नई दिल्लीः जिंदगी और मौत के बीच में जो सबसे बड़ी कड़ी है वह है आत्मा। आत्मा शरीर में है तो जिंदगी है और आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया तो शरीर के बेजान पुतला है। इसलिए जिंदगी और मौत के विज्ञान में सबसे उलझा रहस्य आत्मा का है।
इस रहस्य को जिसने जितना जानने का प्रयास किया वह इसमें उतना ही उलझता गया। जब उलझन बहुत गहरा गई और सृष्टि के सबसे बड़े रहस्य से पर्दा उठा पाना संभव नहीं हो सका तो कितने ही दार्शनिकों और विद्वानों ने आत्मा के अस्तित्व को ही नकार दिया और कह दिया कि आत्मा हमारे मन, मस्तिष्क और चेतना से अलग कुछ भी नहीं है।
आधुनिक वैज्ञानिक तो यह भी कहते हैं विचार मस्तिष्क क्रिया का फल है, वे मन को मस्तिष्क का सह परिणामी मानते हैं। उनके अनुसार मस्तिष्क का कार्य समाप्त होते ही मन, ज्ञान, चेतना और सभी तरह के मानसिक क्रियाकलाप तुरंत रुक जाते हैं। आत्मा जैसी किसी वस्तु का अस्तित्व ही नही है। इसलिए मृत्यु के बाद जीवन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन आत्मा के बारे में एक बारगी यह कह देना और स्वीकार कर लेना सही नहीं है कि आत्मा है ही नही।
हिन्दू दर्शन का सबसे बड़ा ग्रंथ गीता यह साफ-साफ कहता है कि आत्मा अजर है, अमर है, शाश्वत है। यह उस समय था जब यह सृष्टि हुई थी और यह तब भी होगा जब सृष्टि समाप्त हो जाएगी।
आत्मा के अस्तित्व को मिस्रवासी भी मानते थे। लेकिन यह आत्मा की द्वितीय सत्ता पर विश्वास करते थे। इनके अनुसार आत्मा शरीर की छाया है। जितने दिन शरीर रहता है उतने ही दिन छाया रहती है।
इसलिए मिस्र में शरीर को ममी बनाकर रखने की प्रथा का प्रचलन हुआ। उनका विश्वास था कि शरीर के किसी अंश के क्षतिग्रस्त होने पर छाया का भी वही अंश क्षतिग्रस्त होगा। इसलिए आत्मा को सुरक्षित रखने के लिए वे शरीर को सुरक्षित रखते थे और उन्हें खत्म नहीं होने देते थे।
ईसा मसीह के बारे में कहा जाता है कि वह सूली पर चढ़ाए जाने के कुछ दिन बात जीवित हो गए थे। इसलिए क्रिश्चियनों में भी यह धारण है कि मृत शरीर फिर उठकर खड़ा हो जाएगा इसलिए वह मृत शरीर को कब्र में रखते हैं। यानी आत्मा के अस्तित्व को वह भी स्वीकार करते है।
आत्मा के बारे में जब बात होती है तो कई बार यह सवाल मन में आता है कि आखिर यह आत्मा दिखती कैसी है और इसका रंग रूप कैसा है। इस विषय के लेकर कई शोध भी हुए हैं। आत्माओं पर शोध करने वाले पांडिचेरी के प्रो. के सुंदरम के अनुसार आत्मा का भी रंग होता है।
प्रो. सुंदरम और उनके सहयोगियों द्वारा शरीर में मौजूद सात चक्रों पर किए गए अध्ययनों के बाद जो परिणाम सामने आया उसके अनुसार आत्मा का रंग नीला या असमानी है।
अध्ययन और प्रयोगों को आगे बढ़ाते हुए नीले रंग को वे थोड़ा निरस्त भी करते हैं क्योंकि प्रकाश के रूप में आत्मा ही दिखाई पड़ती है और पीले रंग का प्रकाश आत्मा की उपस्थिति को सूचित करता है। धरती पर पचहत्तर प्रतिशत जल ही फैला है और जहां भी वह घनीभूत होता है वहां आकाश का रंग प्रतिबिंबित होने के कारण पानी का रंग नीला दिखाई देता है।
ध्यान में हुए अनुभवों और सपनों में दिखाई देने वाले उदास रंगों के आधार पर उन्होंने कहा है कि आत्मा का रंग आसमानी है। कुछ मनीषी मानते हैं कि नीला रंग आज्ञा चक्र का और आत्मा का रंग है।
आज्ञाचक्र शरीर का छठा चक्र है जिसका रंग नीला है। सातवां सहस्रार चक्र शरीर और आत्मा के बीच सेतु का काम करता है। उसका अपना कोई रंग नहीं है। इसलिए नीला और आसमानी रंग ही आत्मा का रंग कहा जा सकता है।
वेदों और पुराणों में आत्मा के स्वरूप का जैसा उल्लेख किया गया है उसके अनुसार आत्मा का कोई रंग नहीं हैं यह सफेद दिखती है। वेदों और शास्त्रों के जानकर पंडित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि आत्मा में किसी प्रकार का राग, द्वेष नहीं होता है इसलिए यह शाश्वत और सफेद होती है।
मृत्यु के समय कुछ व्यक्तियों पर किए गए शोध से भी इस बात की जानकारी मिली है कि आत्मा सफेद है और यह भाप की तरह होती है। इसे वैज्ञानिक एक्टोप्लाज्म और आत्मरस कहते हैं।
इस वाष्पमय वस्तु का कोई निश्चित आकार नहीं होता। यह बादल के समान होती है और कोई भी आकार ले सकती है। आत्मरस यानी एक्टोप्लाज्म की तस्वीर भी ली जा सकती है।
वास्तविकता तो यह है कि हमारे शरीर से हमेशा इस प्रकार का पदार्थ निकलता रहता है। खासतौर पर तब जब कोई मीडियम आत्मा के संपर्क में होता है। मीडियम को आधार बनाकर ही प्रेतात्मा शरीर धारण करती है और जिस मीडियम को आधार बनाया जाता है उनके शरीर से एक्टोप्लाज्म अधिक निकलता है।
एक्टोप्लाज्म को स्पर्श करने पर कोई खास स्पर्शानुभूति नहीं होती है। लेकिन यह जब कोई आकार धारण करता है तो यह हमारे रक्त-मांस के शरीर के समान ठोस हो जाता है। यह कोई भी आकार धारण कर सकता है
यह घटना लॉस एंजिल्स की है। एक लड़का अंतिम सांसें ले रहा था और अचानक शरीर निष्प्राण हो गया। उस समय लड़के की बहन वहीं पास में बैठी थी उसने कुछ ऐसा देखा कि वह हैरान रह गई और मां को आवाज दी। मां देखो, भाई के शरीर के चारों ओर कुहासा।
फिर उसने कहा यह कुहासा तो भाई के शरीर से ही निकल रहा है। मां कुछ दिख नहीं रहा था इसलिए वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या हो रहा है और उसकी बेटी क्यों ऐसा कह रही है।
यूरोप के वैज्ञानिकों ने इस मुद्दे को बहुत ही गंभीरता से लिया और इस पर शोध कर रहे हैं। आत्मा पर इस तरह के कई शोध चलते रहते हैं लेकिन आत्मा के बारे में मनुष्य अभी इतना ही जान सका है जिसे ब्रह्मांड के एक मात्र कण बराबर कहा जा सकता है।
सौजन्यः अमर उजाला
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