इस मेसेज को देख कर हम थोडा चौंक गए….क्योंकि ये टैग लाइन कभी हमारे किसी ख़ास दोस्त की हुआ करती थी. बहोत कुछ तो उसके नाम और इस एक लाइन से हमे समझ आ चुका था लेकिन फिर भी बगैर उसे कुछ रिप्लाई दिए निकल गए उसकी ID पर CID के ACP प्रदुम्न की तरह खोज-बीन करने के लिए और उसके बाद जो सबूत हाँथ लगे तो जिंदगी के कुछ गुजरे हुए सालों का फ़्लैश बैक हमारी आँखों के सामने तैरने लगा.
श्रेया नाम था उसका….हमारे इंटर कॉलेज के दिनों में बेस्ट फ्रेंड के साथ और भी बहुत कुछ हुआ करती थी. १० वीं किसी और कॉलेज से पास करके उसने ११ वीं में हमारे कॉलेज में एडमिशन लिया था. हम लोग एक ही क्लास में थे लेकिन सब्जेक्ट डिफरेंट थे , वो बायोलॉजी से थी और हम मैथ से. इसलिए हमारे क्लास रूम भी अलग थे. लेकिन लैब में प्रैक्टिकल के लिए जो ग्रुप बने थे,उसे हमारे ग्रुप में ही रखा गया था. जैसा कि जग जाहिर है की हम लौंडों का पीरियड बंक करना तो कॉलेज के दिनों का सबसे फेवरेट काम होता है, तो हफ्ते में हम भी प्रैक्टिकल के एक या दो पीरियड तो बंक मार ही देते थे….नतीजन हमारी प्रैक्टिकल की प्रोजेक्ट फाइल्स कभी कम्पलीट ही नहीं हो पातीं थी. शुरुआत में फाइल्स कम्पलीट करने के लिए नोट्स दोस्तों से ले लेते थे लेकिन उनकी कमीनों की हैण्ड राइटिंग ऐसी थी कि शब्दों को देख कर ऐसा लगता था कि मानो हस्पताल में हड्डी टूटे हुए मरीज भर्ती हों….किसी की टांग ऊपर टंगी, किसी का सर नीचे लटका और किसी का हाथ अलग तना…..तो कुल मिलाकर उन शब्दों में एक्चुअल शब्द क्या है इसका भी पता करना हमारे लिए किसी जंग जीतने से कम नहीं हुआ करता था. तभी एक दिन लैब में प्रैक्टिकल के दौरान हमारी नजर उसकी(श्रेया ) की प्रोजेक्ट फाइल्स पर पड़ी, क्या खूबसूरत हैण्डराइटिंग थी…बिलकुल उसी की तरह…एक-एक शब्द सांचे में ढला हो जैसे. अपन ने भी सोचा की अगर इसके नोट्स मुझे मिल जाया करें तो मजा आ जाये. वैसे लड़कियों से कोई चीज मांगना हमारे लिए थोडा मुश्किल था लेकिन गरज थी तो बोलना पड़ा, “श्रेया क्या तुम मुझे अपने नोट्स दे सकती हो एक दिन के लिए प्लीज़…..?”. “अच्छा तुम पीरियड बंक मारो और मै तुम्हे नोट्स तैयार करके दूं….खैर ले लो लेकिन कल तक लौटा जरूर देना”. उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
बस फिर क्या था…उसके बाद से अपनी तो निकल पड़ी.जब भी पीरियड बंक करते या फिर कॉलेज नहीं पहुँच पाते….तो उस दिन के नोट्स हमे श्रेया से मिल जाया करते. धीरे-धीरे हम दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी. लेकिन जैसा कि विदित हैं कि एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त तो हो ही नहीं सकते. हम भी कब उससे नोट्स लेते-लेते उसे अपना मासूम सा दिल दे बैठे,ये तब पता चला जब एक बार केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल के दौरान एक एक्सपेरिमेंट में मुह से खींच कर पिपेट में KMNO4 का विलयन भरते समय उसे करीब से देखने में इतने मशगूल हो गए कि 12-14 ML KMNO4 कोल्डड्रिंक की तरह अपनी हलक के नीचे उतार लिए .
१ साल गुजर गया….हम लोग ११ वीं के होम एग्जाम दे चुके थे. अब बारी थी फाइनल शॉट खेलने की ….यानी १२ वीं के बोर्ड एग्जाम की तैयारी. नया सत्र शुरू हुआ…कुछ भी नहीं बदला था सिवाय हमारे क्लास रूम और फिजिक्स टीचर के…सब कुछ पिछले साल जहाँ पर ख़त्म हुआ था वहीँ से आगे शुरू हो गया….हमारी या फिर यूँ कहें की मेरी प्रेम कहानी भी….
इस साल भी हम दोनों लैब में एक ही ग्रुप में एक्सपेरिमेंट करते थे लेकिन अब हमे उससे नोट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि हमने पीरियड और ख़ास कर प्रैक्टिकल पीरियड बंक करना छोड़ दिया था, इसलिए नहीं कि बोर्ड एग्जाम के डर से हम सुधर गए थे बल्कि इसलिए की प्रैक्टिकल पीरियड के दौरान वही 80 मिनट होते थे हमारे पास उसे करीब से जी भर कर देखने के.
उसे देखना….उससे बातें करना….उसे सुनना काफी अच्छा लगता था हमे…उसके साथ एक अजीब सा सुकून मिलता था ….उसके सामने आते ही दिल में अजीब सी हसरतों का तूफ़ान उठने लगता. किताबें खोल कर पढने बैठते तो हर एक पेज में उसका ही चेहरे नज़र आता था….तनहाइयों में बैठ कर उसका ख्याल करना अच्छा लगता था. धीरे – धीरे मुझे महसूस हुआ शायद मेरी फीलिंग्स के मुकाबले थोड़ी ही सही लेकिन उसके अन्दर भी मेरे लिए कुछ फीलिंग्स थी…क्योंकि एक भी दिन अगर मै कॉलेज नहीं पहुँचता तो मेरे सारे फ्रेंड्स में वही एक मात्र थी जिसका एक हक भरे अंदाज में पहला सवाल यही होता था, “कल कहाँ थे तुम…कॉलेज क्यों नहीं आये”.
खैर ज्यादा परवान न चढ़ के इसी तरह हमारी प्रेम कहानी चलती रही. बोर्ड एग्जाम थे तो पढाई का भी काफी प्रेशर था. आशिकी और पढाई दोनों को साथ लेकर चलते-चलते कब पूरा सत्र गुजर गया और बोर्ड एग्जाम सर पर आ गए कुछ पता ही नहीं चला. अब एग्जाम के अलावा हमे दूसरी सबसे बड़ी टेंशन यही थी कि पूरा साल गुजर गया और हम अभी तक एक बार भी उससे अपने दिल की बात नहीं कह पाए. फिर एक दिन हिम्मत बांध के हमने सोचा की चलो आज बोल ही देते हैं, होगा सो देखा जायेगा. अगले दिन थोडा अलग स्टाइल में सुबह कॉलेज पहुंचे और उसे रोज की तरह hi…hello करने के बाद पूरी हिम्मत जुटाई उससे दिल की बात बोलने की लेकिन उसके सामने हम आज भी मनमोहन सिंह मोड से मोदी मोड में नहीं पहुँच पाए. फिर एक आईडिया आया हमारे दिमाग में….उस दौरान उसकी प्रोजेक्ट फाइल हमारे पास ही थी….शायद कुछ करेक्शन करने के लिए मांगी थी, सोचा कि क्यों ना बोलने के बजाय एक प्रेम पत्र लिख के उसी की फाइल में रख कर उसे दे दिया जाये……सो उस दिन कॉलेज से घर लौटते समय एक चमकती इंक वाला पेन और गुलाबी कागज खरीद कर ले गए. रात को घर वालों से नज़र बचा-बचा कर पूरे पौने तीन घंटे में अपना प्रेम-पत्र तैयार करके बड़ा ख़ुशी- ख़ुशी सोये कि आख़िरकार कल हमारे दिल की बात उस तक पहुँच ही जाएगी.
सुबह रोजाना की तरह कॉलेज पहुंचे, लेकिन जैसे ही कॉलेज के अन्दर घुस पाए कि गेट पर ही हमारा एक सहपाठी दिख गया नीरज नाम था उसका शायद….उसे देख कर अचानक हमे कुछ दो या तीन महीने पहले उसके साथ घटा एक वाकया याद आ गया. हुआ यूँ था कि क्लास की एक लड़की ने इनकी तरफ एक दिन देख के मुस्करा क्या दिया….इन्होने आव देखा ना ताव अगले दिन क्लास रूम में ही कागज पे कुछ लिख कर उसका ढेला बना कर उस लड़की की तरफ उछाल दिया….लड़की चालू निकली और उसने वो कागज का ढेला उठाकर तुरंत टीचर को हस्तांतरित कर दिया. उसके बाद एक बंद हाल में प्रिंसिपल और कॉलेज की अनुशासन समिति ने इनके साथ क्या किया ये तो हम बाकी स्टूडेंट्स को नहीं पता चल पाया लेकिन हाँ उसके बाद से ये कई दिनों तक बेंच पर पिछवाड़ा चिपका के बैठ नहीं पा रहे थे.
अचानक से ये वाकया याद आ जाने से हमारा दिल भी कच्चा होने लगा. लग रहा था कि हमारी भी हालत कहीं उस लड़के की तरह न हो जाये और खामख्वाह सालों की बनी इज्ज़त कॉलेज से विदाई लेने के चंद दिनों पहले मिटटी में मिल जाये. वैसे हमे ये बात अच्छी तरह पता थी कि श्रेया ऐसा कभी नहीं करेगी…. लेकिन फिर भी अब अन्दर ही अन्दर थोडा डर लग रहा था लड़कियों का कोई भरोसा नहीं कब इनका दिमाग घूम जाये. घंटों इसी उधेड़-बुन में गुजारने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे की बेटा सेल्फ-डिफेन्स पहले और आशिकी बाद में…….अंततोगत्वा पौने तीन घंटों की मेहनत से बनाया गया वो हमारा पहला प्रेम पत्र अपने मुकाम तक पहुँचने के बजाय टुकड़ों में बंट कर कॉलेज के पिछवाड़े खेतों में उड़ता नजर आया.
इसके बाद कुछ दिन और गुजर गए. आज हमारा फेयरवेल फंक्शन था…. यानी हम सब दोस्तों का एक साथ कॉलेज में लास्ट डे…..खास कर हम लड़कों का, क्योंकि हमारा एग्जाम सेण्टर दुसरे कॉलेज में था और हमे एग्जाम वहीँ देने थे. फंक्शन मस्त चल रहा था…हर बंदा स्टेज पर जा कर कुछ न कुछ परफोर्मेंस दे रहा था. लेकिन पूरे फंक्शन के दौरान हम बाकि दुनिया से बेखबर उसी के चेहरे पर नजर गड़ाए बैठे रहे.
फेयरवेल फंक्शन समाप्त हो चुका था. उस दिन अंतिम बार हम रुंधी आवाज में उससे सिर्फ इतना ही पूछ पाए, “श्रेया अब हम कब मिलेंगे?”. “पता नहीं….वक़्त बताएगा’’, वो भी उदासी भरी आवाज में सिर्फ यही दो लाइन बोल सकी. सब वापस घर जा रहे थे. हम अपना साढ़े तीन किलो का उदास चेहरा लिए कॉलेज के गेट पर बुत से खड़े सामने उसे अपने से दूर जाते देख रहे थे. तभी अचानक से उसने एक बार पलट कर मुझे देखा और अपने क़दमों की रफ़्तार तेज़ कर दी. उस दिन दिल बहुत जिद कर रहा था कि दौड़ के उसके पास जायें और उसे गले लगाकर जो भी उसके लिए हमारे दिल में है सब बोल दें, लेकिन तत्कालीन परिस्थतियों को देख कर दिमाग ने दिल की इस जिद को सिरे से नकार दिया.
वक़्त गुजरता गया …..बोर्ड एग्जाम शुरू होकर समाप्त भी हो चुके थे….अब हम भी थोडा फ्री हो गए थे….पढाई के बोझ से ……ना की उसकी यादों से. आज से कुछ साल पहले इतनी मोबाइल क्रांति भी नहीं थी…पत्र लिखना थोडा रिस्की था सो हम उसके साथ किसी तरह टच में भी नहीं थे हमे भी जिंदगी का पहला मोबाइल फ़ोन तब दिलवाया गया, जब हमने इंटरमीडिएट पास कर लिया. एक दो बार दिल बहुत किया की उसके घर जाकर उसकी एक झलक देख आयें जाके लेकिन फिर ख्याल आया की वो अपने घर वालों के सामने मेरा क्या परिचय देगी…..कुछ नेगटिव परिणामों के डर से हम से ये भी न हो पाया …..
बोर्ड के एग्जाम रिजल्ट आने के बाद हम आगे की पढाई के लिए लखनऊ आ गए और लखनऊ यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन कम्पलीट करने के लिए एडमिशन ले लिया….वक़्त गुजरता गया और धीरे – धीरे गुजरते वक़्त की धुल ने उसकी यादों के आईने को भी धुंधला कर दिया.
हम भी अब उसकी यादों को दिल के स्टोर रूम के कोने में डाल कर हंसती – खेलती जिंदगी गुजार रहे थे. लेकिन आज अचानक से ढाई साल बाद उसने हमारी जिंदगी में फिर से दस्तक दे दी थी. हैरानी में हमसे उसके sms के रिप्लाई में सिर्फ इतना ही टाइप हो पाया,“तुम” …. “हाँ मै……अच्छा लगा जान कर कि मै तुम्हे अब तक याद हूँ”…पलट कर तुरंत उसका रिप्लाई आया. मेरे पास उसकी शिकायत का कोई जवाब नहीं था. आगे कि बातें फ़ोन पर करने के लिए हमने उसका नंबर मांग लिया… थोड़ी देर बाद हमारे चैट बॉक्स में उसका नंबर आ गया. मारे बेसब्री के तुरंत उसका नंबर डायल कर दिए….3 बार बेल जाने के बाद उधर से एक धीमी सी कशिश भरी आवाज हमारे कानों में पड़ी, “हेलो”….सुनकर कुछ देर के लिए तो हमारे मुंह से कुछ आवाज ही नहीं निकली फिर लगभग ४० सेकंड बाद हमारे गले से दो शब्द निकल पाए, “कैसी हो……“ठीक हूँ…तुम कैसे हो?” उधर से हलकी सी मीठी आवाज में जवाब आया…. “अब तक तो ठीक था”….जवाब में अचानक हमारे मुंह से यही निकल गया. आधी रात से ज्यादा का समय हो रहा था इसलिए करीब 5 मिनट की ही बातचीत हो पायी और उस दौरान हाल-चाल जानने के अलावा उससे सिर्फ इतना पता चल पाया की इंटरमीडिएट के बाद वो भी लखनऊ ही आ गयी थी और निशातगंज में अपनी मौसी जी के यहाँ रह कर KKC से ग्रेजुएशन कम्पलीट कर रही थी. अब हमे ख़ुशी इस बात की थी की हम दोनों एक ही शहर में थे और दुःख इस बात का था कि पिछले ढाई साल से एक ही शहर में होने के बावजूद हम एक-दुसरे से अनजान बने रहे.
रात भर उसके ख्यालों में खोये रहे और अगले दिन सुबह होते ही उससे मुलाकात की आरजू में उसके कॉलेज पहुँच गए. अब वहां हजारों की भीड़ में उसे कहाँ और कैसे ढूंढे…कुछ समझ नहीं आ रहा था…हारकर हमे मोबाइल बाबा का ही सहारा लेना पड़ा….शायद क्लास में हो इसीलिए कॉल के बजाय हमने अपनी लोकेशन का उसे sms छोड़ दिया. और वहीँ बगल में पड़ी बेंच पर बैठ कर उसके रिप्लाई का इन्तजार करने लगे.
तभी करीब 15 मिनट बाद अचानक से एक लड़की उसी बेंच पर हमारे बगल में आकर बैठ गयी….हम उस समय नजरें अपने फ़ोन में गड़ाए फेसबुकियाने में इतना बिजी थे कि उस पर ध्यान ही नहीं दिया. करीब 5 मिनट बाद मेरे कानों में एक हलकी सी आवाज पड़ी, “ज्यादा बिजी हो तो मै भी अपनी क्लास अटेंड करूं जाके”……अचानक से हमारी नजरें फ़ोन से उठकर बगल में बैठी उस लड़की की तरफ ठहर गयीं….लगातार 2 मिनट तक उसे देखने के बाद अचम्भे में मेरे मुंह से सिर्फ इतना निकल पाया… “श्रेया ”….सालों बाद उसे यूँ अपने सामने देख कर हम तो अपनी सुध-बुध ही खो बैठे थे….बस एकटक उसके चेहरे को निहारते जा रहे थे…हमारी इस गुस्ताखी के आगे हारकर उसे ही अपनी नजरें नीचे झुकानी पड़ गयीं. फिर हमने थोडा अपने आप को सँभालते हुए सफाई दी… “सॉरी वो मै फ़ोन में तुम्हारे ही रिप्लाई का इंतज़ार कर रहा था…गौर नहीं किया की तुम मेरे बगल में ही बैठी हो.”…… “ओहो….. बहोत शरीफ हो ना….लड़कियों की तरफ ध्यान नहीं देते”…हँसते हुए उसने हम पर व्यंग कसा. फिर एक दुसरे का हाल – चाल जानने के बाद हमने उससे कहा, “श्रेया यहाँ काफी भीड़ है…अगर तुम चाहो तो हम लोग कॉलेज के बाहर चलें…वहां सामने एक काफी शॉप है”…हमारी इस रिक्वेस्ट को रिजेक्ट न करते हुए वो बगैर किसी सवाल जवाब के हमारे साथ उठ कर चल दी.
थोड़ी देर बाद हम दोनों कॉफ़ी शॉप में बैठे बतिया रहे थे….या यूँ कहें बोल तो केवल वही रही थी…..हम तो खामोश से बैठे बस उसके होंठों को हिलते देख रहे थे. उसकी बातें सुन कर लग रहा था कि जैसे उसे बहुत सारी शिकायतें हो हमसे….पहले थोडा बुरा लगा हमे ये सोच कर कि जैसे हम इनके बगैर बहुत खुश थे….लेकिन तभी याद आया कि इंसान को शिकायतें भी उसी से होती हैं जिससे उम्मीद होती है…ये सोच कर मन ही मन खुद पर थोडा गर्व भी हुआ… वो हम तक पहुंची कैसे? ये पूछने पर उसने बताया कि एक महीने पहले ही उसने फेसबुक ज्वाइन किया था और वहीँ से उसने हमे और हमारे फ़ोन नंबर को खोज निकाला था. सुनकर हमने मन ही मन जुकरबर्गवा के नाती पोतों तक को आशीर्वाद दे डाला….आखिर उसके फेसबुक की वजह से हमे हमारे जन्मदिन पर जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा जो मिला था. कुछ नयी और कुछ पुरानी बाते करते-करते कब उसके साथ तीन-चार घंटे गुजर गए कुछ पता ही नहीं चला. एक लुत्फ़ सा आ चला था जिसके इन्तजार में आज उसने अचानक मिलकर हमे पागल बना दिया था…सुबह-शाम ….सोते-जागते…खाते-पीते…दिन के 24 घंटों में शायद ही ऐसा कोई पल होता हो जब उसका ख्याल हमारे दिल से निकलता हो….पूरी मजनू वाली कंडीशन में पहुँच चुके थे हम…उसके कॉलेज के सामने वाला काफी शॉप हमारी आशिकी का अड्डा बन चुका था….10 मिनट के लिए ही सही लकिन एक बार उसके चेहरे का दीदार करने पहुँचते जरूर थे….आखिर पहली मोहब्बत थी हमारी तो दीवानगी भी कुछ ज्यादा ही थी.
इसी तरह उससे मिलते-मिलाते दो महीने से ऊपर का समय गुजर चुका था….अबकी बार हमने सोच लिया था की बेटा इस बार नहीं चूकना है…अभी नहीं तो फिर शायद कभी नहीं……हमने पूरी तरह से ठान लिया था की हमे जल्द से जल्द अपना हाल-ए-दिल उसके सामने बयां करना है. बस हमे इंतजार था तो किसी ख़ास मौके का जब हम उसके सामने अपनी बात रख सकें….और किस्मत की बात हमे जल्द ही वो मौका भी मिल गया.
७ दिसम्बर २०१४ को उसका जन्मदिन था. हमे लगा कि इस मौके को हाँथ से नहीं निकलने देना चाहिए….उसके जन्मदिन के ख़ास मौके पर हम दोनों ने शाम को एक रेस्टोरेंट में मिलने का प्रोग्राम बनाया था…हमने भी आज इजहार-ए –इश्क की पूरी तैयारी कर ली थी…..बगल वाली आंटी जी के लॉन से बड़ी मुश्किल से एक गुलाब के फूल का भी जुगाड़ हो गया. शाम को समय मुताबिक हम २० मिनट पहले ही रेस्टोरेंट पहुँच गये थे. न जाने क्यों आज अन्दर ही अन्दर हमे बेहद नर्वसनेस फील हो रही थी. थोड़ी देर इंतज़ार के बाद वो भी आ गयी….उसके आते ही सबसे पहले तो हमने उसे बर्थ डे विश किया. जवाब में उसने भी थैंक्यू बोल दिया. अब आगे हमे ये समझ नहीं आ रहा था की अपनी बात कहाँ से और कैसे शुरू करें.
“श्रेया तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है मेरे पास”….काफी मुश्किल से हम इतना बोल ही गए. “कैसा सरप्राइज”…तुरंत उसने प्रश्नवाचक अंदाज में पूंछा…… “वो एक्चुअली मुझे तुमसे कुछ बोलना है” थोडा सकुचते हुए हमने जवाब दिया. अब अगर आप इस तरह रेस्टोरेंट में किसी लड़की बुलाकर उससे बोलेंगे की आपको उससे कुछ कहना है तो सामने वाली बंदी आधी बात तो इसी से समझ जाती है….मौका देख कर हमने भी अपनी बची खुची हिम्मत जुटाई और कई बार की कोशिशों में असफल होने के बाद आज आख़िरकार हमने भी थ्री मैजिक वर्ड बोल ही डाले..
हमारे बोलते ही अचानक से हम दोनों के बीच में सन्नाटा छा गया….वो एकटक हमारी आँखों में पता नहीं क्या घूरे जा रही थी….करीब २-3 मिनट बाद ख़ामोशी को चीरते हुए उसके भी होठों से दो शब्द निकल गये,“लव यू टू”. सुनते ही हमे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे सारे जहाँ की खुशियाँ हमारे क़दमों में आ गिरी हों. आख़िरकार इतनी शिद्दतों बाद आज हमारा इजहार-ए –इश्क सक्सेस फुल्ली कम्पलीट हो गया था.
उसके बाद हमारी लव लाइफ का लगभग एक महीना हंसी ख़ुशी गुजर चुका था. हमे इस बात का जरा भी भान न था की हमारी ये ख़ुशी ज्यादा लम्बी उम्र लेकर नहीं आई है. एक दिन शाम को अचानक उसका फोन आया….उसकी माँ की तबियत खराब थी तो वो कुछ दिन के लिए गाँव जा रही थी. सुनकर हम थोडा टेंशनिया गए…..इसलिए नहीं कि उसकी माँ बीमार थी……बल्कि इसलिए की अब हमे कुछ दिन बगैर उसके चेहरे का दीदार किये बगैर काटने पड़ेंगे. अगले दिन वो गाँव जा रही थी…… हमसे नहीं रहा गया तो उससे मिलने बस अड्डे पर ही पहुँच गये.
उस दिन उससे मिलते समय हमे इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि शायद आज हम उससे आखिरी बार मिल रहे थे. उसके जाने के बाद दो दिन तक हम कुछ जरूरी काम से कहीं व्यस्त थे तो उससे संपर्क करने का भी समय नहीं निकल पाया. तीसरे दिन हमने उसे फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन लगातार कई बार फ़ोन करने के बावजूद भी उधर फ़ोन रिसीव नहीं हो रहा था. मै इधर परेशान था की बगैर किसी बात के आखिर वो फ़ोन क्यों नहीं रिसीव कर रही…..मै लगातार उसे फ़ोन किये जा रहा था और अंततः कई बार की कोशिशों के बाद उसने फ़ोन रिसीव किया.
इतनी देर से फ़ोन उठाने की वजह से पहले तो उसपे हम थोडा सा गुस्सा भी हुए…लेकिन जब उधर से उसकी अजीब सी उदासी भरी आवाज सुनी तो हमने उसकी वजह जाननी चाही….अचानक से उसकी आवाज रुंध गयी….रुंधी सी आवाज में उसने मेरा नाम लेकर सिर्फ उतना पुछा ,”क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगे?”…अब हम भी थोडा सा परेशान हो गये की आखिर अचानक हो क्या गया इसे…..बहुत पुछा तो रोने लगी और फिर खुद को थोडा संभाल कर बोलना शुरू किया, “यार मेरी कहीं शादी तय होने जा रही है…माँ की तबियत ज्यादा खराब रहती है.. वो डरती हैं कि इससे पहले कि अगर उन्हें कुछ हो जाये वो मेरी शादी होते देखना चाहती थी…पापा ने कोई लड़का भी पसंद कर लिया है….बहुत भरोसा है मेरे मां – बाप का मुझ पर…जितना मै उन्हें जानती हूँ तो उनकी विचारधारा इसके खिलाफ है की घर की कोई बेटी अपनी मर्ज़ी से अपना रिश्ता चुने…….मै जिंदगी भर रो के गुजार लूंगी लेकिन उनके खिलाफ जाकर उनका दिल दुखाने की हिम्मत नही है….हाँ मै तुमसे बेहद मोहब्बत करती हूँ…मुझे बेवफा मत समझना …और हो सके तो मेरी मजबूरी समझ के मुझे माफ़ कर देना…..प्लीज़……और हाँ अगर तुमने वाकई मुझसे सच्चा प्यार किया है तो कभी मेरी वजह से खुद के चेहरे पे कोई मायूसी की शिकन तक न आने देना”….इतना बोल कर वो खामोश हो गयी!
लेकिन ये सब कुछ जानकर हमारी तो पत्रकार पोम्पट लाल की तरह दुनिया हिल चुकी थी….एक दम से बुत हो चुके थे हम…काटो तो खून नही….बस हार्ट फ़ैल ही नही हुआ….फ़ोन हाथ से गिर कर टूट चुका था…फ़ोन की टूटी स्क्रीन ब्लिंक होते देख ऐसा लग रहा था मानो हमारी हालत पर वो चिढ़ा रही थी हमे ….करीब 5 मिनट तक बुत से बने रहने के बाद हममे थोड़ी सी चेतना आई और बगल में पड़ी कुर्सी पर सर झुका के बैठ गये…ऐसा लग रहा था जैसे दिल में अचानक से कोई सुनामी सी उठ के चली गयी हो…नम आँखें लिए करीब २ घंटे तक उसी तरह से बैठे रहे….और फिर एक लम्बी सांस ली और एक शैर बोलते हुए उठे, “ऐ इश्क पता होता की तू इतना तड्पाएगा…तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते” …फ़ोन को हाँथ में उठाया….दोबारा उसे कॉल भी नही की और खुद को तसल्ली दी की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है…कोई शिकायत नही की उससे शायद वो भी अपनी जगह सही थी….नही कुछ ऐसा करना चाहती थी की उसके मां – बाप को ठेस पहुंचे…जरूरी तो नही किसी को हासिल करके ही मोहब्बत की जाये…अलग रहकर भी तो मोहब्बत जिन्दा रह सकती है…यही सब सोच कर दिल को समझा लिया ….वैसे भी अभी शायद साथ-साथ इतना लम्बा रास्ता भी नही तय कर पाए थे की फिर अकेले लौटना नामुमकिन होता….हा थोड़ी सी तकलीफ जरूर होगी….लेकिन वक़्त की धुल यादों के आईने को भी धुंधला कर देती है…..दिमाग ने तो अब हाथ जोड़ लिए लेकिन दिल अब भी कभी-कभी अहसास दिला देता है शायद ……इस कहानी का अगला भाग भी बन पाये……समाप्त!!!!
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