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Sunday, July 26, 2015

सोन भंडार गुफा – राजगीर (बिहार) – इसमें छुपा है मोर्ये शासक बिम्बिसार का अमूल्य ख़ज़ाना

बिहार का एक छोटा सा शहर राजगीर जो कि नालंदा जिले मे स्तिथ है कई मायनों मे मत्त्वपूर्ण है। यह शहर प्राचीन समय मे मगध कि राजधानी था, यही पर भगवान बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था।  यह शहर बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

इसी राजगिर में है सोन भंड़ार गुफ़ा जिसके बारे मे किवदंती है कि इसमें बेशकीमती ख़ज़ाना छुपा है, जिसे की आज तक कोइ नही खोज पाया है।  यह खजाना मोर्ये शासक बिम्बिसार का बताया जाता है, हालांकि कुछ लोग इसे पूर्व मगध सम्राट जरासंघ का भी बताते है। हालांकि इस बात के ज्यादा प्रमाण है कि यह खजाना बिम्बिसार का हि है क्योकि इस गुफ़ा के पास उस जेल के अवशेष है जहाँ पर बिम्बिसार को उनके पुत्र अजातशत्रु ने बंदी बना कर रखा था।

 चट्टानों को काटकर बनाई गई सोन भंडार गुफा

सोन भण्डार गुफा मे प्रवेश करते हि  10 . 4 मीटर लम्बा,  5 . 2  मीटर चोडा  तथा 1 . 5 मीटर ऊंचा  एक कक्ष आता है, इस कमरा खजाने कि रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए था।   इसी कमरे कि पिछली दीवर से खजाने तक पहूँचने का रास्ता जाता है। इस रास्ते का प्रवेश द्वार पत्थर कि एक बहुत बडी चट्टान नुमा दरवाज़े से बन्द किया हुआ है।  इस दरवाज़े को आज तक कोइ नही खोल पाया है।

 सोन भण्डार गुफा के अन्दर सैनिको का कक्ष 

गुफा की एक दीवार पर शंख लिपि मे कुछ लिखा है जो कि आज तक पढ़ा नही जा सका है। कहा जाता है की इसमें ही इस दरवाज़े को खोलने का तरीका लिखा है।

 सोन भण्डार गुफा कि दीवार पर शंख लिपि मे लिखी जानकारी  

कुछ लोगो का यह भी  मानना है कि खजाने तक पहुचने का यह रास्ता वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओ तक जाता है, जो कि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ़ तक पहुँचती है। अंग्रज़ों ने एक बार तोप से इस चट्टान को तोड़ने कि कोशिश कि थीं लेकिन वो इसे तोड़ नही पाये।  तोप के गोले का निशाँ आज भी चट्टान पर मौजुद है।

 सोन भंडार के पास स्तिथ दूसरी गुफा  

इस सोन भंड़ार गुफ़ा के पास ऐसी हि एक और गुफा है जो कि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इसका सामने का हिस्सा गिर चुका है।  इस गुफा की दक्षिणी दीवार पर 6 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी गई है।

दूसरी गुफा कि दीवार पर उत्कीर्ण जैन तीर्थंकरों कि मूर्तियां

दोनों ही गुफाये तीसरी और चौथी शताब्दी मे चट्टानों को काटकर बनाई गई है।  दोनों ही गुफाओं के कमरे पोलिश किये हुए है जो कि इन्हे विशेष बनाती है, क्योकि इस तरह पोलिश कि हुईं गुफाये भरत मे बहुत कम है।इस बात के भी प्रमाण है की यह गुफाये कुछ समय के लिये वैष्णव सम्प्रदाय के अधीन भी रही थी क्योकि इन गुफ़ाओं के बाहर एक विष्णु जी कि प्रतिमा मिलि थी।  विष्णु जी की यह प्रतिमा इन गुफाओं के बाहर स्थापीत कि जानी थी।  पर मूर्ति की फिनिशिंग का काम पुर होने से पहले ही उन लोगो को, किसी कारणवश यह जगह छोड़ कर जाना पड़ा और यह मूर्ति बिना स्थपना के रह गई।  वर्तमान में यह मूर्ति नालंदा म्यूज़ियम मे रखी है।









 

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