस पहुंचे…जरूरी तो नही किसी को हासिल करके ही मोहब्बत की जाये…अलग रहकर भी तो मोहब्बत जिन्दा रह सकती है…यही सब सोच कर दिल को समझा लिया ….वैसे भी अभी शायद साथ-साथ इतना लम्बा रास्ता भी नही तय कर पाए थे की फिर अकेले लौटना नामुमकिन होता….हा थोड़ी सी तकलीफ जरूर होगी….लेकिन वक़्त की धुल यादों के आईने को भी धुंधला कर देती है…..दिमाग ने तो अब हाथ जोड़ लिए लेकिन दिल अब भी कभी-कभी अहसास दिला देता है शायद ……इस कहानी का अगला भाग भी बन पाये……समाप्त!!!!
हजारों सालों से तिल-तिल घट रही है महाभारत काल की ये निशानी
वैसे तो श्रीकृष्ण स्वयं नारायण का अवतार हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने किसे पूजनीय बताया था। गोकुल-वृंदावन के लोगों को किसकी पूजा करने के लिए प्रेरित किया था? हजारों साल पहले देवकीनंदन श्रीकृष्ण ने गोकुल और वृंदावन के लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था। तभी से भक्तों द्वारा इस पर्वत की पूजा की जा रही है। इस पर्वत को तिल-तिल कम होने का शाप दिया था, इस कारण महाभारत काल की ये निशानी घटती जा रही है।
आज भी ऐसी मान्यता है कि मथुरा के पास स्थित गोवर्धन पर्वत की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकमनाएं पूर्ण होती हैं और यहां से कोई भी खाली नहीं लौटता है। इसी वजह से यहां हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है।
गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई आज काफी कम दिखाई देती है, लेकिन हजारों साल पहले यह बहुत ऊंचा और विशाल पर्वत था। इस पर्वत की ऊंचाई लगातार घट रही है, इस संबंध में शास्त्रों एक कथा बताई गई है। इस कथा के अनुसार गोवर्धन पर्वत को तिल-तिल करके घटने के लिए एक ऋषि ने श्राप दिया है।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है और उसी की पूजा करने के लिए सभी को प्रेरित किया था। आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले हर व्यक्ति को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई करीब 30 हजार मीटर थी। जबकि वर्तमान में यह पर्वत करीब 30 मीटर ऊंचा ही रह गया है। गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई लगातार घट रही है। इस संबंध में गर्गसंहिता में एक कथा बताई गई है।
कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से भी साथ चलने का निवेदन किया। इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल कर रासभूमि पर जा गिरा। यही तेज पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया।
शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों एवं कुञ्जों से सुशोभित था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी। इसे देखकर राधाजी प्रसन्न हुई तथा श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भी पृथ्वी पर अवतार धारण किया।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से शाल्मलीद्वीप में द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से गोवर्धन का जन्म हुआ, भगवान के जानु से वृंदावन एवं वामस्कंध से यमुनाजी का प्राक्टय हुआ। गोवर्धन को भगवान का रूप जानकर ही सुमेरु, हिमालय एवं अन्य पर्वतों ने उसकी पूजा कर गिरिराज बनाकर स्तवन किया।
एक समय तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्यजी ऋषि गोवर्धन पर्वत के समीप पहुंचे। पर्वत की सुंदरता देखकर ऋषि मंत्रमुग्ध हो गए तथा द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि मैं काशी में रहता हूं। आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रहकर पूजन करुंगा।
द्रोणाचल पुत्र के वियोग से व्यथीत हुए लेकिन गोवर्धन पर्वत ने कहा मैं आपके साथ चलुंगा किंतु मेरी एक शर्त है। आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्यजी ने गोवर्धन की यह बात मान ली। गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा एवं पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे?
तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए। रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन की पूर्वस्मृति जागृत हो गई और वह सोचने लगा कि भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के साथ यहां आकर बाल्यकाल और किशोरकाल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। जिससे ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है।
कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले ही आग्रह किया था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्यजी उसे ले जाने की हठ करने लगे लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिला।
तब ऋषि ने उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा फिर एक दिन तुम पुर्णत: धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कलयुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी समस्त कलाओं के साथ द्वापर में इसी पर्वत पर भक्तों को मुग्ध करने वाली कई लीलाएं की थी। इसी पर्वत को इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली पर तीन दिनों तक उठा कर रखा था। इसीप्रकार सभी वृंदावन वासियों की रक्षा इंद्र के कोप से की थी।
एक अन्य मान्यता के अनुसार त्रेता युग में श्रीराम और वानर सेना रावण की लंका तक जाने के लिए समुद्र पर रामसेतु बांध रहे थे। तब हनुमानजी गोवर्धन पर्वत को उत्तराखंड से ले जा रहे थे ताकि रामसेतु बांधने में इसका उपयोग किया जा सके। लेकिन तभी देववाणी हुई की रामसेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है, यह सुनकर हनुमानजी ने इस पर्वत को ब्रज में ही स्थापित कर किया और स्वयं दक्षिण की ओर पुन: लौट आए।
आज भी ऐसी मान्यता है कि मथुरा के पास स्थित गोवर्धन पर्वत की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकमनाएं पूर्ण होती हैं और यहां से कोई भी खाली नहीं लौटता है। इसी वजह से यहां हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है।
गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई आज काफी कम दिखाई देती है, लेकिन हजारों साल पहले यह बहुत ऊंचा और विशाल पर्वत था। इस पर्वत की ऊंचाई लगातार घट रही है, इस संबंध में शास्त्रों एक कथा बताई गई है। इस कथा के अनुसार गोवर्धन पर्वत को तिल-तिल करके घटने के लिए एक ऋषि ने श्राप दिया है।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है और उसी की पूजा करने के लिए सभी को प्रेरित किया था। आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले हर व्यक्ति को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई करीब 30 हजार मीटर थी। जबकि वर्तमान में यह पर्वत करीब 30 मीटर ऊंचा ही रह गया है। गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई लगातार घट रही है। इस संबंध में गर्गसंहिता में एक कथा बताई गई है।
कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से भी साथ चलने का निवेदन किया। इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल कर रासभूमि पर जा गिरा। यही तेज पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया।
शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों एवं कुञ्जों से सुशोभित था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी। इसे देखकर राधाजी प्रसन्न हुई तथा श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भी पृथ्वी पर अवतार धारण किया।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से शाल्मलीद्वीप में द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से गोवर्धन का जन्म हुआ, भगवान के जानु से वृंदावन एवं वामस्कंध से यमुनाजी का प्राक्टय हुआ। गोवर्धन को भगवान का रूप जानकर ही सुमेरु, हिमालय एवं अन्य पर्वतों ने उसकी पूजा कर गिरिराज बनाकर स्तवन किया।
एक समय तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्यजी ऋषि गोवर्धन पर्वत के समीप पहुंचे। पर्वत की सुंदरता देखकर ऋषि मंत्रमुग्ध हो गए तथा द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि मैं काशी में रहता हूं। आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रहकर पूजन करुंगा।
द्रोणाचल पुत्र के वियोग से व्यथीत हुए लेकिन गोवर्धन पर्वत ने कहा मैं आपके साथ चलुंगा किंतु मेरी एक शर्त है। आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्यजी ने गोवर्धन की यह बात मान ली। गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा एवं पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे?
तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए। रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन की पूर्वस्मृति जागृत हो गई और वह सोचने लगा कि भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के साथ यहां आकर बाल्यकाल और किशोरकाल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। जिससे ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है।
कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले ही आग्रह किया था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्यजी उसे ले जाने की हठ करने लगे लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिला।
तब ऋषि ने उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा फिर एक दिन तुम पुर्णत: धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कलयुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी समस्त कलाओं के साथ द्वापर में इसी पर्वत पर भक्तों को मुग्ध करने वाली कई लीलाएं की थी। इसी पर्वत को इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली पर तीन दिनों तक उठा कर रखा था। इसीप्रकार सभी वृंदावन वासियों की रक्षा इंद्र के कोप से की थी।
एक अन्य मान्यता के अनुसार त्रेता युग में श्रीराम और वानर सेना रावण की लंका तक जाने के लिए समुद्र पर रामसेतु बांध रहे थे। तब हनुमानजी गोवर्धन पर्वत को उत्तराखंड से ले जा रहे थे ताकि रामसेतु बांधने में इसका उपयोग किया जा सके। लेकिन तभी देववाणी हुई की रामसेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है, यह सुनकर हनुमानजी ने इस पर्वत को ब्रज में ही स्थापित कर किया और स्वयं दक्षिण की ओर पुन: लौट आए।
महाभारत काल से है ये खाई, भीम ने यहीं लिया था द्रौपदी के अपमान का बदला
महाराष्ट्र के विदर्भ में बसा चिखलदरा हिल स्टेशन। महाभारत के समय पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां कुछ बिताया था। अज्ञातवास के दौरान महाभारत के कीचक नाम के पात्र ने द्रौपदी से अनैतिक व्हवहार की कोशिश की थी। इस पर गुस्साए भीम ने उसे मारकर इसी खाई में फेंक दिया था।आज भी ये खाई महाभारत काल में हुए उस घटना की गवाह है। यहां आने वाले पयर्टकों को महाभारत से जुड़ी रोचक जानकारियां भी यहां मिलती हैं। ‘महाराष्ट्र दर्शन’ सीरीज में आज आपको चिखलदरा हिल स्टेशन के बारे में बता रहा है।
चिखलदरा हिल स्टेशन नैसर्गिक सौन्दर्यता के अलावा पौराणिक स्थलों के लिए मशहूर है। उल्लेखनीय है कि चिखलधरा को पौराणिक काल में विराट नगर भी कहा जाता था। अज्ञातवास के दौरान यहां के राजा विराट की रानी सुदेष्णा ने द्रौपदी और पांडवों को काम पर रखा था। कीचक ही रानी सुदेष्णा का भाई था, जिसने द्रौपदी के साथ अनैतिक व्यवहार का प्रयास किया था। कीचक के वध के बाद से ही इस स्थान का नाम चिखलधरा पड़ा।
ऐसा कहा जाता है कि भीम ने कीचक का वध करने के बाद इसी जलप्रपात के नीचे स्नान किया था
चिखलदरा महाराष्ट्र में मेलघाट टाइगर रिजर्व के पास है और वृहद सतपुड़ा पर्वत श्रेणी का ही एक हिस्सा है। चिखलदरा प्राकृतिक मनोरम दृश्यों के साथ ही सुंदर झीलों, प्राचीन दुर्गों और वन्यजीवन के लिए मशहूर है। बारिश के मौसम में आप यहां गहरी और खड़ी घाटी में कई जल प्रपातों को आकार लेते देख सकते हैं। इस सीजन में चिखलदरा प्रकृतिप्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं होता।
रॉबिंसन ने खोजा था
यह हिल स्टेशन हैदराबाद रेजीमेंट के कप्तान रॉबिन्सन द्वारा वर्ष 1823 में खोजा गया था। अंग्रेजों ने इस स्थान को कॉफी प्लांटेशन और स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए विकसित किया था। चिखलदरा अपने मनोरम दृश्यों, वन्य जीव अभयारण्य और ऐतिहासिक दुर्गों की वजह से प्रसिद्ध है।
भीमकुंड
भीमकुंड लगभग 3500 फीट गहरा है। यहां आप एक भव्य जलप्रपात देख सकते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार कीचक का वध करने के बाद भीम ने इसी जलप्रपात में स्नान किया था। बारिश के मौसम में यह स्थान कई जलप्रपातों और जलधाराओं से मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है।
देखने लायक स्थान
पंचबोल पॉइंट
पंचबोल पॉइंट की सुंदरता अद्भुत है। यहां कॉफी के बागान हैं। साथ ही गहरी घाटी से लगी पांच पहािड़यों की शृंखला और उनसे गिरते कई झरने भी नजर आते हैं।
देवी पॉइंट
यहां भी बारिश के मौसम में कई जल प्रपात और अन्य सुंदर जलधाराएं नजर आती हैं। इसके पास ही स्थानीय देवी माता का मंदिर है। इस मंदिर में एक जलधारा सालभर बहती रहती है।
गविलगढ़ दुर्ग
अमरावती जिले में स्थित इस दुर्ग को 300 साल पहले गवली के राजा ने बनवाया था। पर्यटक यहां की गई नक्काशी और लोहे, कांसे व तांबे से निर्मित तोपों को देख सकते हैं।
कहां ठहरें?
यहां महाराष्ट्र पर्यटन विभाग द्वारा संचालित एक होटल है। इसके अलावा कई निजी होटल भी उचित किराए पर उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचें?
निकटतम हवाई अड्डा 240 किलोमीटर दूर नागपुर है। निकटतम रेलवे स्टेशन 100 किलोमीटर दूर अमरावती है।
क्या खाएं?
यहां आप विशिष्ट महाराष्ट्रियन व्यंजनों का लुत्फ ले सकते हैं। यद्यपि अन्य प्रकार के व्यंजन भी यहां की होटलों में उपलब्ध हैं।
भीमकुंड की गहराई लगभग 3500 फीट है।
गविलगढ़ दुर्ग किले में एक प्राचीन तालाब भी स्थित है
मानसून के दौरान चिखलधरा की घाटियां इस तरह हरी-भरी हो जाती है
चिखलदरा हिल स्टेशन नैसर्गिक सौन्दर्यता के अलावा पौराणिक स्थलों के लिए मशहूर है। उल्लेखनीय है कि चिखलधरा को पौराणिक काल में विराट नगर भी कहा जाता था। अज्ञातवास के दौरान यहां के राजा विराट की रानी सुदेष्णा ने द्रौपदी और पांडवों को काम पर रखा था। कीचक ही रानी सुदेष्णा का भाई था, जिसने द्रौपदी के साथ अनैतिक व्यवहार का प्रयास किया था। कीचक के वध के बाद से ही इस स्थान का नाम चिखलधरा पड़ा।
ऐसा कहा जाता है कि भीम ने कीचक का वध करने के बाद इसी जलप्रपात के नीचे स्नान किया था
चिखलदरा महाराष्ट्र में मेलघाट टाइगर रिजर्व के पास है और वृहद सतपुड़ा पर्वत श्रेणी का ही एक हिस्सा है। चिखलदरा प्राकृतिक मनोरम दृश्यों के साथ ही सुंदर झीलों, प्राचीन दुर्गों और वन्यजीवन के लिए मशहूर है। बारिश के मौसम में आप यहां गहरी और खड़ी घाटी में कई जल प्रपातों को आकार लेते देख सकते हैं। इस सीजन में चिखलदरा प्रकृतिप्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं होता।
रॉबिंसन ने खोजा था
यह हिल स्टेशन हैदराबाद रेजीमेंट के कप्तान रॉबिन्सन द्वारा वर्ष 1823 में खोजा गया था। अंग्रेजों ने इस स्थान को कॉफी प्लांटेशन और स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए विकसित किया था। चिखलदरा अपने मनोरम दृश्यों, वन्य जीव अभयारण्य और ऐतिहासिक दुर्गों की वजह से प्रसिद्ध है।
भीमकुंड
भीमकुंड लगभग 3500 फीट गहरा है। यहां आप एक भव्य जलप्रपात देख सकते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार कीचक का वध करने के बाद भीम ने इसी जलप्रपात में स्नान किया था। बारिश के मौसम में यह स्थान कई जलप्रपातों और जलधाराओं से मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है।
देखने लायक स्थान
पंचबोल पॉइंट
पंचबोल पॉइंट की सुंदरता अद्भुत है। यहां कॉफी के बागान हैं। साथ ही गहरी घाटी से लगी पांच पहािड़यों की शृंखला और उनसे गिरते कई झरने भी नजर आते हैं।
देवी पॉइंट
यहां भी बारिश के मौसम में कई जल प्रपात और अन्य सुंदर जलधाराएं नजर आती हैं। इसके पास ही स्थानीय देवी माता का मंदिर है। इस मंदिर में एक जलधारा सालभर बहती रहती है।
गविलगढ़ दुर्ग
अमरावती जिले में स्थित इस दुर्ग को 300 साल पहले गवली के राजा ने बनवाया था। पर्यटक यहां की गई नक्काशी और लोहे, कांसे व तांबे से निर्मित तोपों को देख सकते हैं।
कहां ठहरें?
यहां महाराष्ट्र पर्यटन विभाग द्वारा संचालित एक होटल है। इसके अलावा कई निजी होटल भी उचित किराए पर उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचें?
निकटतम हवाई अड्डा 240 किलोमीटर दूर नागपुर है। निकटतम रेलवे स्टेशन 100 किलोमीटर दूर अमरावती है।
क्या खाएं?
यहां आप विशिष्ट महाराष्ट्रियन व्यंजनों का लुत्फ ले सकते हैं। यद्यपि अन्य प्रकार के व्यंजन भी यहां की होटलों में उपलब्ध हैं।
भीमकुंड की गहराई लगभग 3500 फीट है।
गविलगढ़ दुर्ग किले में एक प्राचीन तालाब भी स्थित है
मानसून के दौरान चिखलधरा की घाटियां इस तरह हरी-भरी हो जाती है
इस जेल में अंग्रेज़ देते थे काले पानी की सजा, सावरकर जी को दी गई थी यातनाएं
एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसने स्वाधीनता-संग्राम को एक नई दिशा दी। वो शख्स जिसे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने के कारण अंग्रेजों द्वारा ‘दोहरे आजीवन कारावास’ की सजा सुनाकर अंडमान-निकोबार की जेल में रखा गया। जहां अंग्रेजों द्वारा उन्हें यातनाएं दी गई थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं स्वाधीनता-संग्राम के तेजस्वी सेनानी वीर सावरकर की। आज हम आपको वीर सावरकर के बारे में बता रहे हैं।
सावरकर ऐसे पहले नेता थे, जिन्होंने साहसपूर्वक पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता को भारत का लक्ष्य बताया और स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छेड़ा था।
नौ वर्ष की आयु में हुआ था माता-पिता का देहांत
क्रांतिकारी वीर सावरकर का जन्म 28 मई, सन 1883 को नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था | उनके पिता दामोदर सावरकर एवं माता राधाबाई दोनों ही धार्मिक विचारधारा के थे। जब वीर सावरकर मात्र नौ वर्ष के थे तब उनकी माता की हैजे से और 1899 में प्लेग से पिता की मौत हो गई थी। जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाई में बीता।
जेल की दीवारों पर लिखी थी कविताएं
जेल में रहते हुए अंग्रेज़ सावरकर के आंदोलनों को ख़त्म करने के लिए प्रताड़ित करते थे। लेकिन इन प्रताड़नाओं का सावरकर पर कोई असर नहीं होता था। जेल में कागज़-कलम न होने के कारण वे जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखा करते थे।
इस जेल में पहले सात विंग हुआ करते थे, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस जेल की पांच विंग को बम से तोड़ दिया गया, अब यहां केवल तीन विंग हैं
अंग्रेजों को भगाने जापान ने सन 1942 में अंडमान-निकोबार जेल पर हमला कर दिया था, जिसके बाद यहां जापानी बंकर बनाया गया था
वीर सावरकर ने 29 जून सन 1909 को यह पत्र स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्णा को लिखा था
सन 1943 में लिया गया वीर सावरकर के पंजे का निशान
अंग्रेजों ने वीर सावरकर को इसी सेल में रखा था
सावरकर ऐसे पहले नेता थे, जिन्होंने साहसपूर्वक पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता को भारत का लक्ष्य बताया और स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छेड़ा था।
नौ वर्ष की आयु में हुआ था माता-पिता का देहांत
क्रांतिकारी वीर सावरकर का जन्म 28 मई, सन 1883 को नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था | उनके पिता दामोदर सावरकर एवं माता राधाबाई दोनों ही धार्मिक विचारधारा के थे। जब वीर सावरकर मात्र नौ वर्ष के थे तब उनकी माता की हैजे से और 1899 में प्लेग से पिता की मौत हो गई थी। जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाई में बीता।
जेल की दीवारों पर लिखी थी कविताएं
जेल में रहते हुए अंग्रेज़ सावरकर के आंदोलनों को ख़त्म करने के लिए प्रताड़ित करते थे। लेकिन इन प्रताड़नाओं का सावरकर पर कोई असर नहीं होता था। जेल में कागज़-कलम न होने के कारण वे जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखा करते थे।
इस जेल में पहले सात विंग हुआ करते थे, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस जेल की पांच विंग को बम से तोड़ दिया गया, अब यहां केवल तीन विंग हैं
अंग्रेजों को भगाने जापान ने सन 1942 में अंडमान-निकोबार जेल पर हमला कर दिया था, जिसके बाद यहां जापानी बंकर बनाया गया था
वीर सावरकर ने 29 जून सन 1909 को यह पत्र स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्णा को लिखा था
सन 1943 में लिया गया वीर सावरकर के पंजे का निशान
अंग्रेजों ने वीर सावरकर को इसी सेल में रखा था
20 भारतीय महिलाएं जिनपर हमे होता है गर्व
आज हम लेकर आये है 20 ऐसी महिलाओ की सूची जिन्होंने कुछ बहुत ही अनोखा काम किया है जिससे हम उनके भारतीय होने पर गर्व महसूस सकते है ….वैसे ये पूर्णरूप से क्रमबद्ध नही है….क्योकि कुछ भी हो हम किसी की महानता को अंक नही दे सकते……
आइये देखते है उन 20 महिलाओ को और उनके जज्बे को सलाम करते है
1-नीरजा भनोट
नीरजा भनोट मुंबई में पैन ऍम एयरलाइन्स (Pan Am Airlines) की विमान परिचारिका थीं। ५ सितंबर १९८६ के मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रहे पैन ऍम उड़ान ७३ के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं।
उनकी बहादुरी के लिये मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार ने शान्ति काल के अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया और साथ ही पाकिस्तान सरकार और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें इस वीरता के लिये सम्मानित किया है।
सरला ठकराल
सरला ठकराल भारत की प्रथम महिला विमान चालक थीं। 1936 में सरला ठकराल परंपराओं को तोड़ते हुए एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। उन्होंने ‘जिप्सी मॉथ’ को अकेले ही उड़ाने का कारनामा कर दिखाया था।
सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।
सिन्धुताई सपकाल
सिन्धुताई सपकाल अनाथ बच्चों के लिए समाजकार्य करनेवाली मराठी समाज कार्यकर्ता है। उन्होने अपने जीवन मे अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया है। इसिलिए उन्हे “माई” (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहूएँ है। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहोत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहोत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते है। सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है जिनमे “अहिल्याबाई होऴकर पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजकर्ताओंको मिलता है महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा। यह सारे पैसे वे अनाथाश्रम के लिए इस्तमाल करती है।
मैरी कॉम
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम (एम सी मैरी कॉम) जिन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाज हैं। मैरी कॉम पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं। २०१२ के लंदन ओलम्पिक मे उन्होंने काँस्य पदक जीता। 2010 के ऐशियाई खेलों में काँस्य तथा 2014 के एशियाई खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया।
दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया।
Saalumarada Thimmakka
Saalumarada Thimmakka जो एक भारतीय पर्यावरणविद् है उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग के आस पास 384 बरगद के पेड़ लगाये और उन्हें पाला.....हर दिन वह और उसके पति पेड़ को पानी देने के लिए 4 किलोमीटर तक बहुत भरी पानी की भरी बाल्टियाँ लेकर जाते है ।
लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी हैं। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं।आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा।
दुर्गावती देवीवास
दुर्गावती एक जानीमानी भारतीय क्रांतिकारी और जासूस थी जिन्होंने भगत सिंह की एक ट्रेन यात्रा के दौरान उनकी पत्नी के रूप में खुद को प्रस्तुत करके ब्रिटिश पुलिस के चंगुल से बचने में मदद की थी
शकुन्तला देवी
शकुन्तला देवी जिन्हें आम तौर पर “मानव कम्प्यूटर” के रूप में जाना जाता है, बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा की धनी एवं मानसिक परिकलित्र (गणितज्ञ) थीं। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया। शकुन्तला देवी के अंदर पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन क्षण भर में बताने की क्षमता थी। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह ज्योतिषी भी थीं
मतंगिनी हाजरा
मतंगिनी हाजरा 73 साल की थी जब एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते समय ब्रिटिश भारतीय पुलिस द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या की गई थी। जब एक के बाद एक गोली उनके सीने में उतारी जा रही थी तब वो भारतीय ध्वज को उच्च शिखर पर फहरा रही थी तो बाबजूद गोली लगने के वह वन्देमातरम का उद्घोष कर रही थी
सुनीता कृष्णन
इनके साथ महज 15साल की उम्र मेँ 8दरिँदो ने बलात्कार किया। ये समाज से बहिष्कृत कर दी गयी। परन्तु इन्होने अपने साथ हुये अन्याय व उत्पीड़न को बुलन्द आवाज बनाया। और आज ये यौन हिँसा व मानव तस्करी के खिलाफ लड़ रही है। इनकी संस्था प्रज्वला सेक्स वर्करोँ के पाँच हजार बच्चो की पढाई का जिम्मा सँभाल रही है। ये वास्तव में एक सच्ची नायिका है …सलाम है इन्हें
इरोम चानू शर्मिला
इरोम चानू शर्मिला को 'मणिपुर की आयरन लेडी ' के रूप में बेहतर जाना जाता है। मणिपुर में निर्दोष नागरिकों की हत्या के विरोध में 2 नवंबर 2000 के बाद से लगातार भूख हड़ताल पर है !
गुलाबी गैंग
कुछ बेहतरीन और कुशल महिलाओ का समूह जो खुद को सामूहिक रूप से “गुलाबी गैंग”कहता है ,इन्होने इक उदाहरण पेश किया है कि कैसे महिला जाति सामूहिक रूप से समाज में दीन और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के लिए न्याय के लिए लड़ते हैं।
फूलन देवी
फूलन देवी एक डकैत थी जो डाकुओ का एक गिरोह चलाती थी….और उस पर हुए बलात्कार का बदला लेने के लिए डाकू बनी
रज़िया सुल्ताना
रजिया सुल्ताना दिल्ली सल्तनत की पहली और आखिरी महिला सम्राट थी । विशेषज्ञों का कहना है कि वह एक शानदार सम्राट थी ।
आनंदीबाई जोशी
पुणे शहर में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री (1886) ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। कथित तौर पर वह अमेरिका में उसके पैर ज़माने वाली पहली हिंदू औरत है।
Onake Obavva
Onake Obavva एक Superwoman है ....जिन्होंने अकेले एक मूसल का उपयोग कर हैदर अली की सेना के कुछ हमलावर सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया ।
Mayilamma
Mayilamma एक समाज सेविका थी जिन्होंने विशाल कम्पनी कोकाकोला के खिलाफ अभियान छेड़ा जिसकी गतिविधियाँ उनके क्षेत्र को प्रदूषित कर रही थी....उनके अभियान ने कोका कोला को मार्च 2004 में बॉटलिंग संयंत्र को बंद करने के मजबूर कर दिया।
टेसी थॉमस
टेसी थॉमस को ‘India’s Missile Woman’ के नाम से भी जाना जाता है ….ये पहली भारतीय महिला है जिन्होंने भारत में किसी मिसाईल प्रोजेक्ट को लीड किया
किरण बेदी
किरण वेदी Indian Police Service (1972) में ऑफिसर बनने वाली पहली भारतीय महिला है
आइये देखते है उन 20 महिलाओ को और उनके जज्बे को सलाम करते है
1-नीरजा भनोट
नीरजा भनोट मुंबई में पैन ऍम एयरलाइन्स (Pan Am Airlines) की विमान परिचारिका थीं। ५ सितंबर १९८६ के मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रहे पैन ऍम उड़ान ७३ के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं।
उनकी बहादुरी के लिये मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार ने शान्ति काल के अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया और साथ ही पाकिस्तान सरकार और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें इस वीरता के लिये सम्मानित किया है।
सरला ठकराल
सरला ठकराल भारत की प्रथम महिला विमान चालक थीं। 1936 में सरला ठकराल परंपराओं को तोड़ते हुए एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। उन्होंने ‘जिप्सी मॉथ’ को अकेले ही उड़ाने का कारनामा कर दिखाया था।
सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।
सिन्धुताई सपकाल
सिन्धुताई सपकाल अनाथ बच्चों के लिए समाजकार्य करनेवाली मराठी समाज कार्यकर्ता है। उन्होने अपने जीवन मे अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया है। इसिलिए उन्हे “माई” (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहूएँ है। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहोत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहोत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते है। सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है जिनमे “अहिल्याबाई होऴकर पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजकर्ताओंको मिलता है महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा। यह सारे पैसे वे अनाथाश्रम के लिए इस्तमाल करती है।
मैरी कॉम
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम (एम सी मैरी कॉम) जिन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाज हैं। मैरी कॉम पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं। २०१२ के लंदन ओलम्पिक मे उन्होंने काँस्य पदक जीता। 2010 के ऐशियाई खेलों में काँस्य तथा 2014 के एशियाई खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया।
दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया।
Saalumarada Thimmakka
Saalumarada Thimmakka जो एक भारतीय पर्यावरणविद् है उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग के आस पास 384 बरगद के पेड़ लगाये और उन्हें पाला.....हर दिन वह और उसके पति पेड़ को पानी देने के लिए 4 किलोमीटर तक बहुत भरी पानी की भरी बाल्टियाँ लेकर जाते है ।
लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी हैं। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं।आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा।
दुर्गावती देवीवास
दुर्गावती एक जानीमानी भारतीय क्रांतिकारी और जासूस थी जिन्होंने भगत सिंह की एक ट्रेन यात्रा के दौरान उनकी पत्नी के रूप में खुद को प्रस्तुत करके ब्रिटिश पुलिस के चंगुल से बचने में मदद की थी
शकुन्तला देवी
शकुन्तला देवी जिन्हें आम तौर पर “मानव कम्प्यूटर” के रूप में जाना जाता है, बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा की धनी एवं मानसिक परिकलित्र (गणितज्ञ) थीं। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया। शकुन्तला देवी के अंदर पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन क्षण भर में बताने की क्षमता थी। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह ज्योतिषी भी थीं
मतंगिनी हाजरा
मतंगिनी हाजरा 73 साल की थी जब एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते समय ब्रिटिश भारतीय पुलिस द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या की गई थी। जब एक के बाद एक गोली उनके सीने में उतारी जा रही थी तब वो भारतीय ध्वज को उच्च शिखर पर फहरा रही थी तो बाबजूद गोली लगने के वह वन्देमातरम का उद्घोष कर रही थी
सुनीता कृष्णन
इनके साथ महज 15साल की उम्र मेँ 8दरिँदो ने बलात्कार किया। ये समाज से बहिष्कृत कर दी गयी। परन्तु इन्होने अपने साथ हुये अन्याय व उत्पीड़न को बुलन्द आवाज बनाया। और आज ये यौन हिँसा व मानव तस्करी के खिलाफ लड़ रही है। इनकी संस्था प्रज्वला सेक्स वर्करोँ के पाँच हजार बच्चो की पढाई का जिम्मा सँभाल रही है। ये वास्तव में एक सच्ची नायिका है …सलाम है इन्हें
इरोम चानू शर्मिला
इरोम चानू शर्मिला को 'मणिपुर की आयरन लेडी ' के रूप में बेहतर जाना जाता है। मणिपुर में निर्दोष नागरिकों की हत्या के विरोध में 2 नवंबर 2000 के बाद से लगातार भूख हड़ताल पर है !
गुलाबी गैंग
कुछ बेहतरीन और कुशल महिलाओ का समूह जो खुद को सामूहिक रूप से “गुलाबी गैंग”कहता है ,इन्होने इक उदाहरण पेश किया है कि कैसे महिला जाति सामूहिक रूप से समाज में दीन और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के लिए न्याय के लिए लड़ते हैं।
फूलन देवी
फूलन देवी एक डकैत थी जो डाकुओ का एक गिरोह चलाती थी….और उस पर हुए बलात्कार का बदला लेने के लिए डाकू बनी
रज़िया सुल्ताना
रजिया सुल्ताना दिल्ली सल्तनत की पहली और आखिरी महिला सम्राट थी । विशेषज्ञों का कहना है कि वह एक शानदार सम्राट थी ।
आनंदीबाई जोशी
पुणे शहर में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री (1886) ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। कथित तौर पर वह अमेरिका में उसके पैर ज़माने वाली पहली हिंदू औरत है।
Onake Obavva
Onake Obavva एक Superwoman है ....जिन्होंने अकेले एक मूसल का उपयोग कर हैदर अली की सेना के कुछ हमलावर सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया ।
Mayilamma
Mayilamma एक समाज सेविका थी जिन्होंने विशाल कम्पनी कोकाकोला के खिलाफ अभियान छेड़ा जिसकी गतिविधियाँ उनके क्षेत्र को प्रदूषित कर रही थी....उनके अभियान ने कोका कोला को मार्च 2004 में बॉटलिंग संयंत्र को बंद करने के मजबूर कर दिया।
टेसी थॉमस
टेसी थॉमस को ‘India’s Missile Woman’ के नाम से भी जाना जाता है ….ये पहली भारतीय महिला है जिन्होंने भारत में किसी मिसाईल प्रोजेक्ट को लीड किया
किरण बेदी
किरण वेदी Indian Police Service (1972) में ऑफिसर बनने वाली पहली भारतीय महिला है
जानिए प्राचीन भारत के 11 ऐसे रहस्य जिनपर आपको गर्व होगा
भारतीय इतिहास की शुरुआत को सिंधु घाटी की सभ्यता या फिर बौद्धकाल से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। कुछ इतिहासकार इसे सिकंदर के भारत आगमन से जोड़कर देखते हैं। आज जिसे हम भारतीय इतिहास का प्राचीनकाल कहते हैं, दरअसल वह मध्यकाल था और जिसे मध्यकाल कहते हैं वह राजपूत काल है। तब प्राचीन भारत के इतिहास को जानना जरूरी है।
यदि हम मेहरगढ़ संस्कृति और सभ्यता की बात करें तो वह लगभग 7000 से 3300 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी जबकि सिंधु घाटी सभ्यता 3300 से 1700 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी। प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत 1200 ईसापूर्व से 240 ईसा पूर्व के बीच नहीं हुई थी। यदि हम धार्मिक इतिहास के लाखों वर्ष प्राचीन इतिहास को न भी मानें तो संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत लगभग 13 हजार ईसापूर्व हुई थी अर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व।
उक्त 15 हजार वर्षों में भारत ने जहां एक और हिमयुग देखा है तो वहीं उसने जलप्रलय को भी झेला है। उस दौर में भारत में इतना उन्नत, विकसित और सभ्य समाज था जैसा कि आज देखने को मिलता है। इसके अलावा ऐसी कई प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र और राजाओं की वंशावली का वर्णन है जिससे भारत के प्राचीन इतिहास की झलक मिलती है। आओ हम जानते हैं प्राचीन भारत के ऐसे 10 रहस्य जिस पर अब विज्ञान भी शोध करने लगा है और अब वह भी इसे सच मानता है।
कुछ विद्वान मानते हैं कि जब अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया एक थे तब भारत के एक हिस्से मात्र में डायनासोरों का राज था। लेकिन 50 करोड़ वर्ष पूर्व वह युग बीत गया। प्रथम जीव की उत्पत्ति धरती के पेंजिया भूखंड के काल में गोंडवाना भूमि पर हुई थी। गोंडवाना महाद्वीप एक ऐतिहासिक महाद्वीप था। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दो महा-महाद्वीप ही थे। उक्त दो महाद्वीपों को वैज्ञानिकों ने दो नाम दिए। एक का नाम था ‘गोंडवाना लैंड’ और दूसरे का नाम ‘लॉरेशिया लैंड’। गोंडवाना लैंड दक्षिण गोलार्ध में था और उसके टूटने से अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप का निर्माण हुआ। गोंडवाना लैंड के कुछ हिस्से लॉरेशिया के कुछ हिस्सों से जुड़ गए जिनमें अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप हैं। गोंडवाना लैंड का नाम भारत के गोंडवाना प्रदेश के नाम पर रखा गया है, क्योंकि यहां शुरुआती जीवन के प्रमाण मिले हैं। फिर 13 करोड़ साल पहले जब यह धरती 5 द्वीपों वाली बन गई, तब जीव-जगत का विस्तार हुआ। उसी विस्तार क्रम में आगे चलकर कुछ लाख वर्ष पूर्व मानव की उत्पत्ति हुई।
धरती का पहला मानव कौन था?
जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड संप्रदाय की पुराकथाओं में भी यही तथ्य वर्णित है। गोंडवाना मध्यभारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के हिस्से शामिल हैं। गोंड नाम की जाति आर्य धर्म की प्राचीन जातियों में से एक है, जो द्रविड़ समूह से आती है। उल्लेखनीय है कि आर्य नाम की कोई जाति नहीं होती थी। जो भी जाति आर्य धर्म का पालन करती थी उसे आर्य कहा जाता था।
पहला मानव : प्राचीन भारत के इतिहास के अनुसार मानव कई बार बना और कई बार फना हो गया। एक मन्वंतर के काल तक मानव सभ्यता जीवित रहती है और फिर वह काल बीत जाने पर संपूर्ण धरती अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुंच जाती है। लेकिन यह तो हुई धर्म की बात इसमें सत्य और तथ्य कितना है?
दुनिया व भारत के सभी ग्रंथ यही मानते हैं कि मानव की उत्पत्ति भारत में हुई थी। हालांकि भारतीय ग्रंथों में मानव की उत्पत्ति के दो सिद्धांत मिलते हैं- पहला मानव को ब्रह्मा ने बनाया था और दूसरा मनुष्य का जन्म क्रमविकास का परिणाम है। प्राचीनकाल में मनुष्य आज के मनुष्य जैसा नहीं था। जलवायु परिवर्तन के चलते उसमें भी बदलाव होते गए।
हालांकि ग्रंथ कहते हैं कि इस मन्वंतर के पहले मानव की उत्पत्ति वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर हुई थी। यह नदी कश्मीर में है। वेद के अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।
संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। कुछ बोलियों ने संस्कृत को देखकर खुद को विकसित किया और वे भी एक भाषा बन गईं।
सभी भाषाओं की जननी संस्कृत
sanskrit1
ब्राह्मी और देवनागरी लिपि : भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।
शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि।
कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है। जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है, जो करीब 1500 वर्ष से अधिक पुरानी है।
केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है।
प्राचीन दुनिया में कुछ नदियां प्रमुख नदियां थीं जिनमें एक ओर सिंधु-सरस्वती और गंगा और नर्मदा थीं, तो दूसरी ओर दजला-फरात और नील नदियां थीं। दुनिया की प्रारंभिक मानव आबादी इन नदियों के पास ही बसी थीं जिसमें सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी। इसके कई प्रमाण मौजूद हैं। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था।
एक और जहां दजला और फरात नदी के किनारे मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ तो दूसरी ओर मिस्र की सभ्यता का विकास 3400 ईसा पूर्व नील नदी के किनारे हुआ। इसी तरह भारत में एक ओर सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास हुआ तो दूसरी ओर गंगा और नर्मदा के किनारे प्राचीन भारत का समाज निर्मित हुआ।
प्राप्त शोधानुसार सिंधु और सरस्वती नदी के बीच जो सभ्यता बसी थी वह दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता थी। यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी। प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कई ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी।
शोधानुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, लेकिन अभी सरस्वती सभ्यता पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
प्राचीन अंतरिक्ष विज्ञान के संबंध में खोज करने वाले एरिक वॉन डेनिकन तो यही मानते हैं कि भारत में ऐसी कई जगहें हैं, जहां एलियंस रहते थे जिन्हें वे आकाश के देवता कहते हैं।
हाल ही में भारत के एक खोजी दल ने कुछ गुफाओं में ऐसे भित्तिचित्र देखे हैं, जो कई हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी ‘एलियन’ आए होंगे।
ऐसा नहीं है कि मिसाइलों या परमाणु अस्त्र का आविष्कार आज ही हुआ है। रामायण काल में भी परमाणु अस्त्र छोड़ा गया था और महाभारत काल में भी। इसके अलावा ऐसे भी कई अस्त्र और शस्त्र थे जिनके बारे में जानकर आप आश्चर्य करेंगे। विज्ञान इस तरह के अस्त्र और शस्त्र बनाने में अभी सफल नहीं हुआ है। हालांकि लक्ष्य का भेदकर लौट आने वाले अस्त्र वह बना चुका है।
उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं, ‘लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।’
प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के अत्याधुनिक हथियार थे, तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे। एक ओर जहां शतरंज का आविष्कार भारत में हुआ वहीं फुटबॉल खेल का जन्म भी भारत में ही हुआ है। भगवान कृष्ण की गेंद यमुना में चली जाने का किस्सा बहुत चर्चित है तो दूसरी ओर भगवान राम के पतंग उड़ाने का उल्लेख भी मिलता है।
कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई-सा खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार भारत में न हुआ हो। भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है। कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है। आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं।
प्राचीन भारतीयों ने एक और जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बानकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। मिश्र के पिरामिडों के बाद हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। प्राचीनकाल के बाद मौर्य और गुप्त काल में मंदिरों को नए सिरे से बनाया गया और मध्यकाल में उनमें से अधिकतर मंदिरों का विध्वंस किया गया। माना जाता है कि किसी समय ताजमहल भी एक शिव मंदिर ही था। कुतुबमीनार विष्णु स्तंभ था। अयोध्या में महाभारतकाल का एक प्राचीन और भव्य मंदिर था जिसे तोड़ दिया गया।
मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता। अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदिर… उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में खासकर महाभारतकाल में किस तरह के मंदिर बने होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले भी मंदिर और महल इतने भव्य होते थे जितने कि मध्यकाल में बनाए गए थे।
रहस्यों से भरे मंदिर : ऐसे कई मंदिर हैं, जहां तहखानों में लाखों टन खजाना दबा हुआ है। उदाहरणार्थ केरल के श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर के 7 तहखानों में लाखों टन सोना दबा हुआ है। उसके 6 तहखानों में से करीब 1 लाख करोड़ का खजाना तो निकाल लिया गया है, लेकिन 7वें तहखाने को खोलने पर राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगा रखी है। आखिर ऐसा क्या है उस तहखाने में कि जिसे खोलने से वहां तबाही आने की आशंका जाहिर की जा रही है? कहते हैं उस तहखाने का दरवाजा किसी विशेष मंत्र से बंद है और वह उसी मंत्र से ही खुलेगा।
वृंदावन का एक मंदिर अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है। कहते हैं कि निधिवन परिसर में स्थापित रंगमहल में भगवान कृष्ण रात में शयन करते हैं। रंगमहल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन-मिश्री रोजाना रखा जाता है। सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है। सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है। इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं।
मान्यता के अनुसार यहां रात के समय कोई नहीं रहता है। इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं। ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है तो वह तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
प्राचीन भारत में एक ओर जहां आसमान में विमान उड़ते थे वहीं नदियों में नाव और समुद्र में जहाज चलते थे। रामायण काल में भगवान राम एक नाव में सफर करके ही गंगा पार करते हैं तो वे दूसरी ओर उनके द्वारा पुष्पक विमान से ही अयोध्या लौटने का वर्णन मिलता हैं। दूसरी ओर संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे।
प्राचीन भारत के शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण और महाभारतकाल में विमान होते थे जिसके माध्यम से विशिष्टजन एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से यात्रा कर लेते थे। विष्णु, रावण, इंद्र, बालि आदि सहित कई देवी और देवताओं के अलावा मानवों के पास अपने खुद के विमान हुआ करते थे। विमान से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो अंतरिक्ष में किसी दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।
वर्तमान समय में भारत की इस प्राचीन तकनीक और वैभव का खुलासा कोलकाता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में एंशियंट एस्ट्रोनट सोसाइटी (Ancient Astronaut Society) की म्युनिख (जर्मनी) में संपन्न छठी कांग्रेस के दौरान अपने एक शोध पत्र से किया। उन्होंने उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उद्बोधन दिया और पर्चा प्रस्तुत किया।
संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में ही हुआ है। संगीत का सबसे प्राचीन ग्रंथ सामवेद है। हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारोहजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। शब्दों में बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाता है।
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प्राचीन परंपरा : भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।
सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
संगीत का विज्ञान : हिन्दू धर्म में संगीत मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है। संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांत और स्वस्थ हो सकता है। भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान में सहायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मुनियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान सकता।
प्राचीन भारतीय संगीत दो रूपों में प्रचलन में था-1. मार्गी और 2. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त हो गया लेकिन देशी संगीत बचा रहा जिसके मुख्यत: दो विभाजन हैं- 1. शास्त्रीय संगीत और 2. लोक संगीत।
शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारित और लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा। हालांकि शास्त्रीय संगीत को विद्वानों और कलाकरों ने अपने-अपने तरीके से नियमबद्ध और परिवर्तित किया और इसकी कई प्रांतीय शैलियां विकसित होती चली गईं तो लोक संगीत भी अलग-अलग प्रांतों के हिसाब से अधिक समृद्ध होने लगा।
बदलता संगीत : मुस्लिमों के शासनकाल में प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अरबी और फारसी में ढालने के लिए आवश्यक और अनावश्यक और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने उत्तर भारत की संगीत परंपरा का इस्लामीकरण करने का कार्य किया जिसके चलते नई शैलियां भी प्रचलन में आईं, जैसे खयाल व गजल आदि। बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। इस दौर में हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलन में आया।
दो संगीत पद्धतियां : इस तरह वर्तमान दौर में हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत प्रचलित है। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता रहा।
हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।
कर्नाटक संगीत : यह संगीत दक्षिण भारत में तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है।
वाद्य यंत्र : मुस्लिम काल में नए वाद्य यंत्रों की भी रचना हुई, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा के ही बदले हुए रूप हैं। इस तरह वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ है। भारत की आदिवासी जातियों के पास विचित्र प्रकार के वाद्य यंत्र मिल जाएंगे जिनसे निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके दिलोदिमाग में मदहोशी छा जाएगी।
उपरोक्त सभी तरह की संगीत पद्धतियों को छोड़कर आओ हम जानते हैं, हिन्दू धर्म के धर्म-कर्म और क्रियाकांड में उपयोग किए जाने वाले उन 10 प्रमुख वाद्य यंत्रों को जिनकी ध्वनियों को सुनकर जहां घर का वस्तु दोष मिटता है वहीं मन और मस्तिष्क भी शांत हो जाता है।
प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है। भारतीय नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं बना था। भारतीय नृत्य ध्यान की एक विधि के समान कार्य करता है। इससे योग भी जुड़ा हुआ है। सामवेद में संगीत और नृत्य का उल्लेख मिलता है। भारत की नृत्य शैली की धूम सिर्फ भारत ही में नहीं अपितु पूरे विश्व में आसानी से देखने को मिल जाती है।
हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि इस काल में ही नृत्यकला का विकास हो चुका था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। इंद्र की साभ में नृत्य किया जाता था। शिव और पार्वती के नृत्य का वर्णन भी हमें पुराणों में मिलता है।
नाट्यशास्त्र अनुसार भारत में कई तरह की नृत्य शैलियां विकसित हुई जैसे भरतनाट्यम, चिपुड़ी, ओडिसी, कत्थक, कथकली, यक्षगान, कृष्णअट्टम, मणिपुरी और मोहिनी अट्टम। इसके अलावा भारत में कई स्थानीय संस्कृति और आदिवासियों के क्षेत्र में अद्भुत नृत्य देखने को मिलता है जिसमें से राजस्थान के मशहूर कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की नृत्य सूची में शामिल किया गया है।
मुगल काल में भारतीय संगीत, वाद्य और नृत्य को इस्लामिक शैली में ढालने का प्रासास किया गया जिसके चलते उत्तर भारती संगीत, वाद्य और नृत्य में बदलाव हो गया।
यदि हम मेहरगढ़ संस्कृति और सभ्यता की बात करें तो वह लगभग 7000 से 3300 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी जबकि सिंधु घाटी सभ्यता 3300 से 1700 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी। प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत 1200 ईसापूर्व से 240 ईसा पूर्व के बीच नहीं हुई थी। यदि हम धार्मिक इतिहास के लाखों वर्ष प्राचीन इतिहास को न भी मानें तो संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत लगभग 13 हजार ईसापूर्व हुई थी अर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व।
उक्त 15 हजार वर्षों में भारत ने जहां एक और हिमयुग देखा है तो वहीं उसने जलप्रलय को भी झेला है। उस दौर में भारत में इतना उन्नत, विकसित और सभ्य समाज था जैसा कि आज देखने को मिलता है। इसके अलावा ऐसी कई प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र और राजाओं की वंशावली का वर्णन है जिससे भारत के प्राचीन इतिहास की झलक मिलती है। आओ हम जानते हैं प्राचीन भारत के ऐसे 10 रहस्य जिस पर अब विज्ञान भी शोध करने लगा है और अब वह भी इसे सच मानता है।
कुछ विद्वान मानते हैं कि जब अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया एक थे तब भारत के एक हिस्से मात्र में डायनासोरों का राज था। लेकिन 50 करोड़ वर्ष पूर्व वह युग बीत गया। प्रथम जीव की उत्पत्ति धरती के पेंजिया भूखंड के काल में गोंडवाना भूमि पर हुई थी। गोंडवाना महाद्वीप एक ऐतिहासिक महाद्वीप था। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दो महा-महाद्वीप ही थे। उक्त दो महाद्वीपों को वैज्ञानिकों ने दो नाम दिए। एक का नाम था ‘गोंडवाना लैंड’ और दूसरे का नाम ‘लॉरेशिया लैंड’। गोंडवाना लैंड दक्षिण गोलार्ध में था और उसके टूटने से अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप का निर्माण हुआ। गोंडवाना लैंड के कुछ हिस्से लॉरेशिया के कुछ हिस्सों से जुड़ गए जिनमें अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप हैं। गोंडवाना लैंड का नाम भारत के गोंडवाना प्रदेश के नाम पर रखा गया है, क्योंकि यहां शुरुआती जीवन के प्रमाण मिले हैं। फिर 13 करोड़ साल पहले जब यह धरती 5 द्वीपों वाली बन गई, तब जीव-जगत का विस्तार हुआ। उसी विस्तार क्रम में आगे चलकर कुछ लाख वर्ष पूर्व मानव की उत्पत्ति हुई।
धरती का पहला मानव कौन था?
जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड संप्रदाय की पुराकथाओं में भी यही तथ्य वर्णित है। गोंडवाना मध्यभारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के हिस्से शामिल हैं। गोंड नाम की जाति आर्य धर्म की प्राचीन जातियों में से एक है, जो द्रविड़ समूह से आती है। उल्लेखनीय है कि आर्य नाम की कोई जाति नहीं होती थी। जो भी जाति आर्य धर्म का पालन करती थी उसे आर्य कहा जाता था।
पहला मानव : प्राचीन भारत के इतिहास के अनुसार मानव कई बार बना और कई बार फना हो गया। एक मन्वंतर के काल तक मानव सभ्यता जीवित रहती है और फिर वह काल बीत जाने पर संपूर्ण धरती अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुंच जाती है। लेकिन यह तो हुई धर्म की बात इसमें सत्य और तथ्य कितना है?
दुनिया व भारत के सभी ग्रंथ यही मानते हैं कि मानव की उत्पत्ति भारत में हुई थी। हालांकि भारतीय ग्रंथों में मानव की उत्पत्ति के दो सिद्धांत मिलते हैं- पहला मानव को ब्रह्मा ने बनाया था और दूसरा मनुष्य का जन्म क्रमविकास का परिणाम है। प्राचीनकाल में मनुष्य आज के मनुष्य जैसा नहीं था। जलवायु परिवर्तन के चलते उसमें भी बदलाव होते गए।
हालांकि ग्रंथ कहते हैं कि इस मन्वंतर के पहले मानव की उत्पत्ति वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर हुई थी। यह नदी कश्मीर में है। वेद के अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।
संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। कुछ बोलियों ने संस्कृत को देखकर खुद को विकसित किया और वे भी एक भाषा बन गईं।
सभी भाषाओं की जननी संस्कृत
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ब्राह्मी और देवनागरी लिपि : भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।
शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि।
कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है। जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है, जो करीब 1500 वर्ष से अधिक पुरानी है।
केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है।
प्राचीन दुनिया में कुछ नदियां प्रमुख नदियां थीं जिनमें एक ओर सिंधु-सरस्वती और गंगा और नर्मदा थीं, तो दूसरी ओर दजला-फरात और नील नदियां थीं। दुनिया की प्रारंभिक मानव आबादी इन नदियों के पास ही बसी थीं जिसमें सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी। इसके कई प्रमाण मौजूद हैं। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था।
एक और जहां दजला और फरात नदी के किनारे मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ तो दूसरी ओर मिस्र की सभ्यता का विकास 3400 ईसा पूर्व नील नदी के किनारे हुआ। इसी तरह भारत में एक ओर सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास हुआ तो दूसरी ओर गंगा और नर्मदा के किनारे प्राचीन भारत का समाज निर्मित हुआ।
प्राप्त शोधानुसार सिंधु और सरस्वती नदी के बीच जो सभ्यता बसी थी वह दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता थी। यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी। प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कई ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी।
शोधानुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, लेकिन अभी सरस्वती सभ्यता पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
प्राचीन अंतरिक्ष विज्ञान के संबंध में खोज करने वाले एरिक वॉन डेनिकन तो यही मानते हैं कि भारत में ऐसी कई जगहें हैं, जहां एलियंस रहते थे जिन्हें वे आकाश के देवता कहते हैं।
हाल ही में भारत के एक खोजी दल ने कुछ गुफाओं में ऐसे भित्तिचित्र देखे हैं, जो कई हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी ‘एलियन’ आए होंगे।
ऐसा नहीं है कि मिसाइलों या परमाणु अस्त्र का आविष्कार आज ही हुआ है। रामायण काल में भी परमाणु अस्त्र छोड़ा गया था और महाभारत काल में भी। इसके अलावा ऐसे भी कई अस्त्र और शस्त्र थे जिनके बारे में जानकर आप आश्चर्य करेंगे। विज्ञान इस तरह के अस्त्र और शस्त्र बनाने में अभी सफल नहीं हुआ है। हालांकि लक्ष्य का भेदकर लौट आने वाले अस्त्र वह बना चुका है।
उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं, ‘लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।’
प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के अत्याधुनिक हथियार थे, तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे। एक ओर जहां शतरंज का आविष्कार भारत में हुआ वहीं फुटबॉल खेल का जन्म भी भारत में ही हुआ है। भगवान कृष्ण की गेंद यमुना में चली जाने का किस्सा बहुत चर्चित है तो दूसरी ओर भगवान राम के पतंग उड़ाने का उल्लेख भी मिलता है।
कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई-सा खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार भारत में न हुआ हो। भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है। कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है। आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं।
प्राचीन भारतीयों ने एक और जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बानकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। मिश्र के पिरामिडों के बाद हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। प्राचीनकाल के बाद मौर्य और गुप्त काल में मंदिरों को नए सिरे से बनाया गया और मध्यकाल में उनमें से अधिकतर मंदिरों का विध्वंस किया गया। माना जाता है कि किसी समय ताजमहल भी एक शिव मंदिर ही था। कुतुबमीनार विष्णु स्तंभ था। अयोध्या में महाभारतकाल का एक प्राचीन और भव्य मंदिर था जिसे तोड़ दिया गया।
मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता। अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदिर… उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में खासकर महाभारतकाल में किस तरह के मंदिर बने होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले भी मंदिर और महल इतने भव्य होते थे जितने कि मध्यकाल में बनाए गए थे।
रहस्यों से भरे मंदिर : ऐसे कई मंदिर हैं, जहां तहखानों में लाखों टन खजाना दबा हुआ है। उदाहरणार्थ केरल के श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर के 7 तहखानों में लाखों टन सोना दबा हुआ है। उसके 6 तहखानों में से करीब 1 लाख करोड़ का खजाना तो निकाल लिया गया है, लेकिन 7वें तहखाने को खोलने पर राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगा रखी है। आखिर ऐसा क्या है उस तहखाने में कि जिसे खोलने से वहां तबाही आने की आशंका जाहिर की जा रही है? कहते हैं उस तहखाने का दरवाजा किसी विशेष मंत्र से बंद है और वह उसी मंत्र से ही खुलेगा।
वृंदावन का एक मंदिर अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है। कहते हैं कि निधिवन परिसर में स्थापित रंगमहल में भगवान कृष्ण रात में शयन करते हैं। रंगमहल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन-मिश्री रोजाना रखा जाता है। सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है। सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है। इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं।
मान्यता के अनुसार यहां रात के समय कोई नहीं रहता है। इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं। ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है तो वह तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
प्राचीन भारत में एक ओर जहां आसमान में विमान उड़ते थे वहीं नदियों में नाव और समुद्र में जहाज चलते थे। रामायण काल में भगवान राम एक नाव में सफर करके ही गंगा पार करते हैं तो वे दूसरी ओर उनके द्वारा पुष्पक विमान से ही अयोध्या लौटने का वर्णन मिलता हैं। दूसरी ओर संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे।
प्राचीन भारत के शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण और महाभारतकाल में विमान होते थे जिसके माध्यम से विशिष्टजन एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से यात्रा कर लेते थे। विष्णु, रावण, इंद्र, बालि आदि सहित कई देवी और देवताओं के अलावा मानवों के पास अपने खुद के विमान हुआ करते थे। विमान से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो अंतरिक्ष में किसी दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।
वर्तमान समय में भारत की इस प्राचीन तकनीक और वैभव का खुलासा कोलकाता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में एंशियंट एस्ट्रोनट सोसाइटी (Ancient Astronaut Society) की म्युनिख (जर्मनी) में संपन्न छठी कांग्रेस के दौरान अपने एक शोध पत्र से किया। उन्होंने उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उद्बोधन दिया और पर्चा प्रस्तुत किया।
संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में ही हुआ है। संगीत का सबसे प्राचीन ग्रंथ सामवेद है। हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारोहजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। शब्दों में बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाता है।
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प्राचीन परंपरा : भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।
सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
संगीत का विज्ञान : हिन्दू धर्म में संगीत मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है। संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांत और स्वस्थ हो सकता है। भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान में सहायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मुनियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान सकता।
प्राचीन भारतीय संगीत दो रूपों में प्रचलन में था-1. मार्गी और 2. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त हो गया लेकिन देशी संगीत बचा रहा जिसके मुख्यत: दो विभाजन हैं- 1. शास्त्रीय संगीत और 2. लोक संगीत।
शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारित और लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा। हालांकि शास्त्रीय संगीत को विद्वानों और कलाकरों ने अपने-अपने तरीके से नियमबद्ध और परिवर्तित किया और इसकी कई प्रांतीय शैलियां विकसित होती चली गईं तो लोक संगीत भी अलग-अलग प्रांतों के हिसाब से अधिक समृद्ध होने लगा।
बदलता संगीत : मुस्लिमों के शासनकाल में प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अरबी और फारसी में ढालने के लिए आवश्यक और अनावश्यक और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने उत्तर भारत की संगीत परंपरा का इस्लामीकरण करने का कार्य किया जिसके चलते नई शैलियां भी प्रचलन में आईं, जैसे खयाल व गजल आदि। बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। इस दौर में हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलन में आया।
दो संगीत पद्धतियां : इस तरह वर्तमान दौर में हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत प्रचलित है। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता रहा।
हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।
कर्नाटक संगीत : यह संगीत दक्षिण भारत में तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है।
वाद्य यंत्र : मुस्लिम काल में नए वाद्य यंत्रों की भी रचना हुई, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा के ही बदले हुए रूप हैं। इस तरह वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ है। भारत की आदिवासी जातियों के पास विचित्र प्रकार के वाद्य यंत्र मिल जाएंगे जिनसे निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके दिलोदिमाग में मदहोशी छा जाएगी।
उपरोक्त सभी तरह की संगीत पद्धतियों को छोड़कर आओ हम जानते हैं, हिन्दू धर्म के धर्म-कर्म और क्रियाकांड में उपयोग किए जाने वाले उन 10 प्रमुख वाद्य यंत्रों को जिनकी ध्वनियों को सुनकर जहां घर का वस्तु दोष मिटता है वहीं मन और मस्तिष्क भी शांत हो जाता है।
प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है। भारतीय नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं बना था। भारतीय नृत्य ध्यान की एक विधि के समान कार्य करता है। इससे योग भी जुड़ा हुआ है। सामवेद में संगीत और नृत्य का उल्लेख मिलता है। भारत की नृत्य शैली की धूम सिर्फ भारत ही में नहीं अपितु पूरे विश्व में आसानी से देखने को मिल जाती है।
हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि इस काल में ही नृत्यकला का विकास हो चुका था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। इंद्र की साभ में नृत्य किया जाता था। शिव और पार्वती के नृत्य का वर्णन भी हमें पुराणों में मिलता है।
नाट्यशास्त्र अनुसार भारत में कई तरह की नृत्य शैलियां विकसित हुई जैसे भरतनाट्यम, चिपुड़ी, ओडिसी, कत्थक, कथकली, यक्षगान, कृष्णअट्टम, मणिपुरी और मोहिनी अट्टम। इसके अलावा भारत में कई स्थानीय संस्कृति और आदिवासियों के क्षेत्र में अद्भुत नृत्य देखने को मिलता है जिसमें से राजस्थान के मशहूर कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की नृत्य सूची में शामिल किया गया है।
मुगल काल में भारतीय संगीत, वाद्य और नृत्य को इस्लामिक शैली में ढालने का प्रासास किया गया जिसके चलते उत्तर भारती संगीत, वाद्य और नृत्य में बदलाव हो गया।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुख्यत पांच प्रकार की होती है स्त्रियां, जानिए उनके लक्षण और स्वभाव
ज्योतिष शास्त्र में पुरुषो और स्त्रियों के प्रकार के बारे में भी लिखा गया है। हालांकि पुरुषों के बारे में तो कुछ ज्यादा नहीं लिखा गया लेकिन स्त्रियां कितने प्रकार की होती है उनके लक्षण क्या होते है उनका स्वाभाव कैसा होता है इन बारे में काफी कुछ लिखा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्त्रियों को मुख्यतः निम्न पांंच वर्गों में बाटा गया है –
1. शंखिनी (Shankhini)
शंखिनी स्वभाव की स्त्रियां अन्य स्त्रियों से थोड़ी लंबी होती हैं। इनमें से कुछ मोटी और कुछ दुर्बल होती हैं। इनकी नाक मोटी, आंखें अस्थिर और आवाज गंभीर होती है। ये हमेशा अप्रसन्न ही दिखाई देती हैं और बिना कारण ही क्रोध किया करती हैं।
ये पति से रूठी रहती हैं, पति की बात मानना इन्हें गुलामी की तरह लगता है। इनका मन सदैव भोग-विलास में डूबा रहता है। इनमें दया भाव भी नहीं होता। इसलिए ये परिवार में रहते हुए भी उनसे अलग ही रहती हैं। ऐसी स्त्रियां संसार में अधिक होती हैं।
ऐसी लड़कियां चुगली करने वाली यानी इधर की बात उधर करने वाली होती हैं। ये अधिक बोलती हैं। इसलिए लोग इनके सामने कम ही बोलते हैं। इनकी आयु लंबी होती हैं। इनके सामने ही दोनों कुल (पिता व पति) नष्ट हो जाते हैं। अंत समय में बहुत दु:ख भोगती हैं। ये उस समय मरने की बारंबार इच्छा करती हैं, लेकिन इनकी मृत्यु नहीं होती।
2. चित्रिणी(Chitrini) :-चित्रिणी स्त्रियां पतिव्रता, स्वजनों पर स्नेह करने वाली होती हैं। ये हर कार्य बड़ी ही शीघ्रता से करती हैं। इनमें भोग की इच्छा कम होती है। श्रृंगार आदि में इनका मन अधिक लगता है। इनसे अधिक मेहनत वाला काम नहीं होता, परंतु ये बुद्धिमान और विदुषी होती हैं।
गाना-बजाना और चित्रकला इन्हें विशेष प्रिय होता है। ये तीर्थ, व्रत और साधु-संतों की सेवा करने वाली होती हैं। ये दिखने में बहुत ही सुंदर होती हैं।
इनका मस्तक गोलाकार, अंग कोमल और आंखें चंचल होती हैं। इनका स्वर कोयल के समान होता है। बाल काले होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। यदि इनका जन्म गरीब परिवार में भी हो तो ये अपने भविष्य में पटरानी के समान सुख भोगती हैं।
अधिक संतान होने पर भी इनकी लगभग तीन संतान ही जीवित रहती हैं, उनमें से एक को राजयोग होता है। इस जाति की लड़कियों की आयु लगभग 48 वर्ष होती है।
3. हस्तिनी (Hastini):- इस जाति की लड़कियों का स्वभाव बदलता रहता है। इनमें भोग-विलास की इच्छा अधिक होती है। ये हंसमुख स्वभाव की होती हैं और भोजन अधिक करती हैं। इनका शरीर थोड़ा मोटा होता है। ये प्राय: आलसी होती हैं।
इनके गाल, नाक, कान और व मस्तक का रंग गोरा होता है। इन्हें क्रोध अधिक आता है। कभी-कभी इनका स्वभाव बहुत क्रूर हो जाता है। इनके पैरों की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इनकी संतानों में लड़के अधिक होते हैं। ये बिना रोग के ही रोगी बनी रहती हैं। इनका पति सुंदर और गुणवान होता है।
अपने झगड़ालू स्वभाव के कारण ये परिवार को क्लेश पहुंचाती हैं। इनके पति इनसे दु:खी होते हैं। धार्मिक कार्यों के प्रति इनकी आस्था नहीं होती। इन्हें स्वादिष्ट भोजन पसंद होता है। इनकी परम आयु 73 वर्ष होती है। विवाह के 4, 8, 12 अथवा 16वे वर्ष में इनके पति का भाग्योदय होता है। इनके कई गर्भ खंडित हो जाते हैं। इन्हें अपने जीवन में अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं, लेकिन इसका कारण भी ये स्वयं ही होती हैं। इनके दुष्ट स्वभाव के कारण ही परिवार में भी इनकी पूछ-परख नहीं होती।
4. पुंश्चली (Punshchali) :- पुंश्चली स्वभाव की लड़कियों के मस्तक का चमकीला बिंदु भी मलीन दिखाई देता है। इस स्वभाव वाली महिलाएं अपने परिवार के लिए दु:ख का कारण बनती हैं।
इनमें लज्जा नहीं होती और ये अपने हाव-भाव से कटाक्ष करने वाली होती हैं। इनके हाथ में नव रेखाएं होती हैं जो सिद्ध (पुण्य, पद्म), स्वस्तिक आदि उत्तम रेखाओं से रहित होती हैं। इनका मन अपने पति की अपेक्षा पर पुरुषों में अधिक लगता है। इसलिए कोई इनका मान-सम्मान नहीं करता। सभी इनकी अपेक्षा करते हैं।
पुंश्चली स्त्रियों में युवावस्था के लक्षण 12 वर्ष की आयु में ही दिखाई देने लगते हैं। इनकी आंखें बड़ी और हाथ-पैर छोटे होते हैं। स्वर तीखा होता है।
यदि ये किसी से सामान्य रूप से बात भी करती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे ये विवाद कर रही हैं। इनकी भाग्य रेखा व पुण्य रेखा छिन्न-भिन्न रहती है। इनके हाथ में दो शंख रेखाएं व नाक पर तिल होता है।
5. पद्मिनी (Padmini) :- समुद्र शास्त्र के अनुसार पद्मिनी स्त्रियां सुशील, धर्म में विश्वास रखने वाली, माता-पिता की सेवा करने वाली व अति सुंदर होती हैं। इनके शरीर से कमल के समान सुगंध आती है। यह लंबे कद व कोमल बालों वाली होती हैं। इसकी बोली मधुर होती है। पहली नजर में ही ये सभी को आकर्षित कर लेती हैं। इनकी आंखें सामान्य से थोड़ी बड़ी होती हैं। ये अपने पति के प्रति समर्पित रहती हैं।
इनके नाक, कान और हाथ की उंगलियां छोटी होती हैं। इसकी गर्दन शंख के समान रहती है व इनके मुख पर सदा प्रसन्नता दिखाई देती है।पद्मिनी स्त्रियां प्रत्येक बड़े पुरुष को पिता के समान, अपनी उम्र के पुरुषों को भाई तथा छोटों को पुत्र के समान समझती हैं।
यह देवता, गंधर्व, मनुष्य सबका मन मोह लेने में सक्षम होती हैं। यह सौभाग्यवती, अल्प संतान वाली, पतिव्रताओं में श्रेष्ठ, योग्य संतान उत्तपन्न करने वाली तथा आश्रितों का पालन करने वाली होती हैं।
इन्हें लाल वस्त्र अधिक प्रिय होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। जिनसे इनका विवाह होता है, वह पुरुष भी भाग्यशाली होता है।
1. शंखिनी (Shankhini)
शंखिनी स्वभाव की स्त्रियां अन्य स्त्रियों से थोड़ी लंबी होती हैं। इनमें से कुछ मोटी और कुछ दुर्बल होती हैं। इनकी नाक मोटी, आंखें अस्थिर और आवाज गंभीर होती है। ये हमेशा अप्रसन्न ही दिखाई देती हैं और बिना कारण ही क्रोध किया करती हैं।
ये पति से रूठी रहती हैं, पति की बात मानना इन्हें गुलामी की तरह लगता है। इनका मन सदैव भोग-विलास में डूबा रहता है। इनमें दया भाव भी नहीं होता। इसलिए ये परिवार में रहते हुए भी उनसे अलग ही रहती हैं। ऐसी स्त्रियां संसार में अधिक होती हैं।
ऐसी लड़कियां चुगली करने वाली यानी इधर की बात उधर करने वाली होती हैं। ये अधिक बोलती हैं। इसलिए लोग इनके सामने कम ही बोलते हैं। इनकी आयु लंबी होती हैं। इनके सामने ही दोनों कुल (पिता व पति) नष्ट हो जाते हैं। अंत समय में बहुत दु:ख भोगती हैं। ये उस समय मरने की बारंबार इच्छा करती हैं, लेकिन इनकी मृत्यु नहीं होती।
2. चित्रिणी(Chitrini) :-चित्रिणी स्त्रियां पतिव्रता, स्वजनों पर स्नेह करने वाली होती हैं। ये हर कार्य बड़ी ही शीघ्रता से करती हैं। इनमें भोग की इच्छा कम होती है। श्रृंगार आदि में इनका मन अधिक लगता है। इनसे अधिक मेहनत वाला काम नहीं होता, परंतु ये बुद्धिमान और विदुषी होती हैं।
गाना-बजाना और चित्रकला इन्हें विशेष प्रिय होता है। ये तीर्थ, व्रत और साधु-संतों की सेवा करने वाली होती हैं। ये दिखने में बहुत ही सुंदर होती हैं।
इनका मस्तक गोलाकार, अंग कोमल और आंखें चंचल होती हैं। इनका स्वर कोयल के समान होता है। बाल काले होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। यदि इनका जन्म गरीब परिवार में भी हो तो ये अपने भविष्य में पटरानी के समान सुख भोगती हैं।
अधिक संतान होने पर भी इनकी लगभग तीन संतान ही जीवित रहती हैं, उनमें से एक को राजयोग होता है। इस जाति की लड़कियों की आयु लगभग 48 वर्ष होती है।
3. हस्तिनी (Hastini):- इस जाति की लड़कियों का स्वभाव बदलता रहता है। इनमें भोग-विलास की इच्छा अधिक होती है। ये हंसमुख स्वभाव की होती हैं और भोजन अधिक करती हैं। इनका शरीर थोड़ा मोटा होता है। ये प्राय: आलसी होती हैं।
इनके गाल, नाक, कान और व मस्तक का रंग गोरा होता है। इन्हें क्रोध अधिक आता है। कभी-कभी इनका स्वभाव बहुत क्रूर हो जाता है। इनके पैरों की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इनकी संतानों में लड़के अधिक होते हैं। ये बिना रोग के ही रोगी बनी रहती हैं। इनका पति सुंदर और गुणवान होता है।
अपने झगड़ालू स्वभाव के कारण ये परिवार को क्लेश पहुंचाती हैं। इनके पति इनसे दु:खी होते हैं। धार्मिक कार्यों के प्रति इनकी आस्था नहीं होती। इन्हें स्वादिष्ट भोजन पसंद होता है। इनकी परम आयु 73 वर्ष होती है। विवाह के 4, 8, 12 अथवा 16वे वर्ष में इनके पति का भाग्योदय होता है। इनके कई गर्भ खंडित हो जाते हैं। इन्हें अपने जीवन में अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं, लेकिन इसका कारण भी ये स्वयं ही होती हैं। इनके दुष्ट स्वभाव के कारण ही परिवार में भी इनकी पूछ-परख नहीं होती।
4. पुंश्चली (Punshchali) :- पुंश्चली स्वभाव की लड़कियों के मस्तक का चमकीला बिंदु भी मलीन दिखाई देता है। इस स्वभाव वाली महिलाएं अपने परिवार के लिए दु:ख का कारण बनती हैं।
इनमें लज्जा नहीं होती और ये अपने हाव-भाव से कटाक्ष करने वाली होती हैं। इनके हाथ में नव रेखाएं होती हैं जो सिद्ध (पुण्य, पद्म), स्वस्तिक आदि उत्तम रेखाओं से रहित होती हैं। इनका मन अपने पति की अपेक्षा पर पुरुषों में अधिक लगता है। इसलिए कोई इनका मान-सम्मान नहीं करता। सभी इनकी अपेक्षा करते हैं।
पुंश्चली स्त्रियों में युवावस्था के लक्षण 12 वर्ष की आयु में ही दिखाई देने लगते हैं। इनकी आंखें बड़ी और हाथ-पैर छोटे होते हैं। स्वर तीखा होता है।
यदि ये किसी से सामान्य रूप से बात भी करती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे ये विवाद कर रही हैं। इनकी भाग्य रेखा व पुण्य रेखा छिन्न-भिन्न रहती है। इनके हाथ में दो शंख रेखाएं व नाक पर तिल होता है।
5. पद्मिनी (Padmini) :- समुद्र शास्त्र के अनुसार पद्मिनी स्त्रियां सुशील, धर्म में विश्वास रखने वाली, माता-पिता की सेवा करने वाली व अति सुंदर होती हैं। इनके शरीर से कमल के समान सुगंध आती है। यह लंबे कद व कोमल बालों वाली होती हैं। इसकी बोली मधुर होती है। पहली नजर में ही ये सभी को आकर्षित कर लेती हैं। इनकी आंखें सामान्य से थोड़ी बड़ी होती हैं। ये अपने पति के प्रति समर्पित रहती हैं।
इनके नाक, कान और हाथ की उंगलियां छोटी होती हैं। इसकी गर्दन शंख के समान रहती है व इनके मुख पर सदा प्रसन्नता दिखाई देती है।पद्मिनी स्त्रियां प्रत्येक बड़े पुरुष को पिता के समान, अपनी उम्र के पुरुषों को भाई तथा छोटों को पुत्र के समान समझती हैं।
यह देवता, गंधर्व, मनुष्य सबका मन मोह लेने में सक्षम होती हैं। यह सौभाग्यवती, अल्प संतान वाली, पतिव्रताओं में श्रेष्ठ, योग्य संतान उत्तपन्न करने वाली तथा आश्रितों का पालन करने वाली होती हैं।
इन्हें लाल वस्त्र अधिक प्रिय होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। जिनसे इनका विवाह होता है, वह पुरुष भी भाग्यशाली होता है।