इसी महीने एक जुलाई को गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल अहमदाबाद के मुस्लिम बाहुल्य इलाके जमालपुर में 18वीं शताब्दी की तीन मंजिला मीनार पर सांप्रदायिक सद्भावना के दो गुजराती आइकन के सम्मान में एक म्यूजियम का उद्घाटन करने पहुंची थीं। इसी दिन 1946 में वसंतराव हेगिस्ते और रजब अली लखानी को दंगाइयों की भीड़ ने वार्षिक जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा के दौरान मार दिया था। पहले मुसलमान और फिर हिन्दुओं को बचाने में इन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
बंधुत्व स्मारक के उद्घाटन के दौरान आनंदीबेन पटेल इन दोनों नायकों से जुड़े निजी सामान जैसे- सैंडल, चश्मा, अखबारों के कतरन और जेल रिकॉर्ड के दस्तावेज देख रही थीं। उस वक्त वहां हेगिस्ते के परिवार वाले भी मौजूद थे। लेकिन लखानी के परिवार वाले? ये लंबे समय से गायब हैं। दंगों में लगातार निशाने बनाए जाने के कारण लखानी के परिवार वाले अमेरिका और कनाडा शिफ्ट हो गए। यहां तक कि ये खुद को लखानी परिवार से जुड़े होने की बात बताने से डरते हैं। इनके भतीजे रश्मिन जो कि राशिद के नाम से जाने जाते थे ने इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर कहा, 'हमलोगों ने हिन्दू नाम रखने का फैसला किया। हमने अपना मजहब बदला और रजब अली लखानी से जुड़े होने की बात छुपाई।'
वे कहां हैं इसे बताने को लेकर सतर्क रश्मिन ने कहा कि लखानी के छोटे भाई रमजान अली के साथ कई लोग थे लेकिन उन्हें भी धर्म बदलना पड़ा। ऐसा उन्होंने नारानपुरा स्थित घर में अपने परिवार वालों पर हुए हमले के बाद किया। रमजान अली ने अपना नाम बदलकर रमनलाल कर लिया था। रमनलाल स्थानीय अखबार में पत्रकार थे। तीन साल पहले उनकी मौत हो गई। इनकी पत्नी का निधन कुछ हफ्ते पहले म्यूजियम के उद्घाटन से पहले हुआ था। अहमदाबाद स्थित इतिहासकार
रिजवी कादरी ने जब इस परिवार को म्यूजियम के उद्घाटन मौके पर आमंत्रित करने के लिए खोजना शुरू किया तब यह पूरी कहानी सामने आई। जहां हेस्तिगे और लखानी की दंगाइयों ने हत्या की थी वहां से 400 मीटर की दूरी पर म्यूजियम बना है। म्यूजियम की कल्पना अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की थी ताकि पुलिस की छवि लोगों के बीच संवेदनशील और सेक्युलर बने। इस साल रथ यात्रा 18 जुलाई को निकलने वाली है। इसी तारीख को ईद भी पड़ सकती है।
76 साल के रश्मिन, रजब अली के बड़े भाई वजीर अली के बेटे हैं। 1965 में इन्होंने हिन्दू धर्म को अपना लिया था। भावनगर की हिन्दू महिला से ही इन्होंने शादी की और अमेरिका चले गए। रश्मिन ने कहा, 'करीब तीन से ज्यादा बार 1969 और 1967 के दंगों में हमें मारने की कोशिश की गई क्योंकि हमलोग ने मजहब बदलने का फैसला किया था।' रश्मिन ने कहा, 'मेरे दोनों बच्चे जब तक 18 और 19 साल के नहीं हो गए तब कर उन्हें नहीं पता था कि उनका पिता मुस्लिम है।
मेरा तलाक हो गया है।' रमजान अली लखानी उर्फ रामलाल के बड़े बेटे सुभान कनाडा में रहते हैं। इन्होंने अपना नाम साम लखानी रख लिया। हालांकि इन्होंने औपचारिक रूप से मजहब नहीं बदला। इन्होंने फोन पर कहा, '1969 का दंगा देश बंटवारे से पहले के दंगे की तरह था। करीब 10 हजार मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी। मेरा परिवार भी जान बचाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। मैं तो पहले ही अमेरिका चला गया था लेकिन मेरे भाई और बहनों को नाम बदलना पड़ा।'
साम लखानी ने कहा, 'मैं चाहता था कि मेरे माता-पिता भी सुरक्षा के कारण कनाडा आ जाएं। वे 1986 में आए लेकिन यहां की ठंड नहीं झेल पाए और फिर वापस चले गए।' साम लखानी भी अपने परिवार वालों के लोकेशन बताने में सतर्क दिखे। साम ने कहा, '1969 के दंगों के दौरान हम सभी एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे। कभी गांधी आश्रम तो कभी मुंबई तो फिर नादि
1947 में प्रसिद्ध गुजराती कवि जावेरचंद मेघानी द्वारा वसंत-रजब की याद में संकलित किताब में वंसत की छोटी बहन हेमलता हेगिस्ते ने लिखा है कि दोनों मौत के बाद ही अलग हुए। इनके शव को कांग्रेस हाउस से बाहर लाये गये थे। पीस ऐक्टिविस्ट जो कि 2002 के गुजरात दंगों में इंसाफ की मांग कर रहे हैं, उन्होंने पिछले कुछ सालों से इनकी पुण्य तिथि पर सांप्रदायिक सद्भावना दिवस मनाना शुरू किया है। वसंत हेगिस्ते के भतीजे उदय की पत्नी नीता ने कहा कि दोनों परिवारों के लोग कभी भी संपर्क में नहीं रहे। नीता म्यूजियम के उद्घाटन समारोह में मौजूद थीं।
याड और आखिर में अहमदाबाद आकर हमे हिन्दू धर्म अपनाना पड़ा। रमजान अली के और बच्चे पश्चिमी अहमदाबाद में रहते हैं। ये अपने अतीत से बिल्कुल अलग हो चुके हैं। रजब अली लखानी खोजा मुस्लिम थे जिनका जन्म 27 जुलाई 1919 को कराची में हुआ था। वसंत और रजब का बलिदान अहमदाबाद के लोकसाहित्य में लंबे समय से मिसाल की तरह लोकप्रिय है। रजब और वसंत कांग्रेस सेवा दल के सदस्य थे।
बंधुत्व स्मारक के उद्घाटन के दौरान आनंदीबेन पटेल इन दोनों नायकों से जुड़े निजी सामान जैसे- सैंडल, चश्मा, अखबारों के कतरन और जेल रिकॉर्ड के दस्तावेज देख रही थीं। उस वक्त वहां हेगिस्ते के परिवार वाले भी मौजूद थे। लेकिन लखानी के परिवार वाले? ये लंबे समय से गायब हैं। दंगों में लगातार निशाने बनाए जाने के कारण लखानी के परिवार वाले अमेरिका और कनाडा शिफ्ट हो गए। यहां तक कि ये खुद को लखानी परिवार से जुड़े होने की बात बताने से डरते हैं। इनके भतीजे रश्मिन जो कि राशिद के नाम से जाने जाते थे ने इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर कहा, 'हमलोगों ने हिन्दू नाम रखने का फैसला किया। हमने अपना मजहब बदला और रजब अली लखानी से जुड़े होने की बात छुपाई।'
वे कहां हैं इसे बताने को लेकर सतर्क रश्मिन ने कहा कि लखानी के छोटे भाई रमजान अली के साथ कई लोग थे लेकिन उन्हें भी धर्म बदलना पड़ा। ऐसा उन्होंने नारानपुरा स्थित घर में अपने परिवार वालों पर हुए हमले के बाद किया। रमजान अली ने अपना नाम बदलकर रमनलाल कर लिया था। रमनलाल स्थानीय अखबार में पत्रकार थे। तीन साल पहले उनकी मौत हो गई। इनकी पत्नी का निधन कुछ हफ्ते पहले म्यूजियम के उद्घाटन से पहले हुआ था। अहमदाबाद स्थित इतिहासकार
रिजवी कादरी ने जब इस परिवार को म्यूजियम के उद्घाटन मौके पर आमंत्रित करने के लिए खोजना शुरू किया तब यह पूरी कहानी सामने आई। जहां हेस्तिगे और लखानी की दंगाइयों ने हत्या की थी वहां से 400 मीटर की दूरी पर म्यूजियम बना है। म्यूजियम की कल्पना अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की थी ताकि पुलिस की छवि लोगों के बीच संवेदनशील और सेक्युलर बने। इस साल रथ यात्रा 18 जुलाई को निकलने वाली है। इसी तारीख को ईद भी पड़ सकती है।
76 साल के रश्मिन, रजब अली के बड़े भाई वजीर अली के बेटे हैं। 1965 में इन्होंने हिन्दू धर्म को अपना लिया था। भावनगर की हिन्दू महिला से ही इन्होंने शादी की और अमेरिका चले गए। रश्मिन ने कहा, 'करीब तीन से ज्यादा बार 1969 और 1967 के दंगों में हमें मारने की कोशिश की गई क्योंकि हमलोग ने मजहब बदलने का फैसला किया था।' रश्मिन ने कहा, 'मेरे दोनों बच्चे जब तक 18 और 19 साल के नहीं हो गए तब कर उन्हें नहीं पता था कि उनका पिता मुस्लिम है।
मेरा तलाक हो गया है।' रमजान अली लखानी उर्फ रामलाल के बड़े बेटे सुभान कनाडा में रहते हैं। इन्होंने अपना नाम साम लखानी रख लिया। हालांकि इन्होंने औपचारिक रूप से मजहब नहीं बदला। इन्होंने फोन पर कहा, '1969 का दंगा देश बंटवारे से पहले के दंगे की तरह था। करीब 10 हजार मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी। मेरा परिवार भी जान बचाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। मैं तो पहले ही अमेरिका चला गया था लेकिन मेरे भाई और बहनों को नाम बदलना पड़ा।'
साम लखानी ने कहा, 'मैं चाहता था कि मेरे माता-पिता भी सुरक्षा के कारण कनाडा आ जाएं। वे 1986 में आए लेकिन यहां की ठंड नहीं झेल पाए और फिर वापस चले गए।' साम लखानी भी अपने परिवार वालों के लोकेशन बताने में सतर्क दिखे। साम ने कहा, '1969 के दंगों के दौरान हम सभी एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे। कभी गांधी आश्रम तो कभी मुंबई तो फिर नादि
1947 में प्रसिद्ध गुजराती कवि जावेरचंद मेघानी द्वारा वसंत-रजब की याद में संकलित किताब में वंसत की छोटी बहन हेमलता हेगिस्ते ने लिखा है कि दोनों मौत के बाद ही अलग हुए। इनके शव को कांग्रेस हाउस से बाहर लाये गये थे। पीस ऐक्टिविस्ट जो कि 2002 के गुजरात दंगों में इंसाफ की मांग कर रहे हैं, उन्होंने पिछले कुछ सालों से इनकी पुण्य तिथि पर सांप्रदायिक सद्भावना दिवस मनाना शुरू किया है। वसंत हेगिस्ते के भतीजे उदय की पत्नी नीता ने कहा कि दोनों परिवारों के लोग कभी भी संपर्क में नहीं रहे। नीता म्यूजियम के उद्घाटन समारोह में मौजूद थीं।
याड और आखिर में अहमदाबाद आकर हमे हिन्दू धर्म अपनाना पड़ा। रमजान अली के और बच्चे पश्चिमी अहमदाबाद में रहते हैं। ये अपने अतीत से बिल्कुल अलग हो चुके हैं। रजब अली लखानी खोजा मुस्लिम थे जिनका जन्म 27 जुलाई 1919 को कराची में हुआ था। वसंत और रजब का बलिदान अहमदाबाद के लोकसाहित्य में लंबे समय से मिसाल की तरह लोकप्रिय है। रजब और वसंत कांग्रेस सेवा दल के सदस्य थे।
सौजन्य: भारत टाइम्स (indiatimes)
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